27.9.09

अहिंसा का अर्थ कायरता नहीं



किसी समय एक राज्य पर दूर देश के विधर्मी शासक ने आक्रमण कर दिया। राजा ने अपने सेनापति को आदेश दिया कि सेना लेकर सीमा पर जाए और आक्रमणकारियों को मुंहतोड़ जवाब दे। सेनापति अहिंसावादी था। वह लड़ना नहीं चाहता था, पर राजा का आदेश था। अत: वह अपनी समस्या लेकर परामर्श करने के लिए भगवान बुद्ध के पास गया। सेनापति ने कहा- युद्ध होने पर शत्रु सेना के सैकड़ों सैनिक मारे जाएंगे, क्या यह हिंसा नहीं है? ‘हां हिंसा तो है पर यह बताओ, यदि हमारी सेना ने उनका मुकाबला न किया तो क्या वे वापस अपने देश चले जाएंगे?’ भगवान बुद्ध ने प्रश्न किया।



सेनापति ने कहा- नहीं, वापस तो नहीं जाएंगे। ‘अर्थात वे हमारे देश में निरपराध नागरिकों की हत्या करेंगे? फसल और संपत्ति को नष्ट करेंगे?’ गौतम बुद्ध के इस सवाल पर सेनापति का जवाब था कि हां, यह तो होगा ही। ‘तो क्या यह हिंसा नहीं होगी? यदि तुम हिंसा के भय से चुप बैठे रहे, तब हमारे देश के नागरिक मारे जाएंगे और इस हिंसा का पाप तुम्हारे सिर आएगा।’ यह सुन सेनापति ने सिर झुका लिया। भगवान बुद्ध ने फिर पूछा- क्या हमारी सेना आक्रमणकारियों को रोकने में सक्षम है? ‘जी हां, यदि उसे आदेश दिया जाए तो वह हमलावरों को बुरी तरह मार भगाएगी।’ सेनापति का उत्तर था। गौतम बुद्ध ने कहा- तब अपनी सेना को तुरंत आदेश दो कि वह शत्रु सेना का हर तरह से मुकाबला करे और उन्हें पराजित कर देश से निकाल दे।



कथा का सार यह है कि अहिंसा का अर्थ कायरता नहीं है। इसका अर्थ है, किसी दूसरे पर अत्याचार न करना। लेकिन यदि कोई हम पर अत्याचार करे तो उसका मुंहतोड़ जवाब देना।

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