ब्लॉगिंग का परंपरागत मीडिया के साथ कोई बैर नहीं है। सच यह है कि परंपरागत मीडिया में काम करने वाले अधिकांश पत्रकारों के ब्लॉग हैं। हिंदी में एक खास बात यह है कि नये युवा लेखक ब्लॉग बना कर लिख रहे हैं। नये पेशेवर लोग लिख रहे हैं। हिंदी में जो अभी कम लिख रहे हैं, वे हैं हिंदी के कॉलेज, विश्वविद्यालयों में पढ़ाने वाले शिक्षक। लेकिन जो शिक्षक नहीं हैं, लेकिन युवा हैं, लिखने का मन है, विभिन्न विषयों पर अच्छी तैयारी है, ऐसे नये लेखक हज़ारों की तादाद में लिख रहे हैं। ऐसे लेखकों की संख्या को चिट्ठाजगत पर ब्लॉगरों की बढ़ती हुई सूची देख कर सहज ही समझा जा सकता है। तकरीबन 11 हज़ार ब्लॉग लेखक हैं, जो प्रतिदिन सैकड़ों लेख लिख रहे हैं। इनमें अच्छा कौन लिख रहा है, बुरा कौन लिख रहा है – पढ़ने वाला सहज ही अंदाज़ा लगा लेता है।
ब्लॉग पाठक को किसी बिचौलिये की ज़रूरत नहीं है। उसे किसी आलोचक की भी ज़रूरत नहीं है, जो यह बताये कि कौन लेखक है और कौन लेखक नहीं है। इस अर्थ में ब्लॉगिंग ने बिचौलिये आलोचक की मौत की घोषणा कर दी है। हिंदी के ब्लॉगरों का अधिकांश लेखकवर्ग उनमें से आता है, जो किसी भी मीडिया में काम नहीं करते। ब्लॉगरों में एक हिस्सा उनका भी है, जो परंपरागत मीडिया में काम करते हैं। जैसे प्रेस, रेडियो, टीवी, अध्यापक, साहित्यकार आदि। इनसे ही ब्लॉगर की पहचान बन रही है। इसमें पुरानी और नयी पहचान गड्डमड्ड हो रही है। यह लेखन का शुभ लक्षण है। हिंदी ब्लॉगिंग स्वात:सुखाय बहुजन हिताय की धारणा से प्रेरित है। जो लोग परंपरागत माध्यमों में काम करते हैं, उनमें से अधिकांश मुफ्त में ही ब्लॉग पर लिखते हैं।
ब्लॉगिंग से परंपरागत मीडिया खासकर प्रेस को कोई ख़तरा नहीं है। ब्लॉगिंग को प्रेस की विदाई समझने की भूल नहीं करनी चाहिए। धीरे-धीरे ब्लॉगिंग सूचना के स्रोत की जगह लेती जा रही है। इंटरनेट के यूज़रों का एक बड़ा हिस्सा है, जो ब्लॉग से ख़बर, सूचनाएं आदि प्राप्त करता है। ब्लॉगरों में एक वर्ग यह मानता है कि ब्लॉगिंग के आने के साथ ही प्रेस की विदाई की बेला आ गयी है।
2009 टैक्नोरती ब्लॉग सर्वे हाल ही में प्रकाशित हुआ है। विश्व ब्लॉग जगत का यह सबसे बड़ा सर्वेक्षण है। विश्व ब्लॉग सर्वे में पाया गया कि टेलीविजन, ब्लॉग और सोशल मीडिया इन तीन माध्यमों का ज़्यादा उपभोग हो रहा है। सर्वे में शामिल ब्लॉगरों ने बताया कि वे सर्च और शेयरिंग के काम पर औसतन तीन घंटे प्रति सप्ताह और वीडियो पर प्रति सप्ताह दो घंटा खर्च
करते हैं। ब्लॉग लेखकों में अधिकांश ऐसे हैं, जो प्रति सप्ताह ऑनलाइन अखबार-पत्रिका पढ़ने पर 2-3 घंटे खर्च करते हैं। ब्लॉग लेखकों में मात्र 20 प्रतिशत अपने ब्लॉग अपडेट करते हैं। 80 प्रतिशत अपडेट नहीं करते। मात्र 13 प्रतिशत हैं, जो मोबाइल के जरिये अपने ब्लॉग को अपडेट करते हैं। अंग्रेजी ब्लॉगरों में किये गये सर्वे से पता चला है कि अधिकांश ब्लॉगर उच्च शिक्षाप्राप्त हैं। अधिकांश ब्लॉगर स्नातक हैं। अधिकांश की आय प्रतिवर्ष औसत 75 हज़ार डालर या उससे ज़्यादा है। अधिकांश के एकाधिक ब्लॉग हैं। आज ब्लॉगिंग मीडिया की मूलधारा का हिस्सा है। अधिकांश ब्लॉगर दो-तीन सालों से ब्लॉग लेखन कर रहे हैं।
दो-तिहाई ब्लॉगर पुरुष हैं। 60 प्रतिशत की उम्र 18-44 के बीच है। ज़्यादातर ब्लॉग लेखक शिक्षित और समर्थ हैं। इनमें 75 प्रतिशत के पास कॉलेज डिग्री है, 40 प्रतिशत के पास स्नातक डिग्री है। तीन में से एक ब्लॉगर की सालाना पारिवारिक आय 75 हज़ार डालर से ज़्यादा है। चार में से एक ब्लॉगर की 1 लाख डालर से ज़्यादा की आय है। पेशेवर, स्व-रोज़गार करने वाले और नौकरीपेशा ब्लॉगरों की आय 75 हज़ार डालर प्रतिवर्ष है। आधे से ज़्यादा शादीशुदा, अभिभावक वाले हैं और पूरावक्ती नौकरी करते हैं। ब्लॉगरों में 67 प्रतिशत पुरुष और 33 प्रतिशत महिलाएं हैं। 51 प्रतिशत का यह पहला ब्लॉग है जबकि 49 प्रतिशत का यह पहला ब्लॉग नहीं है। इसी तरह ब्लॉग लेखकों की उम्र देखें, सात प्रतिशत ब्लॉगरों की उम्र 18-24 साल के बीच है। 25-34 साल के 25 प्रतिशत, 35- 44 साल के 28 प्रतिशत, 44-49 साल के 11 प्रतिशत, 50-54 के बीच के 10 प्रतिशत, 55-60 साल के बीच के 14 प्रतिशत, चार प्रतिशत ब्लॉगर की उम्र 65 और उससे अधिक है।
ब्लॉगिंग की बुनियाद है आत्माभिव्यक्ति और अनुभवों को साझा करने का भाव। मूलत: इन्हीं दो कारणों से प्रेरित होकर ब्लॉग लिखे जा रहे हैं। सर्वे में 70 प्रतिशत ने कहा कि वे व्यक्तिगत संतोष के लिए लिखते हैं। जो अभिरुचियों पर केंद्रित होकर लिख रहे हैं, उनकी संख्या ज़्यादा है। इसके अलावा विशेषज्ञ किस्म के लोगों का लेखन विषयकेंद्रित होता है। ये लोग राजनीतिक सवालों पर भी लिखते हैं। राजनीतिक विषयों पर स्व-रोज़गारी और पेशेवर लोग कम लिखते हैं। अधिकांश ब्लॉगर अपने को गंभीर, संवादी या विशेषज्ञ कहते हैं। ब्लॉगिंग में आत्मस्वीकारोक्ति की शैली ज़्यादा जनप्रिय नहीं है।
ब्लॉगिंग में पेशेवर लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है। व्यक्ति अनुभवों पर लिखने वालों की तादाद बढ़ रही है। इन्हें ज़्यादा लोग पढ़ते हैं। ब्लॉग के 70 प्रतिशत लेखक अंशकालिक हैं। ब्लॉग में कम लिख पाने का प्रधान कारण है ब्लॉग लेखकों का घरेलू संसार में उलझे रहना। 64 प्रतिशत ब्लॉगर का मानना है वे नियमित इसलिए नहीं लिख पाते क्योंकि उनकी पारिवारिक ज़िम्मेदारियां हैं। 30 प्रतिशत ऐसे लेखक हैं, जो कम लिखते हैं। इनके कम लिखने का प्रधान कारण है इनका नेट पर अन्य गतिविधियों में व्यस्त रहना। ज़्यादातर ब्लॉगर का मानना है उनके व्यक्तिगत जीवन पर ब्लॉगिंग का सकारात्मक प्रभाव हुआ है।
ब्लॉग मूलत: व्यक्तिगत आख्यान है। 45 प्रतिशत ब्लॉगरों ने बताया कि वे निजी अनुभवों पर लिखते हैं। 23 प्रतिशत ऐसे हैं, जो जीवन की व्यापक जानकारी में इज़ाफ़ा करने के लिए लिखते हैं। 30 प्रतिशत का मानना है उनके लेखन का मुख्य विषय अन्य हैं। 50 प्रतिशत ब्लॉगरों को अपने प्रिय राजनीतिक विषय पर बातें करने में मज़ा आता है। जबकि पेशेवरों में यह संख्या घट गयी है। पेशेवरों में 37 प्रतिशत और स्वरोज़गाररत लोगों में मात्र 33 प्रतिशत ब्लॉगर ही राजनीति में रुचि लेते हैं। 74 प्रतिशत ब्लॉगर सामाजिक और पर्यावरण के सवालों पर लिखते हैं। जबकि 66 प्रतिशत पेशेवर लोग अपने काम के वातावरण पर लिखते हैं। आर्थिक मंदी ने 81 प्रतिशत ब्लॉगरों की विषयवस्तु को खास प्रभावित नहीं किया है। वे जिन विषयों पर लिख रहे थे उन्हीं पर लिखते रहे। ज़्यादातर (70 प्रतिशत) ब्लॉग लेखक इस बात से संतुष्ट हैं कि उनके ब्लॉग पर ज़्यादा लोग पढ़ने आते हैं।
सर्वे के अनुसार 15 प्रतिशत ब्लॉगर 10 या उससे ज़्यादा घंटे प्रति सप्ताह खर्च करते हैं। जबकि अंशकालिक 24 प्रतिशत ब्लॉगर, 25 प्रतिशत पेशेवर और स्वरोज़गारयुक्त 32 प्रतिशत ब्लॉगर प्रति सप्ताह 10 या उससे ज़्यादा घंटे समय खर्च करते हैं। पांच में से एक ब्लॉगर प्रतिदिन अपने ब्लॉग को अपडेट करता है। औसतन सप्ताह में 2-3 बार ब्लॉगर अपने ब्लॉग की अपडेटिंग करते हैं। जो स्वरोज़गारयुक्त हैं वे अपने ब्लॉग की ज़्यादा जल्दी अपडेटिंग करते हैं।
ब्लॉग लेखन का विश्वव्यापी प्रभाव होता है। हाल की दो घटनाएं साक्षी हैं कि किस तरह ब्लॉग लेखकों ने राजनीतिक प्रभाव छोड़ा है। सन 2008 में संपन्न हुए ईरान के राष्ट्रपति चुनाव में ब्लॉग लेखकों ने जमकर राजनीतिक प्रचार अभियान चलाया। इसके कारण ईरान में जनप्रिय वेबसाइट, फेसबुक और ट्विटर पर पाबंदी लगा दी गयी। उल्लेखनीय है कि ईरान में पत्रकारों को लिखने की आज़ादी नहीं है। चुनाव के दौरान देश में इधर-उधर जाने की भी आज़ादी नहीं थी। इसी अर्थ में ईरान को मध्य-पूर्व का सबसे बड़ा क़ैदखाना कहा जाता है। ईरान दुनिया का पहला देश है, जिसने पहली बार किसी ब्लॉगर को ब्लॉगिंग के लिए जेलखाने पहुंचा दिया गया। इसके बावजूद प्रतिवाद के स्वर ब्लॉग पर थमे नहीं हैं। कुछ अरसा पहले अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में ब्लॉग लेखकों के राजनीतिक लेखन का जम कर इस्तेमाल किया गया। नीतिगत सवालों से लेकर व्यक्तिगत सवालों तक ब्लॉग लेखन को अमेरिकी नागरिकों ने परंपरागत मीडिया की तरह ही सम्मान और प्यार दिया।
ब्लॉग लेखन ने विचारों के संसार को सारी दुनिया में नयी बुलंदियों तक पहुंचाया है। विश्व स्तर वर अभिव्यक्ति की आज़ादी को पुख्ता बनाया है। ज़्यादा सूचना संपन्न, सहिष्णु और लोकतांत्रिक बनाया है। ब्लॉग की दुनिया को शिक्षितों के समाज में ज़्यादा ध्यान दिया जा रहा है। अभी बहुत कम शिक्षित हैं जो ब्लॉग पर जाते हैं, किंतु इनकी संख्या बढ़ रही है। यह ऐसा माध्यम है, जिसका नियंत्रण संभव नहीं है। यह विनिमय का माध्यम है। यह सरकार और राष्ट्र की सीमाओं का अतिक्रमण करते हुए विनिमय करता है। उम्मीद की जा रही है कि भावी ब्लॉग और भी ज़्यादा एक्शन केंद्रित होंगे। अभी तो ब्लॉगर के द्वारा घटनाओं पर टिप्पणी आती है – आगामी दिनों में ब्लॉग एक्शन करते नज़र आएंगे। वे घटनाओं को संचालित करेंगे।
ब्लॉगिंग का नया रूप ट्विटर के साथ दिखाई दे रहा है। आम जनता की तुलना में ब्लॉगरों के द्वारा ट्विटर का ज़्यादा प्रयोग हो रहा है। मई 2009 में पेन, शोन एंड बेर्लेंड एसोसिएट्स के द्वारा कराये सर्वे से पता चला है कि ट्विटर का इस्तेमाल करने वालों में मात्र 14 प्रतिशत आम जनता है जबकि 73 प्रतिशत ब्लॉगर हैं जो अपने ब्लॉग की जनप्रियता बढ़ाने के लिए इसका इस्तेमाल कर रहे हैं। हाल ही में ट्विटर का संचालन करने वाली कंपनी ने इस क्षेत्र में एक बिलियन डॉलर का पूंजी निवेश करने का फ़ैसला लिया है। जून 2009 तक सोशल मीडिया पर आने वालों की संख्या 44.5 मिलियन गिनी गयी। अभी ट्विटर पर विज्ञापन नहीं लेने का फ़ैसला किया गया है लेकिन भविष्य में विज्ञापन नहीं दिखेंगे – यह कहना मुश्किल है।
बहुत विस्तृत जानकारी। लगभग थीसिस जैसी। धन्यवाद।
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