आज सुबह से ही सोच रहा हूँ की आखिर यह देश किसका है ? कुछ बातें ऐसी होतीं हैं की सोचने पर मजबूर कर देती है मैं भी कुछ इसी प्रक्रिया से गुजर रहा हूँ |मेरे दोस्त कहते हैं की मैं राजनीती की ही बात करता हूँ |आखिर आप ही बताएँ बात भी क्या करूँ, देश में इसी शब्द की तो मांग है
मैं सोच रहा हूँ की क्या बताऊंगा जब कोई मुझसे यह पूछेगा की आप बतलायिए की यह देश वाजिब में किसका है तो क्या कहूँगा मैं ? मैं पशोपेश में हूँ ,मैं सोचता हूँ की यह देश हर किसी का है| जब हमनें देस्व्ह की आजादी की खातिर लड़ाई लड़ी थी तब तो हमारा देश था भारत लेकिन आज देश नहीं हमारा धर्म और राज्य ही सब कुछ हो गया है |किसी से पूछो की आप कहाँ से हैं तो वह कहेगा की मैं तो यूपी का हूँ मैं पंजाबी हूँ कोई शुरू में नहीं कहता की मैं भारत का हूँ ? आज देश की समस्या का यही कारण है |आज हमारे आपके जैसे लोग जो थोडा बहुत अपने को ज्ञानवान कहतें है अपने को छोड़कर दूसरे की बात शायद ही कभी करतें हैं |सिर्फ मैं खुश रहूँ यही बात हर हमेशा आज हर कोई सोच रहा है |देश का चाहे जो भी हो उन्हें क्या मतलब उनको तो ठीक ठाक जीवन बिताने के लिए पैसा मिल ही जाता है ,दुसरे चिजों से क्या काम ?सच बात तो यह है की आज हम मतलबी और स्वार्थी हो गएँ हैं |दुसरे के सुख दुख मे कभी हम मिल्कर साझीदार होते थे पर आज हमारे बीच दुरियाँ हो गयीं हैं| आज हम अपने पड़ोसियों को नहीं पह्चानते तक नहीं है क्या कारण है इसका ? लेकिन जब देश मे क्रेडिट लेने की बात आती है तो हम सबसे आगे रह्तें हैं
यही तो एक कारण है की आज हमारे देश मे इतनी गम्भीर समस्या उत्पन्न हो गई है|देश आज दो धुरियों में विभाजित हो रहा है लेकिन फिर भी किसी का सही से ध्यान इस ओर नहीं गया हैं अब आप ही बताएँ की यह देश आखिर है किसका ?
देश-धर्म की व्याख्यायें, करने की पुनः जरुरत.
ReplyDeleteसांस्कृतिक मूल्यों की, फ़िरसे होवे पूरी इज्जत.
होवे पूरी इज्जत, कश्यप जी की यह चाहत है.
जीवन को जानो बन्धु! मिलती इससे राहत है.
कह साधक कवि, चाहत पूरी हो हरेक जन-मन की.
व्याख्यायें करने की पुनः जरुरत देश-धरम की.
sahiasha.wordpress.com
haan sadhak ji main to kuch aisa hi samajhta hun ki hame kam se kam kuch purani chizo ko jaroor jinda rakhna chahyia .
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