लालगढ से हाल ही में गिरफतार किए गए बागी नेता छत्रधर महतो फिलहाल पुलिस हिरासत में हैं। पश्चिम बंगाल पुलिस उनसे पूछताछ कर रही है। पूछताछ के नाम पर अब प्रेस में 'आधिकारिक तथ्य' भी आने लगे हैं। राज्य पुलिस के एक अधिकारी ने प्रेस को बताया कि छत्रधर महतो का एक करोड़ रूपये का जीवन बीमा पॉलिसी है। ऐसा स्वयं महतो ने पुलिस को बताया है । इसमें सत्य क्या है यह तो जीवन बीमा निगम ही बता पाएगा। इससे भी बड़ा सवाल यह है कि क्या क्षत्रधर महतो को एक करोड़ की बीमा पॉलिसी कराने का हक है ? नागरिक के नाते छत्रधर महतो को यह हक है,इसके बावजूद मीडिया में यह बात कुछ इस तरह पेश की जा रही है गोया ,एक करोड़ की बीमा पॉलिसी का हक उसे नहीं है, उसका ऐसा करना अवैध है। दूसरा सनसनीखेज तथ्य पुलिस ने यह दिया है कि छत्रधर महतो के पास उड़ीसा के मयूरभंज में एक मकान है। क्या मकान होना अपराध है ? तीसरा सनसनीखेज तथ्य यह दिया है कि छत्रधर महतो के नेतृत्व में चलने वाली 'पुलिस दमन विरोधी कमेटी' के लिए चंदा देने वालों में 150 लोगों के नाम हैं इनमें अनेक विख्यात लेखकों और संस्कृतिकर्मियों के नाम हैं। वस्तुगत तौर पर विचार करें तो पुलिस को ये सारे तथ्य अदालत में रखने चाहिए थे। पुलिस का जांच के तथ्यों को अदालत को बताने से पहले सीधे प्रेस को कानून की अवमानना है। इससे एक चीज जाहिर है कि पुलिस की लालगढ में कत्ल कर रहे लोगों तक पहुँचने में कोई दिलचस्पी नहीं है उसकी सारी दिलचस्पी उन चीजों में है जिनका लालगढ में मारे गए निर्दोष लोगों की मौत से कोई लेना देना नहीं है। छत्रधर महतो करोडपति है या खाकपति है इस चीज का लालगढ के कत्लेआम और अराजकता से कोई संबंध नहीं है। आश्चर्य की बात है कि मीडिया ने भी पुलिस के द्वारा दी गयी सूचनाओं को मुखपृष्ठ पर बड़ी खबर बनाया है। यह गलत को सही और अवैध को वैध बनाने की मीडिया साजिश है। मीडिया की पुलिसिया गुलामी है। पुलिस को छत्रधर महतो के बारे में चल रही जांच-पड़ताल को इस तरह सार्वजनिक करने का कोई कानूनी हक नहीं है।
दूसरी ओर मीडिया को तथ्य,सत्य,वैध,अवैध में फर्क करना चाहिए। मीडिया बेहूदगियों के कारण मीडिया की साख खत्म हो चुकी है। इससे भी बड़ी बात यह है कि छत्रधर महतो के नेतृत्व में चलने वाली 'पुलिस दमन विरोधी कमेटी' वैध संगठन है। उसके लिए चंदा लेना और देना कानूनन वैध है। अत: इस कमेटी को चंदा देने वालों का राष्ट्रद्रोही के रूप में प्रस्तुतिकरण सही नहीं है। इस संदर्भ में 'एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ डेमोक्रेटिक राइटस' (एपीडीआर) प्रधान सुजातो भद्र का कहना एकदम सटीक है कि ''पुलिस के सामने दिया गया बयान अदालत में ग्रहण योग्य नहीं होता। कोई नहीं जानता कि आखिरकार किन परिस्थितियों में यह बयान लिया गया है। यह भी हो सकता है पुलिस चुनकर या विकृत करके मीडिया को सूचनाएं दे रही हो। पुलिस आन्दोलन को लांछित करना चाहती है।'' सुजातो भद्र ने सही कहा है कि '' पीसीपीए को चंदा देना अपराध नहीं है।''
No comments:
Post a Comment