9.2.10

बुधिया , दर्शील और बुग्गी-वूग्गी


मुझे ठीक से याद नहीं आता की, बुधिया कब, कितने किलोमीटर लगातार दौड़ कर विश्व रिकोर्ड बनता है? कब मानवाधिकार वाले ५ वर्ष के बुधिया के ट्रेनर के ऊपर अवयस्क को दौड़ाने के जुर्म में मुकदमा कर देतें हैं? मुझे ये भी ठीक से नहीं याद आता की, कब "सूरज" जैसे २-३ वर्ष के और कितने बच्चे , कहाँ-कहाँ राजनैयतिक उथल-पुथल के शिकार हो कर ठीक उसे बोरवेल में जाँ गिरतें है की पूरा मीडिया जगत और सब काम छोड़कर आर्मी के जनरल सैनिकों सहित उसे निकलने जाँ पहुंचते हैं! ऐसे पहले हादसे के बाद मैंने बीसों ऐसे ही हादसे पेपर में बीच के पेजों में पढें होंगें ! पर ये हादसे पूरी तरह से राजनैतिक न होकर , आर्थिक कारणों पर निर्भर थे ! (आपको याद दिलाने के लिए मैं बता दूँ की, सूरज रातों-रात मालामाल हो गया था! ) मुझे ये भी याद नहीं आता की किस १५ अगस्त को लाल किले पर स्कूल के छोटे-छोटे बच्चे गर्मी से बेहोश हो कर गिर पड़े थे ! कम-से-कम भारत के प्रधानमंत्री को तो इस पर शर्मिंदा होना चाहिए था , पर ये परम्परा बदस्तूर जारी है !
तो दर्शील- एक फ़िल्मी बच्चा है ! जैसे बहुत से लोग मानतें है की जिन्दगी - इक जुआं है... खेल है...सफ़र,रास्ता है...सिधांत है... इतिहास है... वैसे ये फ़िल्मी भी है ! दर्शील , शाहरुख खान की तरह से परदे पर हमेशा खुश रहता है ! दर्शील की तरह बहुत सारे फ़िल्मी बच्चे और भी हैं जिनको सब लोग नहीं जानते !
गोरेगांव स्टेशन पर फिल्म शूट में ८ से १२ साल के १८-२० बच्चे थे ! जो शूट पर बुलाये गए थे ! वो सब शाहिद कपूर से मिलना चाहते थे ! पर इक चाभी वाले खिलौने की तरह हर इक "टेक" पर उन्हे ट्रेन में चढ़ाया जाता फिर उतारा जाता ! सुबहो ७ से लेकर शाम ७ बजे तक बच्चे सिर्फ ट्रेन में चढ़ते - उतरते रहे ! दोपहर लंच में मैं उनकी बोगी में गया ! सारे बच्चे थक कर काठ की बेंचों पर इधर -उधर सो रहे थे ! ये कहा जाँ सकता है की , किसी स्त्त्रग्लर की तरह वो कोई हीरो या दर्शील नहीं बनना चाहते थे , बल्कि भाड़े पर बुलाये गए थे ! ऐसे ही जैसे हम आर्ट डिपार्टमेंट के लोगों ने प्लेटफॉर्म पर लगाने के लिए कुछ दुकाने कुछ हाथ गाड़ियाँ मगवायें थीं ! भाड़े के लोग , भाड़े की दुकाने , भाड़े की जिन्दगी ! अब क्यूँ नहीं कोई मनावाधिकर्वाले इन सब बातों को देखते ? क्यूँ नहीं उन लोगों के खिलाफ याचिकाएं दायर की जाती हैं , जिनके बच्चे बूगी - वूगी में लगातार डांस करकर के लोगों की वाहवाही और पैसे बना रहें हैं ? क्यूँ नहीं उन विज्ञापनों पर प्रतिबन्ध लगाया जाता है , जिन में की बच्चा इक चमच चोकोलेट पीकर दिन भर दौड़ लगाता है ! और उनके माँ - बाप वही चोकोलेट ला कर पडोसी से कहते है की अब हमारा बच्चा भी "सुपर - स्ट्रोंग " बनेगा ! फिलहाल , समय की गति अजीब है और आजकल के बच्चों का वातावरण बदल रहा है तो जाहिर है की उनकी सोच के मायेने और उनके "एम्बलेम" भी बदल रहें हैं ; पर किस हद तक ये बात ध्यान देने लायक है !
Abhishek Pandey

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