सोचता हूँ की इस ईद पर क्या करूँ
बेरोज़गारी की जेब से कैसे खर्च करूँ,
कुछ देर लिखता हूँ फिर रुक जाता हूँ
सोचता हूँ की इस ईद पर क्या करूँ,
ख़ुशी भी अजीब सी लगती है ईद की
लाशों के ढेरों से लिपटा मेरा देश है,
आँखों से अश्क नहीं टपकता लहू है
हर किसी के हाथ में कफ़न है दोस्तों,
अजीब सा मंज़र है हर किसी दिल का
हर किसी के चेहरे पे एक खौफ सा है,
सोचता हूँ की इस ईद पर क्या करूँ
बेरोज़गारी की जेब से कैसे खर्च करूँ,
आपका हमवतन भाई ,,गुफरान (अवध पीपुल्स फोरम फैजाबाद),
AAPKI KAVITA BADI ACCHI LAGI BHAI
ReplyDeleteshuqria sameer bhai
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