25.1.10

रायपुर प्रेस क्लब में ब्लोग्गर्स मीट


कल, २४ जनवरी २०१०, पूर्व नियोजित समयानुसार रायपुर प्रेस क्लब में ब्लोग्गर्स मीट का आयोजन हुआ. सभाग्या है मेरा कि मुझे भी उसमें सम्मिलित होने का सुअवसर प्राप्त हुआ. पहली बार किसी गोष्ठी में जाने का मौका मिला और लोगों को अपनी बात कहने का भी. गौरव की अनुभूति हुई वहां कै बड़े और दिग्गज पत्रकारों और ब्लोग्गर्स के बीच खुद को पाकर.


सबसे पहला धन्यवाद डॉक्टर महेश सिन्हा जी का करूँगा, जिन्होंने न मुझे उस मीट में शामिल होने का मौका दिया बल्कि खुद मुझे मेरे घर से लेने आये और वापस घर तक पहुँचाया भी. अभी कुछ ही दिनों पहले की ही तो बात है मैं उन्हें जानता तक नहीं और आज उनसे एक गहरा अनजाना रिश्ता बन गया है.


ब्लोग्गर्स मीट का आरम्भ लगभग १५:०० हुआ. यह रायपुर या यों कहें छत्तीसगढ़ का पहला ब्लोग्गर्स मीट था. कई बड़े नाम भी मौजूद थे और कई नए चेहरे भी. गोष्ठी की शुरुआत श्री अनिल पुसदकर जी ने की. शुरुआत हुई ब्लॉग की उपलब्धता, इसके रूप, मजबूती और इसके योग्यता से, योग्यता कि कैसे ब्लॉग पांचवे खम्भे के रूप में उभर कर आ रहा है और समाज की समस्याओं और निवारण का एक अच्छा माध्यम है.... अनिल जी ने छत्तीसगढ़ की खराब होती छवि पर भी सवाल उठाया. ये एक अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा भी है. हम कमियों को तो बढा-चढ़ा कर लिखते, छापते और सुनाते है पर सच्चाई और वास्तिवकता से कोशूं दूर रहते है. अनिल जी ने एक बहुत ही उम्दा सुझाव दिया कि एक ऐसा कमुनिटी ब्लॉग बनाया जाये जिसमें छतीसगढ़ के सही समस्याएं, उसकी उपलब्धि सही और निष्पक्ष रूप से लोगों तक पहुँचाया जा सकें... मैं उनके इस प्रयास को सार्थक और सही मानता हूँ.

अनिल जी के बाद श्री बी एस पाबला जी ने लोगों को संबोधित किया और अपना परिचय और विचार लोगों के सामने रखें.लगभग 60 ब्लोग्गर्स का समूह मौजूद था (कुछ अन्य ब्लोग्गर्स व्यक्तगत समस्याओं के कारण मौजूद नहीं हो सके), ये एक छोटी मगर सार्थक शुरुआत थी. एक के बाद एक सभी लोगों को अपने विचार रखने का मौका मिला. श्री ललित शर्मा जी से कई जानकारियाँ मिली. कुल मिलाकर कहूँ तो इस मीट में कई सारी नयी जानकारियाँ और विचार सामने आये. कोई ब्लॉग सिर्फ शौक के लिए लिखता है तो कोई इसे धनार्जन का श्रोत भी मानता है. बोलने का मौका मुझे भी मिला. पर उत्साह, डर और घबराहट में शायद मैं अपने मन की बात कह ही नहीं पाया. जाने से पहले मैंने सोंचा था ये कहूँगा, वो कहूँगा, ऐसे बोलूँगा, वैसे अपनी बात रखूँगा... पर जब बोलने का मौका आया तो सारे शब्द गायब हो गए.


मीट के दौरान कही गयी एक बहुत ही अच्छी और सार्थक जोक मुझे याद है... "दो सेब के पेड़ आपस में बात कर रहे थे. पहले ने दुसरे से कहा कि एक दिन ऐसा आएगा जब सिर्फ सेब ही सेब के पेड़ बचेंगे बाकी सब ख़त्म हो जायेंगे. तो दुसरे ने सवाल किया वो कैसे... पहले ने कहा, जिस तरह लोग आपस जात धर को लेकर में लड़ रहे है, मर रहे है मार रहे, एक दिन सिर्फ हम ही तो बचेंगे, आदमी आदमी को मार रहा है, जानवरों को मार रहा है और जानवर भी दुसरे छोटे जानवरों को मार रहे है... एक दिन सिर्फ हम ही तो बचेंगे... तो दुसरे सेब के पेड़ ने धीरे से कहा, कौन सा सेब का पेड़ बचेगा? लाल वाला या सफ़ेद वाला" ये सिर्फ एक जोक नहीं था बल्कि बहुत बड़ी सोंच और चिंता की बात थी इसमें...

सभी ब्लोग्गर्स साथियों के बीच एक मात्र महिला ब्लोग्गर भी थी, श्रीमती तोशी गुप्ता. उनका चर्चा मैंने इस लिए किया क्योंकि उन्होंने ब्लॉग के माध्यम से एक शसक्त शुरुआत की थी पर कुछ लोगों की धमकियों ने उन्हें लिखने से डरा दिया. मैं तोशी जी से इतना ही कहूँगा,
"कि तमाशबीनों की दुनिया है यह, बुरा किसी को दीखता नहीं..
और बुरा जो दिखाने की कोशिश करो तो और भी कुछ दीखता नहीं...
ये दुनिया झूठ और फरेबों से चल रही आज
यहाँ इमानदारी की कीमत नहीं, सच बिकता नहीं...."


सबके परिचय और विचार विमर्श के बाद सभा का अंत मेरी कुछ पंक्तियों से हुआ था....
"अपनी जिंदगी से न यूँ मुझे किनारा कीजिये
ग़मों में ही सही अपनी, मुझे अपना सहारा कीजिये
तेरी महक सदा पाता हूँ पास अपने
कोई तो अपनी मौजूदगी का इशारा कीजिये
अपनी जिंदगी से न यूँ मुझे किनारा कीजिये

होश खोता रहा है आइना भी तुझे देख-देखकर
यूँ तो खुद को न सामने उसके संवारा कीजिये
इन्तेजार में तेरी एक झलक पाने को तो चाँद भी है
इक पल का ही सही, वक़्त कोई अपना हमारा कीजिये
अपनी जिंदगी से न यूँ मुझे किनारा कीजिये

गुनाह की है तुझसे मोहब्बत करने कि मैंने
खतादार हूँ तेरे हुस्न की आरजू की है
सजा देने को ही सही, एक बार तो
अपनी जिंदगी में शामिल दोबारा कीजिये
अपनी जिंदगी से न यूँ मुझे किनारा कीजिये
ग़मों में ही सही अपनी, मुझे अपना सहारा कीजिये"

ब्लोग्गर्स मीट के बाद रात्री भोजन की भी व्यवस्था की गयी थी जो कि एक शानदार और यादगार था... खाने के साथ साथ लोगों की बातें और मजाकें खाने में और मसाला डाल रहे थे... रात करीब १० बजे लोगों से विदा ली फिर मिलने के लिए...

कल की शाम मेरी सबसे ज्यादा यादगार और हसीं शाम थी... एक ही शाम में मैंने उत्साह, गर्व, डर, घबराहट और ख़ुशी सारी भावनाओं का मजा ले लिया. महेश अंकल का साथ, पाबला जी की गर्मजोशी से मिलाया गया हाथ (मेरे हाथों में अभी भी दर्द है), ललित शर्मा जी की मूंछें, अनिल जी का व्यवहार और बाकी बंधुओं का सौहाद्र ... हमेशा याद रहेगा...

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