28.1.10
मीडिया की स्थिति कार्यक्रम के चयन के मामले में दिनोदिन उसके सोच के दिवालियेपन का धोतक होती जा रही है. पहले राखी सावंत का स्वयाम्बर अब राहुल महाजन का . राखी का स्वयाम्बर तो समझ में आता भी है पर राहुल महाजन . राहुल किस दृष्टि से एक योग्य वर नज़र आते है यह तो किसी भी साधारण समझ वाले आदमी की समझ में न आये . पर टीआरपी के इस दौर में सही -गलत की पहचान लगता है मीडिया में क्षीद होती जा रही है. पहले स्वयाम्बर उस व्यक्ति या स्त्री का होता था जिसके गुडो की चर्चा दूर -दूर तक होती थी. राहुल महाजन के गुडो (?) की भी चर्चा मीडिया में पिछले कुछ वर्षो से खूब रही है . चाहे वो ड्रग लेने से लेकर जेल जाने सम्बंधित हो या शादी के बाद पत्नी की मार-पिटाई फिर तलाक़ से सम्बंधित हो. राहुल के गुडो का बखान यही नहीं रुकता है ,बिग बॉस में महिला कलाकारों से उनकी नजदीकियो को लेकर रोज अख़बार रंगे रहते थे. इतनी जानकारियो के बाद भी अगर कोई परिवार अपनी लड़की की शादी राहुल से करना चाहेगा तो कहना पड़ेगा कि आज के बाज़ार में सब कुछ संभव है.बाज़ार इस लिए कि आज पूरा समाज एक बाज़ार में तब्दील हो गया है जो बिक रहा है वो टिक रहा है. चाहे गलत या सही. क्या जीवन मूल्यों के ये माप- दंड हमे सही रास्ते पर ले जाये गे दूर तक. अर्थशास्त्र में दो तरह के फायदे होते है- छोटे समय के लिए और दूसरा लम्बे समय के लिए . अर्थशास्त्र कहता है कि लम्बे समय के फायदे के लिए छोटे समय के फायदे को दरकिनार कर देना चाहिए . पर आज समाज और मीडिया का हर कदम यह बतलाता है कि छोटे समय का फायदा अपनाओ , आगे किसने देखा है तो लम्बे समय के फायदे भी किसने देखे है .क्या ये सोच हमे आगे तक ले जायेगी . एक और सोच हो सकती है कि मीडिया किसी गरीब -काबिल , हुनरमंद ,जूझारू लड़के को इस कार्यक्रम के माध्यम से समाज के सामने लाये .इस कवायत से समाज,चैनल और उस लड़के का भी भला हो सकता है और समाज यह सोचने पर मजबूर हो सकता है कि इस ज़माने में संघर्ष ,मेहनत से भी आकाश की बुलंदिया छुई जा सकती है बजाय कि केवल किसी नामी पिता के नाम के सहारे अपने हिलते डुलते वजूद को समाज में खडा करना . पर समाज -मीडिया क्या यह करने के लिए तैयार है ? अगर नहीं तो आनेवाले दिनों में मीडिया समाज का प्रहरी होना का हक भी खो देगा. वह दिन दूर नहीं कि जब लोग मीडिया , नेता , नौकरशाह सभी को एक साथ खडा कर के कोसना शुरू कर देगे. अभी तक तो जनता मीडिया के माध्यम से नेता , नौकरशाह और समाज की बुरईयो का मुकबला करती आयी है. जिस दिन वो इस अंतर में फर्क करना बंद कर देगी उस दिन मीडिया समाज में खुद को कहा खडा पायेगा.
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