20.9.09
चोखेर बाली से लौट कर,दुनिया के परुषों,संभल जाओ....!!
मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!
यह जो विषय है....यह दरअसल स्त्री-पुरुष विषयक है ही नहीं....इसे सिर्फ इंसानी दृष्टि से देखा जाना चाहिए....इस धरती पर परुष और स्त्री दो अलग-अलग प्राणी नहीं हैं...बल्कि सिर्फ-व्-सिर्फ इंसान हैं प्रकृति की एक अद्भुत नेमत.. !!...इन्हें अलग-अलग करके देखने से एक दुसरे पर दोषारोपण की भावना जगती है....जबकि एक समझदार मनुष्य इस बात से वाकिफ है की इस दुनिया में सम्पूर्ण बोल कर कुछ भी नहीं है.....अगर पुरुष नाम का कोई जीव इस धरती पर अपने पुरुष होने के दंभ में अपना "....." लटकाए खुले सांड की तरह घूमता है...और स्त्रियों के साथ "....." करना अपनी बपौती भी समझता है....तो उसे उसकी औकात बतानी ही होगी....उसे इस बात के लिए बाध्य करना ही होगा की वह अपने पजामे के भीतर ही रहे....और उसका नाडा भी कस कर बंद रखे ....अगर वह इतना ही "यौनिक" है...कि उसे स्त्रियों के पहनावे से उत्तेजना हो जाती है...और वह अपने "आपे" से बाहर भी हो जाता हो...तो उसे इस "शुभ कार्य" की शुरुआत...अपने ही घर से क्यों ना शुरू करनी चाहिए....लेकिन यदि ऐसा संभव भी हो तो भी बात तो वही है.... कि उसके "लिंग-रूपी" रूपी तलवार की नोक पर तो स्त्री ही है... इसीलिए हर हाल में पुरुष को अपने इस "लिंगराज" को संभाल कर ही धरना होगा...वरना किसी रोज ऐसा हर एक पुरुष स्त्रियों की मार ही खायेगा...जो अपने "लिंगराज" को संभाल कर नहीं धर सकता...या फिर उसका "प्रदर्शन" नानाविध जगहों पर...नानाविध प्रकारों से करना चाहता हो.....!!
मैं देखता हूँ....कि स्त्रियों द्वारा लिखे जाने वाले इस प्रकार के विषयों पर प्रतिक्रिया में आने वाली कई टिप्पणियाँ [जाहिर है,पुरुषों के द्वारा ही की गयीं...]...अक्सर पुरुषों की इस मानसिकता का बचाव ही करती हुई आती हैं....तुर्रा यह कि महिला ही "ऐसे पारदर्शी और लाज-दिखाऊ-और उत्तेजना भड़काऊ परिधान पहनती है....बेशक कई जगहों पर यह सच भी हो सकता है....मगर दो-तीन-चार साल की बच्चियों के साथ रेप कर उन्हें मार डालने वाले या अधमरा कर देने वाले पुरुषों की बाबत ऐसे महोदयों का क्या ख्याल है भाई....!!
जब किसी बात का ख़याल भर रख कर उसे आत्मसात करना हो....और अपनी गलतियों का सुधार भर करना हो.. तो उस पर भी किसी बहस को जन्म देना किसी की भी ओछी मानसिकता का ही परिचायक है...अगर पुरुष इस दिशा में सही मायनों में स्त्री की पीडा को समझते हैं तो किसी भी भी स्त्री के प्रति किसी भी प्रकार का ऐसा वीभत्स कार्य करना जिससे मर्द की मर्दानगी के प्रति उसमें खौफ पैदा हो जाए....ऐसे तमाम किस्म के "महा-पुरुषों" का उन्हेब विरोध करना ही होगा....और ना सिर्फ विरोध बल्कि उन्हें सीधे-सीधे सज़ा भी देनी होगी...बेशक अपराधी किसी न किसी के रिश्तेदार ही होंगे मगर यह ध्यान रहे धरती पर हो रहे किसी भी अपराध के लिए अपने अपराधी रिश्तेदार को छोड़ना किसी दुसरे के अपराधी रिश्तेदार को अपने घर की स्त्रियों के प्रति अपराध करने के लिए खुला छोड़ना होता है...अगर आप अपना घर बचाना चाहते हो तो पडोसी ही नहीं किसी गैर के घर की रक्षा करनी होगी...अगर इतनी छोटी सी बात भी इस समझदार इंसान को समझ नहीं आती...तो अपना घर भी कभी ना कभी "बर्बाद"होगा....बर्बाद होकर ही रहेगा....किसी का भी खून करो....उसके छींटे अपने दामन पर गिरे बगैर नहीं रहते....!!
अगर ऐसा कुछ भी करना पुरुष का उद्देश्य नहीं है तो ऐसी बात पर बहस का कोई औचित्य....?? अगर इस धरती पर स्त्री जाति आपसे भयभीत है तो उसके भय को समझिये....ना कि तलवार ही भांजना शुरू कर दीजिये....!!
आप ही अपराध करना और आप ही तलवार भांजना शायद पुरूष नाम के जीव की आदिम फितरत है.....किंतु अपनी ही जात की एक अन्य जीव ,जिसका नाम स्त्री है....के साथ रहने के लिए कुछ मामूली सी सभ्यताएं तो सीखनी ही होती है....अगर आप स्त्री-विषयक शर्मो-हया स्त्री जाति से चाहते हो तो उसके प्रति मरदाना शर्मो-हया का दायित्व भी आपका है कि नहीं....कि आपके नंगे-पन को ढकने का काम भी स्त्री का ही है....??ताकत के भरोसे दुनिया जीती जा सकती है.....सत्ता भी कायम की जा सकती है मगर ताकत से किसी का भी भरोसा ना जीता जा सका है....ना जीता जा सकेगा.......!!ताकत के बल पर किसी पर भी किसी भी किस्म का "राज"कायम करने वाला मनुष्य विवेकशील नहीं मन जा जा सकता....बेशक वो मनुष्यता के दंभ में डूबा अपने अंहकार के सागर में गोते खाता रहे......!!दुनिया के तमाम पुरुषों से इसी समझदारी की उम्मीद में......यह भूतनाथ....जो अब धरती पर बेशक नहीं रहा....!!
nisandeh aapka aakrosh sahi hai,par.....bhasha..... babu jra-sa santulit hoti mtlb...yun aurton ,bachchiyo ke saath jis tarah ki harkate hoti hai unhe dekh kr to kisi bhi " insaan " ka khoon khol jaye ,kholna bhi chahiye.nahi kholta tbhi to ye sb ho raha hai. sdk pr chlnewali ladkiya orte hmari kuchh nahi lagti isiliye hm wo sb dekh kr andekha kr dete hai,pr ye aag jb hr insaan ke dil me jis din jlegi bachchiya asurkshit nhi rahegi. bs jra lekhni me 'uchit " shbdo ka prayog hota .likhiye aag bhi jruri hai
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