मित्रों,अभी तकनिकी रूप से अक्षर ज्ञान हो रहा है ब्लागिंग का.सहयोग मिला तो बना रहूँगा।
इस बार के नोबल पुरस्कार कई मायने में हट के है.बढ़िया-बढ़िया बोलकर शान्ति का नोबल प्राप्त करना ख़ुद ओबामा कोआश्चर्यचकित कर गया,वहीं रसायनशास्त्र के विजेता को कहना पद्रह हैकि भारत से आने वाली मेल को हटाने में उनके २ घंटे जाया हो रहे है।
हम बात करेंगे अर्थशास्त्र के नोबल की.आधुनिक अर्थव्यवस्था की मान्यताओं को पूरी तरह नकारते हुए,सहयोग एवं सामुदायिक प्रबंधन की भावना पर बल देने वाली प्रोफेसर अल्नोर ओस्त्राम ने तथाकथित विकास को आइना दिखाने का काम किया है. सामुदायिक सहयोग को समझाना हो तो मसूरी से बस १५ किलोमीटर दूर जौनपुर ब्लाक में आईये.इस ब्लाक को उत्तराखंड का सबसे पिछड़ा इलाका माना जाता है.यहाँ जीवित है वो परंपराये जिनके विश्लेषण ने ओस्त्रम को पहली महिला विजेता बना दिया अर्थशास्त्र नोबल का।
खेत में खाद डालनी हो तो हर घर से एक महिला जायेगी,बिना उचित कारण के अगर कोई अनुपस्थित रहता है तो उसे अपने खेत में अकेले मेहनत करनी होगी,जो पहाड़ के खेतों के लिए दुरूह कार्य है.याद रखिये यहाँ अभी गोबर ही डाली जाती है.वनप्रबन्धन की कला भी इनकी पुस्तैनी है. जंगल के किस इलाके से कब घास निकालनी है नियत है.पेड़ों के पत्ते कब काटने हैं,किस से साल में कितनी बार काटने हैं ये भी पीढियों से तय है.किस घर के लोग किस इलाके में चुगान कराएँगे ये भी निश्चित है.लेकिन अब विकास की बयार यहाँ भी लग रही है,पहाड़ से सड़क फ़िर बाज़ार और वहां से देहरादून -मसूरी भागने का चलन बढ़ रहा है.स्कूल रिटर्न पीढी आत्मकेंद्रित हो रही है.नेतागिरी और ठेकेदारी की आंधी भी तेज है क्योंकि सरकारी योजनायें खपानी हैं.अब भी समय है की उन परम्पराओं को सहेजा जाए जिनके अध्ययन ने नोबल दिला दिया.
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