27.1.10

ये टिकट नहीं आसान ?

राजनीती में बड़े - बड़े लोगो के छक्के छूट जाते हैं| और जब समय चुनाव का हो तो पता चलता है की राजनीत है क्या ? सबसे दिक्कत वाला पल होता है जब टिकट मिलने का समय होता है ,यकीन नहीं होगा आपको की कैसे भाग दौड़ कर के नेता लोग अपनी सेहत बनाते हैं | जब तक टिकट नहीं मिलता है तो खूब प्रदेश की राजधानी से लेकर देश की राजधानी की यात्रा होती है | अगर इतनी सी दौड़ धूप के बाद भी टिकट मिलना पक्का हो तो कोई बात नहीं| सही बात है टिकट के लिए नेताओ को आजकल जितनी जिल्लत झेलनी पड़ रही हैं उतने में तो कोई आम आदमी चार धाम की यात्रा कर आवे | सबसे पहले समर्थक जुटाने पड़ते है इसके लिए देश के टॉप क्लास के मैनेजमेंट वाले लोगो से संपर्क करना होता है |यहाँ जानकारी जरूरी है की ये मैनेजमेंट वाले लोग आईआईएम या अन्य किसी बिजनेस संस्थान से नहीं बल्कि आम जनता से जुड़े हुए संस्थान से होते हैं |उसके बाद भीड़ मैनैजे करनी होती है जितनी ज्यादा भीड़ उतना ज्यादा चांस टिकट मिलने की |अगर लोग नहीं आये तो यकीन कौन करेगा की फलाने नेता की फलाने जगह कुछ पकड़ है | खैर भीड़ जुटाने में नेताजी को शारीरिक और आर्थिक दोनों रूप से तैयार भी होना होता है |जब लोग नेताजी के रैली में आ गए तो नेता लोगो को कुछ यकीन होता है की इस बार टिकट मिल सकता है पूरा यकीन तो होता ही नहीं है |फिर शुरू होता है असली दौर बड़े -बड़े पार्टी पदाधिकारियों से मिलने का ताकि किसी तरह टिकट का जुगाड़ हो जाए |सिर्फ नेताजी ही नहीं कई चमचे भी चम्मच लगा रहे होते है नेताजी के टिकट के लिए | एक तरफ नेताजी लोगो से मिल कर यह आश्वासन भी ले रहे होते हैं की अगर पार्टी टिकट नहीं देती है तो वो निर्दलीय भी चुनाव लड़ सकते है | नेताजी मुलाकातों का दौर जारी रखते है इस दौरान ताकि कोई मौका छूट न जाए |फिर जब आखिरी दौर आता है एक- दो नामों के बीच कांटे का टक्कर होता है तो नेताजी लगातार बड़े नेताओ को अपनी ताकत का उद्धारण देने में कोई कसर नहीं छोड़ते | लेकिन जब टिकट मिलता है और सिर्फ एक को ही मिलता है तो बड़ी मायूसी होती है अन्य में |और जिसको टिकट मिल जाते है वो यह प्रचार करते फिर रहा होता है की किस तरह इतने लोगो को छांट कर उसे टिकट मिला है |सही में इसी समय नेता लोगो को लगता है की कितना मुश्किल होता है टिकर पाना | भगवान से ज्यादा वे अपने पार्टी के भगवानो को शुक्रिया देते हैं |

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