30.9.09

पैसों के लिए ये ईमान बेचने वाले

सलीम अख्तर सिद्दीक़ी
अब तक तो खाने पीने के सामान में मिलावट, सब्जियों में एक विशेष प्रकार का इंजेक्शन लगाकर उन्हें रातों रात बढ़ाने, असली घी में चर्बी की मिलावट, सिंथेटिक दूध, सिंथेटिक मावा तथा नकली दवाईयां बनाने की खबरे आती थीं, लेकिन अब इससे भी आगे का काम हो रहा है। स्लाटर हाउसों में मरे हुए जानवरों को काट कर उनका मीट बाजार में बेचा जा रहा है। पैसों के लिए ईमान बेचने वालों ने आम आदमी का ईमान भी खराब करने की ठान ली है। हैरत की बात यह है कि पैसों के लिए ईमान बेचने वाले नास्तिक नहीं हैं, बल्कि धर्म कर्म में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेने वाले लोग हैं। खबर मेरठ की है। यहां का स्लाटर हाउस, जिसे आम बोल की भाषा में कमेला कहा जाता है, कई सालों से सुर्खियों में है। मेरठ भाजपा की राजनीति केवल कमेले तक सिमट कर रह गयी है। इसी मुद्दे पर जून के महीने में मेरठ तीन दिन का कर्फ्यू भी झेल चुका है।
चौबीस सितम्बर को कमेले से सटी आशियाना कालोनी के लोग यह देखकर तब दंग रह गए, जब उन्होंने देखा कि एक अहाते में मरी हुई भैंसों को काटकर उनका मीट मैटाडोर में भरकर भेजा जा रहा है। कालोनी के हाजी इमरान अंसारी से यह देखा नहीं गया। उन्होंने इस घिनावने काम का विरोध किया तो मरी हुई भैंसों को काटने वाले लोगों ने इमरान अंसारी के घर में घुसकर उनसे और उनके बेटे कामरान से मारपीट की। भैंस काटने वाले और विरोध करने वालों के बीच पथराव हुआ। पुलिस आ गयी। लेकिन कमाल देखिए कि मरी भैंसे काटने का विरोध करने वाले इमरान और उनके बेटे कामरान को ही पुलिस उठकार ले गयी। इससे पुलिस के ईमान धर्म का भी पता चलता है।
जब से मीट का एक्पोर्ट होने लगा है, तब से मीट व्यापारियों ने मेरठ को नरक बना दिया है। इन मीट व्यापारियों के सामने नगर निगम, शासन, प्रशासन और पुलिस या तो बेबस और लाचार है या फिर ईमान भ्रष्ट करने वाले इस धंधे को चालू रखने के लिए बहुत ईमानदारी से सबको हिस्सा मिल जाता है। वरना क्या कारण है कि कुछ लोग मरी हुई भैंसों को काटते हुए रंगे हाथों पकड़े जाते हैं, लेकिन उनका कुछ नहीं बिगड़ता है ? दरअसल, मीट के काम में इतना लाभ है कि सबका पेट भर दिया जाता है। कहा जाता है कि मरी हुई भैंसों का मीट बहुत सस्ते दामों पर होटलों और ठेलों पर बिरयानी बेचने वालों को सप्लाई किया जाता है। यह भी कहा जाता है कि मेरठ का एक नामी गिरामी बिरयानी वाला मरी हुई भैंस का मीट इस्तेमाल करता हुआ पकड़ा भी गया था, लेकिन मोटी रिश्वत और सिफारिश के बल पर छूट कर आ गया। आज भी उसके यहां बिरयानी खाने वालों की लाईन लगती है। कोई ताज्जुब नहीं कि मरी हुई भैंसों का ही मीट खाड़ी के देशों को भी एक्सपोर्ट किया जाता हो। मरी हुई भैंसों का मीट बेचने वालों, सिंथेटिक दूध और मावा बनाने वालों, मसालों में मिलावाट करने वालों और नकली दवाईयां बनाने वालों से एक ही सवाल है, इंसान के ईमान को खराब करके और भयानक बीमारियां बांटकर पैसा कमाना कहां तक जायज है ? डाक्टरों का कहना है कि मरे हुऐ जानवर का मीट खाने से घातक बीमारियां हो सकती हैं।
पुलिस और प्रशासन मीट व्यापारियों की अप्रत्यक्ष रूप से मदद करके शहर की फिजा खराब करने में मदद ही कर रहा है। उल्लेखनीय है कि मेरठ में भाजपा आए दिन कमेले को लेकर हंगामा करती रहती है। अभी कुछ दिन पहले ही भाजपा के कारण शहर का साम्प्रदायिक सद्भाव बिगड़ने से बच गया था। कोई दिन नहीं जाता, जब भाजपा कार्यकर्ता पशुओं और मांस से लदे वाहनों का रोककर ड्राइवरों से मारपीट नहीं करते। यह तो अच्छा है कि मीट व्यापारियों से आम मुसलमान भी बहुत ज्यादा त्रस्त है। इसलिए बात ज्यादा नहीं बढ़ती, वरना भाजपा कार्यकर्ता दंगा भड़काने की पूरी कोशिश करते हैं। जब भाजपा कमेले को लेकर हायतौबा मचाती है तो उसकी नीयत एक समस्या को खत्म करने के स्थान पर मुस्लिमों का विरोध करना ज्यादा होती है। दिक्कत यह है कि भाजपा कमेले को सभी की समस्या के स्थान पर उसे केवल हिन्दुओं की समस्या बताकर मामले को न सिर्फ उलझा देती है, बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से कमेला संचालकों को बच निकलने का मौका दे देती है। सच यह है कि कमेला हिन्दुओं की अपेक्षा मुसलमानों की समस्या अधिक है। क्योंकि कमेले के आस पास मुस्ल्मि बाहुल्य कालोनियां ज्यादा आबाद हैं। भाजपा यह भी क्यों भूल जाती है की मेरठ में कमेला ही एकमात्र समस्या नहीं है बल्कि समस्याओं का घर है। किसी अन्य समस्या को भाजपा इतनी शिद्दत से क्यों नहीं उठाती, जितनी शिद्दत से कमेले की समस्या को उठाती है ? मेरठ में बहुत सारी ऐसी फैक्टरियां हैं, जिनका सारा कैमिकलयुक्त गन्दा पानी मेरठ से गुजरने वाली काली नदी में डाला जाता है। इसलिए काली नदी के आस पास बसे दर्जनों गांवों का पानी पीने लायक नहीं रहा। हैंडपम्पों से निकलने वाला पानी पीले रंग का और दूषित है। उस पानी को पीकर जानलेवा बीमारियां फैल रही हैं। इन गांवों के बारे में मीडिया में बहुत छपता है। गैर सरकारी संगठन समय समय पर प्रशासन को चेताते रहते हैं। लेकिन भाजपा ने आज तक इस मुद्दे पर कोई आन्दोलन इसलिए नहीं किया, क्योंकि काली नदी के पानी को प्रदूषित करने वाली फैक्टरियां मुसलमानों की नहीं है, बल्कि अधिकतर उन लोगों की हैं, जो डंडा लेकर जानवरों और मीट ले जाने वाले वाहनों के पीछे भागते रहते हैं।

2 comments:

  1. सलीम साहब इस पूरे मामले को आप अपने दिमाग से हाकना चाह रहे है़ और हद ये कि एक पत्रकार्र होकर भी आप एक ऐसे राजनीतिक दल को जबरन बीच मे़ ला रहे है़ जो अपने आप हाशिये पर चला जा रहा है.

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  2. yakenan samseya badi hai lakin SAURABH DUBEY or HARI SHARMA ki bat bhi badi hai. nitin sabrangi

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