बहुत दिनों बाद ब्लॉग पर आई हूं असल में कुछ सवालों से जूझ रही हूँ आप ही जवाब दीजिये...
जब कुछ बुरा होता है तो लोग कहते हैं भगवन से प्राथना करो सब ठीक हो जायेगा, जब ज़िन्दगी के रास्तों पर सिर्फ अँधेरा दिखता है तो सब समझाते हैं खुदा से दुआ करो ज़िन्दगी रौशनी से भर जायेगी. लोग पूजा करते हैं , मन्नत मांगते हैं, रोजा रखते हैं और अपनी ज़िन्दगी का एक अहम हिस्सा भगवन के नाम पर खर्च कर देते हैं. अपनी ज़िन्दगी में दुःख हो दर्द हो उसका ज़िम्मा भगवान के ऊपर डाल कर खुद बरी हो जाते हैं. अलग अलग धर्म के अलग अलग तरीके हैं भगवान की कृपा अपने पर बनाये रखने के लिए, कोई पूजा पाठ करता है कोई नमाज़ पढता है कोई चर्च में मोमबत्ती जलाता है तो कोई गुरूद्वारे के चक्कर लगाता है. इतना आसान थोडी ना है ईश्वर को खुश करना. भई कुछ अच्छा हुआ तो कहा जाता है की हमने बड़ी मेहनत की तो उसका फल मिला लेकिन जब कुछ बुरा होता है तो उसका दोष भगवान और नसीब के सर मड देते हैं. सबका तो ठीक हैं पर जब कोई रास्ता ना सूझे, मन बेचैन हो और हिम्मत टूट जाये तो ऐसे में हम नास्तिक क्या करें ??? कहाँ जाएँ किस पर अपनी परेशानियों का बोझ डालें और खुद को नाकामी के एहसास से कैसे आजाद करें ???
फौजिया रियाज़
http://iamfauziya.blogspot.com
भगत सिंह का साहित्य पढ़िए!
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