-
अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा को शांति के लिए नोबुल पुरस्कार मिला यह खुशी की बात है। वह निश्चित रूप से इसके हकदार हैं। अमेरिका में विगत चालीस सालों में पहलीबार एक ऐसा व्यक्ति राष्ट्रपति बना है जो शांति की भाषा बोल रहा है। युद्ध की भाषा की जगह शांति की भाषा का माध्यमों और सार्वजनिक विमर्श के केन्द्र में आना ओबामा की सबसे बड़ी सफलता है। वह इसके लिए नोबल पुरस्कार के हकदार हैं। विगत दो दशकों से हमारे कान शांति और सदभाव की भाषा सुनने को तरस गए।
ओबामा ने वाक्कला के जरिए अमरीकी जनता को सम्मोहित करने की कोशिश की, कहीं प्रत्यक्ष,कहीं प्रच्छन्न,कहीं रंगभेद के खिलाफ तो कहीं आर्थिकमंदी और आर्थिक कुप्रबंधन के बारे में बुश प्रशासन पर प्रत्यक्ष हमले किए। यह इमेज बनायी कि वह किसी से नफरत नहीं करता और व्यक्तिगत हमले नहीं करता।
ओबामा ने अपने भाषणों में कभी भी अश्वेत और यथास्थिति को बदलने वाले की इमेज से विचलन नहीं दिखाया। अनुशासित ,सौम्य,शांत राजनीतिज्ञ की इमेज प्रस्तुत की। जॉर्ज बुश ने अमेरिका की आक्रामक पहचान बनायी थी, अपने शासन के दौरान मीडिया में युध्द की भाषा को आमभाषा बनाया और इस तैयार वातावरण का ओबामा ने चर्च पादरियों की धार्मिक - आक्रामक भाषणशैली के जरिए दोहन किया। चर्च पादरियों की धार्मिक प्रवचनकला आक्रामकता को भक्ति और उन्माद में तब्दील करती है। अनुकरणमूलकता का माहौल बनाती है। श्वेत ईसाई कट्टरपंथी समुदायों को अपील करने में सफलता हासिल की। 'अस्मिता के सम्मोहन' की राजनीति के आधार पर ही ओबामा ने 'एकता' और 'परिवर्तन' के नारे को जनप्रिय बनाया। ओबामा की चर्चशैली की भाषणकला ने आम ईसाई भावबोध को सीधे सम्बोधित किया और इसके कारण उसे श्वेत कट्टरपंथियों को आकर्षित करने में भी मदद मिली।
ओबामा ने अपने भाषणों में निरंतर अमरीका की सैन्य महानता को उभारा है। सैन्य महानता को सिध्द करने के लिए ओबामा ने पाकिस्तान के खिलाफ नए युध्द की घोषणा भी की है। ओबामा का चरित्र युध्द को गलत नहीं मानता ,यहां तक कि ओबामा ने इराक युध्द को भी गलत घोषित नहीं किया है।
ओबामा के नोबुल पुरस्कार की नींव उनके शपथ ग्रहण समारोह में दिए भाषण ने रखी। शपथग्रहण के मौके पर दिए गए भाषण की मूल दिशा सकारात्मक थी। ओबामा ने सबसे जटिल संकट की अवस्था में 'सद्भावना और धैर्य' के साथ काम करने और '' विभिन्न देशों के बीच व्यापक समझ और सहमति'' पर जोर दिया। गंभीर आर्थिक संकट के खिलाफ 'सख्त' और 'शीघ' कार्रवाई का वायदा किया। ओबामा अच्छी तरह जानते हैं कि आर्थिक संकट ने संचित पूंजी को घरों के बाहर निकाल दिया है यही वजह है कि ''विकास की नयी आधारशिला'' रखने की बात कही।
ओबामा ने कहा अमरीका के सत्तर साल के इतिहास का यह सबसे भयानक आर्थिक संकट है। इराक और अफगानिस्तान युध्द ने नयी जिम्मेदारियां सौंपी हैं। ओबामा की स्वीकारोक्ति थी अमरीकी अर्थव्यवस्था ' बुरी तरह कमजोर है।' इसे दुरूस्त करना सर्वोच्च प्राथमिकता है। पहलीबार ऐसा हुआ था कि किसी शपथ ग्रहण भाषण में नए राष्ट्रपति ने पुराने राष्ट्रपति की नीतियों की तीखी आलोचना की। ओबामा ने कहा अर्थव्यवस्था 'लालच और गैर जिम्मेदारी ' की शिकार हो गयी है। अर्थव्यवस्था का संकट बताता है कि बाजार उछलकर ' सतर्क आंखों के परे ' चला गया। विदेशनीति पर प्रशासन का रवैयया व्यक्त करते हुए ओबामा ने कहा अमरीका इराक से 'जिम्मेदाराना' ढंग से निकलना चाहता है। अफगानिस्तान में शांति स्थापित हो। ओबामा ने यह नहीं बताया कि अमरीकी सेनाएं कब तक इराक से वापस लौटेंगी। अमरीका-इराक समझौते के अनुसार अमरीकी सेनाओं को सन् 2011 के अंत तक इराक छोड़ देना है। ओबामा ने अफगानिस्तान में तालिबान की तेज सरगमियों को देखते हुए अमरीकी सैनिकों की संख्या में इजाफा करने का आदेश दिया है।
ओबामा का नयी '' आधारशिला'' से क्या तात्पर्य है ? यह चीज कुछ अर्से के बाद ही साफ हो पाएगी। ओबामा ने कहा ''कानून का शासन और मानवाधिकारों'' को संरक्षित करने की जरूरत है। '' आदर्श और सुरक्षा'' के बीच में से चुनने की पाखण्डी कोशिशों को एकसिरे खारिज करके बुश प्रशासन की नीति को अस्वीकार किया और सुरक्षा और आदर्श के संतुलन पर जोर दिया।
ओबामा का शपथ ग्रहण समारोह 90 मिनट चला जिसमें ओबामा का भाषण 15 मिनट का था। समारोह स्थल पर लाखों लोगों ने कड़कड़ाती ठंड़ में अलस्सुबह से ही जमा होना आरंभ कर दिया था। अमरीका के विभिन्न प्रान्तों से लाखों लोगों ने आकर शिरकत की। युध्द और आर्थिक संकट ये दो सबसे बड़ी समस्या हैं जिनके समाधान की ओर साधारण लोग आंखें लगाए बैठे हैं। इसके अलावा अमरीका की शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा का पूरी तरह कबाड़ा हो चुका है। इन सबको प्राथमिकता के साथ कैसे ओबामा हल करते हैं इसकी ओर सबकी नजरें लगी हैं।
ओबामा ने अपने भाषण में इन्फ्रास्ट्रक्चर, स्वास्थ्य परिसेवा,परिवहन, संचार वैकल्पिक ऊर्जा के क्षेत्र में ज्यादा बडे कार्यों की ओर ध्यान देने की बात कही। बुश प्रशासन में विज्ञान का दर्जा कम हुआ। विज्ञान को ओबामा पुन: सर्वोच्च प्राथमिकता देना चाहेंगे। ओबामा को बुश प्रशासन से युध्द की विरासत मिली है उससे अमरीका कैसे निकलता है यह सबसे मुश्किल जगह है जिसकी ओर सारी दुनिया का ध्यान लगा है। अमरीका अपने युध्दपंथी इरादों के बाहर निकल पाता है तो यह मानवता की सबसे बड़ी सेवा होगी।
अमरीका का वायदा है कि इराक से आगामी डेढ़ साल में सेनाएं वापस आ जाएंगी। किंतु अफगानिस्तान से कब सेनाएं लौटेंगी ? कोई नहीं जानता। दुनिया के सौ देशों में 750 से ज्यादा सैन्य ठिकानों से अमरीकी सैनिक स्वदेश कब लौटेंगे कोई नहीं जानता। अफगानिस्तान,ईरान और पाकिस्तान को लेकर नयी मोर्चेबंदी शुरू हो गयी है। इससे भविष्य में भारतीय उपमहाद्वीप में स्थितियां और भी बिगड़ सकती हैं।
अमरीकी अंधलोकवाद हमें चीजों,घटनाओं और व्यक्तियों को सही परिप्रेक्ष्य में देखने नहीं देता। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को नोबुल शांति पुरस्कार की घोषणा जैसे ही हुई उनके व्यक्तित्व पर कीचड उछालने वाले अपने पाजामे से बाहर चले आए हैं। सोशल नेटवर्किंग से लेकर नेट के ब्लागरों तक और विभिन्न अखबारों के सम्पादकीय पन्नों तक ओबामा के आलोचकों का
तांता लगा है। ओबामा के राष्ट्रपति बनने के बाद का अमेरिकी राजनीतिक सच क्या है ,इस पर गौर से विचार करें। ओबामा के प्रशासन की सबसे बड़ी खूबी है कि जो उनकी सबसे बड़ी प्रतिद्वंद्वी थी हिलेरी क्लिंटन ,वह उनके प्रशासन का हिस्सा है,वे लोग जो ओबामा की नीतियों के आलोचक थे अथवा बुश प्रशासन में थे, वे भी उनके प्रशासनिक अमले का हिस्सा हैं। कल तक जो अमेरिकी राजनयिक
युद्ध के लिए काम कर रहे थे उन्हें शांति की तलाश में झंझट के इलाकों में नयी जिम्मेदारियां दी गयी हैं। सेण्ट्रल यूरोप में प्रक्षेपास्त्र लगाने के गलत फैसले को दुरूस्त किया गया है। गुआनतामाओवे यातनाशिविर को बंद करने का फैसला लिया गया है ,इस तरह के यंत्रणा केन्द्र बनाए जाने की ओबामा ने राष्ट्रपति पद संभालते ही निंदा की। अभी यह यंत्रणा केन्द्र बंद नहीं
हुआ है उसके बंद किए जाने की प्रशासनिक कार्रवाई चल रही है। ईरान और उत्तर कोरिया से सीधे युद्ध का रास्ता त्यागकर ओबामा ने बातचीत का रास्ता चुना है। फ्रीडम ऑफ इनफोरमेशन एक्ट के दुरूपयोग की आलोचना की है। सारी दुनिया में स्वास्थ्य केन्द्र खोले जाने की हिमायत की है। फिलिस्तीनियों के मानवाधिकारों के पक्ष में खुलकर बयान दिया है। कोरियाई इलाके को
नाभिकीय अस्त्रों से रहित करने का संकल्प दोहराया है। बुश प्रशासन में विज्ञान को हाशिए पर डाल दिया गया था,ओबामा के राष्ट्रपति बनाए जाने के बाद विज्ञान को फिर से सम्मानजनक दर्जा मिला है। सारी दुनिया में परमाणु निरस्त्रीकरण की नीति लागू हो इसका संकल्प लिया है। ग्लोबल पर्यावरण में आए असंतुलन के यथार्थ को स्वीकार किया है। राष्ट्रपति बनाए जाने
के बाद से प्रतिदिन तरह -तरह के अध्यादेशों और अधिनियमों के जरिए अमेरिकी नागरिकों को आर्थिकमंदी के रौरव नरक से बाहर लाने के अभूतपूर्व प्रयस किए हैं। कल जो लोग गरीबी और भुखमरी के कारण घरों से सडकों पर आ गए थे आज वे चैन की सांस ले रहे हैं और घरों में लौट चुके हैं।
ओबामा का ही दुस्साहस था कि उन्होंने खुलकर यह स्वीकार किया है कि अमेरिका के यातना शिविरों में मानवाधिकारों का हनन होता रहा है,यंत्रणा केन्द्रों में बुनियादी सुधारों की जरूरत है। अभी भी आतंकवाद जैसी गतिविधियों में शामिल व्यक्तियों को यंत्रणा देने के तरीकों में सुधार नहीं आया है। इसके बावजूद अमेरिकी प्रशासन को मानवधिकारों के सवाल पर संवेदनशील बनाने में ओबामा को काफी हद तक सफलता मिली है। कम से कम ओबामा ने आम लोगों में उम्मीदें जगायी हैं। अपने शपथग्रहण समारोह में उन लोगों को सम्मान को मंच पर शिरकत का अवसर दिया जिन्हें हम समलैंगिक कहते हैं, फंडामेंटलिस्ट कहते हैं। 'अन्य' की अस्मिता की रक्षा के सवाल को प्राथमिकता दी है। क्या इतने काम मात्र 9 महीनों में करने के बावजूद ओबामा को नोबुल पुरस्कार देना सही नहीं है ? ओबामा अपने भाषणों से बार-बार शांति,सामुदायिकता और आशा के संदेश को संप्रेषित कर रहे हैं, विश्व मानवता और अमेरिकी जनता के लिए इस भावना ने मंदी के कष्टों में मलहम का काम किया है।
No comments:
Post a Comment