आशा का सम्बल सुंदर,
या सुंदर केवल आशा ।विभ्रमित विश्व में पल-
पल ,
लघु जीवन की प्रत्याशा॥रंग मंच का मर्म कर्म है,
कहीं यवनिका पतन नही ।अभिनय है सीमा रेखा,
कहीं विमोहित नयन नही॥सत् भी विश्व असत भी है,
पाप पुण्य ही हेतु बना।कर्म मुक्ति पाथेय यहाँ,
स्वर्ग नर्क का सेतु बना ॥डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल '
राही'
सत् भी विश्व असत भी है,
ReplyDeleteपाप पुण्य ही हेतु बना।
ISKA KYA ARTH..........