प्रकाश चंडालिया
३० नवम्बर को भाजपा की आवाज पर बंगाल बंद रहेगा, इसकी कल्पना किसी ने नहीं की थी. लेकिन मोटे तौर पर कहा जा सकता है की सोमवार ३० नवम्बर को कमोबेश बंगाल पूरी तरह बंद रहा. जगह-जगह तोड़फोड़ हुई. हालाँकि बंद के दिन तोड़फोड़ की रश्म अब कम ही निभाई जाती है, क्यूंकि लोगबाग बंगाल बंद के किसी भी राजनैतिक दल के आह्वान के साथ ही अपना कारोबार बंद रखने का मन बना लेते हैं. बंगाल में पिछले कुछ वर्षों से बंद छुट्टी का त्यौहार मन जाता रहा है. इसके लिए लोग सबसे ज्यादा तृणमूल पार्टी की मुखिया ममता बनर्जी का शुक्रिया अदा करते हैं. टेलीविज़न चैनलों पर बंद का आह्वान करने वालों का परोक्ष-अपरोक्ष जमकर प्रचार किया जाता है. आमतौर पर बंगाल बंद सोमवार या शनिवार को किया जाता रहा है, ताकि लोगों को रविवार की छुट्टी के साथ एक और दिन तफरीह करने का मौका मिल सके.
बंगाल की जनता को निट्ठल्ला बनाये रखने में वामपंथियों ने काफी मेहनत की है. पहले यहाँ इस काम में यूनियनें पुरजोर कोशिश करती थीं. आये दिन हड़ताल. हर छोटी-बड़ी मांग के साथ हड़ताल का एलान. हड़ताल के दिन जमकर मारपीट. सरकारी वाहनों में तोड़फोड़. रेल की पटरियों पर झंडे लेकर सो जाना और रेलवे के तार पर केले के पत्ते फेंक देना, यह सब आम बातें थीं. अब यह प्रयोग काफी आसान हो चला है. पुलिस प्रशाशन भी ज्यादा माथापछि करने के मूड में नहीं दीखता, क्यूंकि बंगाल में अब हड़ताली लोग पुलिसकर्मियों की भी बाकायदा ठुकाई-पिटाई करने लगे हैं. इस काम में सत्तारूढ़ वामपंथी दलों के साथ साथ कांग्रेस और तृणमूल का नंबर सबसे पहले आता रहा है. एक और पार्टी है- एस्युसिआयी. कहने को तो यह पार्टी वामपंथी विचारधारा वाली है, लेकिन कुछ सालों से इसने ममता बनर्जी का दामन पकड़ रखा है. इस पार्टी के कार्यकर्ता तोड़फोड़ में काफी हूनर रखते हैं. इनकी महिला शाखा बड़े-बड़े शोरूमों के शीशे तोड़ने में माहिर है.
लेकिन यह पहला मामला है, जब बंगाल में भाजपा ने अपने बूते बंगाल बंद को कामयाबी दी. आरामपसंद जनता भाजपा की शुक्रगुजार है की शनि और रविवार के साथ नवम्बर का आखिरी सोमवार भी छुट्टी खाते में चला गया. यहाँ बंद से अगर किसी को परेशानी होती है तो वो सिर्फ स्कूल जाने वाले बच्चे होते हैं. दफ्तरों में काम करने वालों से पूछा जाय तो बंद पर नाराजगी जाहिर कर देंगे, पर मन ही मन बंद करने वालों का शुक्रिया अदा करेंगे. बंगाल में आम तौर पर पूजा की छुट्टियों के दौरान बंद का प्रसाद उपहार स्वरुप देने की भी परंपरा रही है. इस साल ममता बनर्जी ने बंद का उपहार कम दिया, सो यह पुण्य भाजपा ने कमा लिया. भाजपा को वैसे भी इनदिनों पुण्य की ज्यादा जरूरत है. संक्रमण काल से गुजर रही इस पार्टी के लिए बंगाल में कोई जगह नहीं है. लगभग १० वर्षों से यह पार्टी यहाँ मौज में है. न कोई आन्दोलन, न कोई जिम्मेदारी. हाँ, एक दौर था जब इसका एक एम् एल ए हुआ करता था. अब वह बेचारा भी जिम्मेदारी से फारिग है. कोलकाता नगर निगम में दो-तिन पार्षद जरूर हैं, पर उनकी कोई सूने, इसके परवाह प्रदेश भाजपा को नहीं है.
कुल मिलकर बंगाल में भाजपा के पास कभी ११.६९ प्रतिशत वोट थे, लेकिन अब यह प्रतिशत एक-दो तक सिमट गया है. ऐसी स्थिति में भाजपा के आह्वान पर बंगाल बंद हो जाना चौंकाने वाला तथ्य नहीं तो और क्या है?
वैसे कांग्रेस ने तृणमूल का दामन पकड़ रखा है. वामपंथी बिचारे अपनी अंतिम सां गिन रहे हैं. इसलिए लोगों का मानना है की ३० नवम्बर के भाजपा के बंगाल बंद को परोक्ष रूप में वामपंथियों ने समर्थन देकर तृणमूल को टेंसन देने की कोशिश की है. वर्ना दिन भर की खबरों पर गौर करें तो पता चलेगा की हर छोटी-बड़ी जमायत पर लाठी-गोली बरसाने वाली पुलिस भाजपाकर्मियों पर मेहरबान बनी रही. उन्हें सियालदह और हावड़ा स्तासों पर ट्रेन रोकने की छुट दी, एअरपोर्ट पर हंगामा करने दिया. वी आई पी रोड, धर्मतल्ला, डलहौसी, बड़ाबाजार अदि अंचलों में जमकर उधम मचने की छुट रही. यही नहीं, सचिवालय के पास मंडराने वाले परिंदों पर नजर रखने वाली पुलिस ने आज भाजपाईयों की राईटर्स बिल्डिंग तक पहुँचने दिया. भाई लोगों ने सचिवालय के पास बाकायदा पुतला फूंका, फिर मीठी ताना-तानी के बाद गिरफ़्तारी दे दी. विरोधी दलों के प्रति इतना प्यार वामपंथी पुलिस ने पहले कभी नहीं बरसाया.
बहरहाल, ३० नवम्बर का बंद बंगाल में भाजपा को तो नयी साँसें देगा ही, भले इस से राज्य का कोई फायदा हो या न हो.
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