6.2.10

बेवजह...

  1. ठहर के पानी मे देखा है गहराई को
    भीड मे अक्सर महसूस किया है तन्हाई को
    माजी के हाथ से लिखी थी तहरीर मेरी
    दोष कैसे दूँ रोशनाई को
    जो हमेशा फांसले पे खडे थे
    वे ही सबसे करीब नजर आये बिनाई को
    नसीहत, सफर, हादसा,हकीकत किस पर यकीन करुँ
    वक्त के दायरे मे सिमटते रोक न सका खुदाई को
    लबो पर खामोशी,बेसबब उदासी जिस्त पर पहरा वक्त का
    जज्बात जब तक तक्सीम न हो हाकिम क्या गुनाह
    मुकर्रर करेगा सुनवाई को...।

    डॉ अजीत
www.shesh-fir.blogspot.com

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