17.10.09

बेरोजगारी की बात निराली
सबको मुश्किल मैं डाला
जनता भूखी मरती है
और सरकार करे घोटाला !
बेरोजगारी ने देश मैं अपने
यह कैसा डाका डाला
पेट् सबके लग गया है
बेकारी का ताला!
बेरोजगारी ने बना दिया है लोगों को गद्दार !
कलम की जगह सब उठा रहे अब
चाकू और तलवार !
पड़े लिखे बेरोजगारों की संख्या मैं अब हो रहा है इजाफा !
उधर दिन रात कर घोटाले सरकार कमा रही मुनाफा !
बाहर दुनियादारी के और घर मैं माँ बाप के इनको सुनने पड़ते हैं ताने !
पुलिस भी अब तो लगी हुई है इनको झूटे आरोपों मैं फंसाने !
समझती क्यो नही इनके दर्द को हमारी यह सरकार !
हर बेरोजगार को अपने हक़ के लिए लड़ने का है अधिकार !
क्यो न मांगे नौकरी जब सरकारी आदमी भी खाते हैं बेगार !
कह भी नही सकते सरकार को क्या की भ्रष्ट हुआ संसार !
भ्रश्ताचारो को निकाल के ही देदो
हम को तुम रोजगार !
ताकि गरीबी न हमको मजबूर करे उठाने पे हथियार !

2 comments:

  1. दीप की स्वर्णिम आभा
    आपके भाग्य की और कर्म
    की द्विआभा.....
    युग की सफ़लता की
    त्रिवेणी
    आपके जीवन से ही आरम्भ हो
    मंगल कामना के साथ

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  2. बड़ी संवेदना है आपकी कविता में. अक्सर पढता हूँ आपकी भड़ास. लेकिन कभी दो घडी कोई गुफ्तगू नहीं की आपसे. लेकिन आपकी कविता पढ़ कर ऐसा लगा जैसे दिल के भावः दिल को छु गए हो. बधाई के साथ साथ गुफ्तगू परिवार की और से दीपावली की हार्दिक शुभ कामनाये. आपकी कविता पढ़ कर इतना तो कह सकता हूँ की आप अपने दिल के भावः को शब्दों में पिरो कर कविता लिखते है और मैं उन्ही भावो से गुफ्तगू करता हूँ. पुनः बधाई और दीवाली मुबारक

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