4.9.09

शशि शेखर बनाम मृणाल पांडे

श्री यशवंत जी, नमस्कार
कई दिनों से बी फॉर एम पर बड़े पत्रकार शशि शेखर/मृणाल पांडे के बारे में लिखा जा रहा है। कोई "आ रे मेरे सप्पन पाट,मैं तुझे चाटूं तू मुझे चाट" स्टाइल में है,कोई तीखी आलोचना करके यह साबित कर रहा है कि भाई रुको हम भी हैं मैदान में। हम तो दोनों से कोई जान पहचान नहीं रखते। किन्तू किसी बात की हद तो होती ही है। यह मुद्दा तो रबड़ की तरह लंबा ही होता जा रहा है। दोनों पक्ष प्याज के छिलके उतरे जा रहें है। भाइयों और भी गम ज़माने में...... । बस करो। बहुत हो गया। ऐसा कुछ लिखने से उनकी सेहत पर क्या फर्क पड़ने वाला है। मगर हम जो कहना चाहतें है वो ये है...
घर में कुल मिलाकर पाँच सात मेंबर होते हैं। मुखिया किसी से कोई भेद नहीं करता। हर मेंबर की क्षमता के अनुरूप उसको अवसर उपलब्ध करवाता है। माता-पिता के लिए सभी संतान एक सामान होती है। मगर सभी को ये लगता है कि उस से पक्ष पाट होता है। पापा छोटे की अधिक पक्ष करतें है। मम्मी बड़े को अधिक लाड-प्यार करती है। हमारा दावा है कि कोई ये नहीं कह सकता कि सब उस से संतुष्ट हैं।
ऐसा घर से लेकर केन्द्र सरकार तक,यूँ कहें कि १० जनपथ तक होता है। हाथ में चार अंगुली और अंगूठा होता है। कोई एक दूसरे से मेल नहीं खाता। परन्तु सब के सब अति महत्वपूर्ण। एक ना हो तो हाथ, हाथ नहीं लगता। सब के हिस्से कोई खास काम होता है। यूँ तो जिसके हाथ नहीं होते वे भी समाज में जीते हैं।
बस यही बात मृणाल पांडे/ शशि शेखर सहित आप और हम सभी पर लागू होती है। एक आदमी के कई कई रूप होते है। कहीं उसका रूप बहुत ही आदर्श व्यक्ति का है। किसी स्थान पर उसको खडूस माना जाता है। किसी के लिए वही आदमी बहुत ही अच्छा और मददगार होता है। कई स्थानों पर उसको बिल्कुल भी पसंद नही किया जाता। कोई ये सोचे कि एक आदमी सभी लोगों के बीच एक स्वभाव के लिए जाना और पहचाना जाएगा, यह असंभव है, असंभव रहेगा। अगर विश्वास ना हो तो कोई भी इस बात को अपने आप पर आजमा सकता है।

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