1.9.09

महंगाई, सूखा व स्वायिन फ्लू

राजकुमार साहू, जांजगीर छत्तीसगढ़

देश में जिस तरह से महंगाई से लोग परेशान हैं व सरकार बेबस नजर आ रही है। यह चिंता का विषय है। केन्द्र में बैठी यूपीए सरकार कहती है की विकास की दर में वृद्धि हो रही है और आगामी कुछ दिनों में इसका असर भी दिखेगा। चाहे दाल हो या फिर चीनी, सभी के दाम ने आम लोगों के नाक में दम कर रखा है। स्थिति यह है की जमाखोरी की शिकायत भी सामने आई। देश के कई हिस्सों में छापामार कारवाई कर अरबों रूपये के दाल व चीनी जब्त किए गए। जिस ढंग से जमाखोरी का खाद्य पदार्थों में वृद्धि करने का तरीका व्यापारी अपनाते हैं, ऐसे लोंगों के खिलाफ सख्त करवाई होनी चाहिए। सामग्री को दबाकर रख लिया जाता है ओर भुगतते हैं आम आदमी।
आज जिस तरीके से महंगाई आसमान छू रही है। इसे रोक पाने में सरकार कामयाब नहीं हो रही है। इसके लिए आर्थिक मंदी को भी जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, जबकि भारत में मंदी का ज्यादा असर नजर नहीं आया, जितना दूसरे अन्य देशों में देखने को मिला। अकेले अमेरिका में ही कुछ महीनों में ही हजारों-लाखों लोग बारोजगार हो गए। जापान सहित अन्य देशों में भी कुछ इसी तरह के हालात रहे। दूसरी योर भारत में ऐसी स्थिति नहीं रही। यहाँ के कारपोरेट जगत में प्रशिक्षित लोगों की अभी भी कमी बनी हुई है। ऐसे में सरकार का तर्क समझ से परे लगता है। जिस तरीके से महंगाई बढ़ रही है, इसने केवल आम आदमी की कमर तोडी है, क्योंकि मध्यम वर्ग के लोग तो किसी न किसी तरह से जीने का जरिए तलास लेते हैं ओर उच्च वर्ग के लोग तो ऐसे ही सक्षम होते हैं। इसके अलावा सरकारी सेवकों को तो महंगाई भत्ता भी मिल जाता है, लेकिन आम आदमी के पास न तो कोई अतिरिक्त आय का जरिया होता है ओर न ही कोई ऐसा महंगाई भत्ता। इस तरह महंगाई से आम आदमी ही पूरी तरह प्रभावित हो रहा है। केन्द्र सरकार द्वारा महंगाई पर लगाम लगाने की बात कही जाती है, लेकिन अब तक सरकार कुछ ऐसा नहीं कर पाई है। सौ दिन में हर दिशा में बेहतर प्रदर्शन के दावा का पोल खुल गई है। हर क्षेत्र में महंगाई ने अपना असर दिखाया है, सभी मामले में केवल गरीब आदमी पिस रहा है। जिस आम आदमी की बात कर देश का कमान सँभालने वाली सरकार अब उसी आम आदमी को भूल गई है। कांग्रेस के हाथ, आम आदमी के साथ, का नारा बुलंद कर लोंगों का वोट बटोरने वाली सरकार क्यों आम आदमी के हितों को भूलती नजर आ रही है, यह समझ से परे है। सरकार से जिन उम्मीदों की आम आदमी को दरकार थी, वह पूरी होती नजर नहीं आ रही है।
अब महंगाई के बाद देश की दूसरी सबसे बड़ी समस्या पर विचार करने सरकार के लिए जरुरी है। यह है सूखे की समस्या। देश में इस वर्ष सूखे की समस्या से किसान परेशान हैं, इस दिशा में सरकार का प्रयास को किसी भी सूरत में बेहतर नहीं कहा जा सकता। सरकार का कहना है की देश में सूखे से निपटने पर्याप्त खाद्यान्ना की व्यवस्था कर ली गई है, लेकिन किसानों के नुक्सान की कैसे भरपाई की जाए, इस पर किसी ने चिंता नहीं जताई है ओर न ही किसी ने इस दिशा में प्रयास किया है। सरकार ने किसानों को समर्थन मूल्य पर धान की बिक्री पर सौ रूपये देने की घोषणा की है, लेकिन इससे किसान असंतुष्ट नजर आ रहे हैं। किसानों का कहना है की महज सौ रूपये की वृद्धि से कुछ नहीं हो सकता, क्योंकि जिस तरह से इस बार खंड वर्षा तथा अन्य कारन से उत्पादन प्रभावित हुआ है। इससे सौ रूपये में क्या हो सकता है, किसान मांग कर रहें है की उन्हें रहत पैकेज सरकार को देना चाहिए, जिससे उनके नुक्सान की भरपाई हो सके। हालाँकि किसानों की मांग पर अब तक सरकार कोई निर्णय नहीं ले पी है। किसान अपनी उपज को लेकर चिंतित है ओर वे सूखे की समस्या से आहत हैं। सरकार ने भी सूखे से निपटने जो नीति बनी है, वह अपर्याप्त नजर आ रहा है। सरकार ने केवल पर्याप्त खाद्यान्ना व्यवस्था की बात कही है। अब यहाँ विचार करने की जरुरत है की क्या इतने से किसानों का भला हो सकेगा। इस बारे में सरकार को विचार करने की आवश्यकता है।
इसके बाद वर्तमान में देश की तीसरी बड़ी समस्या स्वाईं फ्लू के रूप में सामने आई है। इसने हर आदमी सहित सरकार को हिलाकर रख दी है। देश के हर कोने में इस संक्रामक बिमारी को लेकर दहशत का माहौल है। देश के पुणे से बिमारी फिलने की बात सामने आई है, इसके बाद तो जैसा देश में ओर कोई मुद्दा रहा ही नहीं। जहाँ देखे वहां केवल स्वाईं फ्लू की ही चर्चा है। इस तीसरी देश की समस्या, कब पहली समस्या बन गई, यह पता ही नहीं चला। स्वाईं फ्लू बिमारी के पैर पसारने के बाद जैसे लोगों को किसी अन्य समस्या का याद ही नहीं रह गया है। हर जगह जैसे स्वाईं फ्लू छाया हुआ है। आज की स्थिति में लोगों के मन में न तो महंगाई का भय दिख रहा है ओर न ही सूखे की। केवलचिंता है तो स्वाईं फ्लू की। पडोशी देशों से आयातित इस बीमारी ने ऐसा माहौल बनाया है की लोगो अन्य बीमारी का नाम भी भूल गए हैं। ऐसी कई बीमारियाँ हैं, जिससे देश में हर वर्ष लाखों लोग मरते हैं। इन बिमारियों को लोग भूल गए हैं। दूसरी ओर यह बताना लाजिमी है की देश में हर दिन सैकडों की जान सड़क दुर्ख्तना में होती है, लेकिन क्या किसी ने इसके लिए कभी ठोस पहल की है। यह विचारणीय है। भले ही देश में स्वाईं फ्लू को लेकर हाय-तौबा मचा है और सरकार इससे लोगों को बचाने करोड़ों रूपये खर्च कर रही है। सरकार अपने स्तर पर प्रयास तो कर रही है, लेकिन जिस तरह से इसका अब समाज जो असर पड़ रहा है, इसके बारे में सोचना जरुरी है।
स्वाईं फ्लू बिमारी अब लोगों को आपस में लड़ा भी रही है। जो लोग पुणे या फिर मुंबई से आ रहे हैं, ऐसे लोंगों को हेय की द्रिस्ती से देखा जाता है। पिछले दिनों नागपूर में पुणे से लौटे लोगों को गाँव में प्रवेश तक करने नहीं दिया गया। यह बात भी सामने आई की ऐसे लोग दुबारा पलायन करने मजबूर हो गए।
इधर छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले के मुहा मदवा गाँव में एक परिवार के लोग जब पुणे से वापस आए तो उन्हें गाँव में पहुँचने से अहले लोगों ने जाँच कराने की बात कही। बाद में इस बात से क्षुब्ध होकर पुणे से आए ग्रामीणों ने कुछ गाँव के अन्य लोगों पर प्राणघातक हमला कर दिया। कुल-मिलाकर अब स्वाईं फ्लू के नाम पर लोगों में झगडा भी होने लगा है।

1 comment:

  1. राजकुमार साहू, जांजगीर छत्तीसगढ़ aapne bahut badhiyalikha hai aapki mail id dijiye ga

    ReplyDelete