20.9.09

क्या वही दिन आएगा

क्या बिहार में फिर लालू राबरी का दिन आ जाएगा । यदि ऐसा होता है तो फिर बिहार का दुर्दिन चालू। जिस तरह से उपचुनाव जीत का जश्न लालू रामविलास के लोग दारू पठाका चला कर मनाए उससे तो यही लगता है की ये लोग चुनाव जीत कर अपनी ऐयाशी को जीते हैं। बहुत अरसे के बाद बिहार देश के मुख्या धारा में चला है और कम से कम पॉँच साल और इसे नीतिश की जरुरत है। चुनाव में नीतिश कुमार कुछ अति आत्मविश्वाश के शिकार हो गए थे जिसका नतीजा सामने है। और दलबदलुओं को तो किसी भी कीमत पर गले लगाने का परिणाम भी उन्हें समझ आ गया होगा। आज के बिहार में आप अपनी शिकायत पर जवाब पा सकते हैं। बिना डर के आ जा सकते हैं। हाँ नीतिश कुमार को घमंड में नहीं बोलना चाहिए । यदि आप किसी को कुछ ज्यादा दे नहीं सकते तो उसे दुखाएँ नही।
नीतिश कुमार को कांग्रेस से सिख लेनी चाहिए की कैसे उसने ठीक चुनाव से पहले किसान का ऋण माफ कर दिया । कर्मचारी को छठा वेतन का तोहफा दे दिया और भी बहुत सारे पिटारे खोल दिए। आख़िर एक सरकार बनने के लिए यदि एक लाख करोड़ का दाव लगाना कोई ग़लत सौदा नहीं। इसका परिणाम भी निकला और कांग्रेस की सरकार भी बन गई। नीतिश को भी कुछ ऐसा ही करना चाहिए जिससे लालू से बिहार की जनता बची रहे। क्योंकि जनता को बरगलाने में लालू का कोई जवाब नहीं। आख़िर हैं तो वो वही भोली भली हरिशंकर परसाई की भेड़ भेड़िया वाली जनता जिसको नेता रूपी भेड़िया रोज खाता है नाश्ता के रूप में भोजन के रूप में । डिनर के रूप में ।

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