-राजेश त्रिपाठी
इसे हमारी केंद्र सरकार का दिमागी दिवालियापन और नासमझी नहीं तो और क्या कहा जाये कि वह उस पाकिस्तान से वार्ता शुरू करने के लिए घिघिया रही है, जो लगातार हुंकार भरता और भारत को ललकारता नजर रहा है। मुंबई के 26 /11 के हमलों के बाद से भारत लगातार पाक से घिघियाता रहा है कि वह इन हमलों के लिए जिम्मेदार अपने यहां के नागरिकों के खिलाफ कार्रवाई करे लेकिन इस मामले में पाक कभी गंभीर नहीं रहा। कहने को तो वह अपने यहां ऐसे तत्वों के खिलाफ जिनका भारत में की जा रही आतंकी गतिविधयों में प्रत्यक्ष या परोक्ष हाथ है, ‘कार्रवाई’ करता है लेकिन यह महज दिखावा होता है। आज जिसे गृहबंदी बताया जाता है, दूसरे दिन वह वहां छुट्टा घूमता और भारत के खिलाफ जहर उगलता नजर आता है। ये आतंकवादी जेहाद कर के कश्मीर को भारत से आजाद कराना चाहते हैं। पाकिस्तान भी अरसे से कश्मीर और कश्मीरियों का रोना रोता रहा है। पूरी दुनिया में पाक के लिए चिंता करने को सिर्फ और सिर्फ कश्मीर रह गया है। इसके पीछे उसकी सिर्फ यही मंशा है कि भारत को किसी न किसी तरह परेशान रखा जाये। इसके लिए वर्षों से वह अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी भारत को घेरता रहा है। यह आरोप लगाता रहा है कि भारत में मुसलमान और खासकर कश्मीरी मुसलमान सुरक्षित नहीं हैं।
वह देश जिसके नेताओं के लिए भारत-विरोध राजनीतिक मजबूरी है उनके सामने वार्ता के लिए घिघियाने का क्या औचित्य है?क्या पाक से वार्ता की शुरुआत के बगैर भारत पर कोई आर्थिक, राजनीतिक या अंतरराष्ट्ररीय संकट आ जायेगा?भारत पहले अपने इस रुख पर अटल था कि पाक जब तक मुंबई हमलों से जुड़े अपने यहां के तत्वों पर कार्रवाई नहीं करता, तब तक उससे कोई वार्ता नहीं की जायेगी। अब सरकार घुटने क्यों टेक रही है? ऐसी क्या मुसीबत या मजबूरी आ गयी है कि मुंबई के शहीदों की कुरबानी भी भुलायी जा रही है?पता नहीं हमारी सरकार ने पाक से विदेश सचिव स्तर की वार्ता की शुरूआत का अनुरोध कर डाला है। देश के कई बुद्धिजीवियों और रक्षा विशेषज्ञों ने भी इसकी जम कर आलोचना की है और कहा है कि भारत का यह अनुरोध न उचित है और न ही समय की अभी ऐसा कुछ करने की मांग है। भारत के अनुरोध के जवाब में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने ललकारा है कि पाकिस्तानी सेनाओं की भारत पर नजर है। इतना ही नहीं मुंबई के 26/ 11 के हमलों में शामिल आतंकवादियों को पाकिस्तान में खुलेआम रैली करने की इजाजत दी जा रही है। वे वहां दहाड़ रहे हैं-‘कश्मीरी भाइयो! आप आजादी की जंग में अकेले नहीं, हम आपके साथ हैं। हम भाई-भाई हैं। हम जेहाद कर के कश्मीर को भारत से आजाद कर के रहेंगे। इसके लिए पाक के वजूद को भी दांव में लगाना पड़े तो हम उससे भी पीछे नहीं हटेंगे।’ भारत के घिघियाने का क्या बेहतर जवाब दिया गया है। भारत सरकार की क्या मजबूरी है कि उसको पाक के सामने घुटने टेकने पड़ रहे हैं और उससे वार्ता की शुरुआत की मिन्नत करनी पड़ रही है? वही पाक जहां मुंबई में सैकड़ों निर्दोषों की हत्या के अपराधी खुलेआम घूम रहे हैं। क्या पाक के सामने इस तरह का आत्मसमर्पण हमारी मजबूरी है? क्या हमारी राजनीति या अर्थव्यवस्था उसके भरोसे चल रही है? यह सच है कि पड़ोसी देशों से सौहार्दपूर्ण सहयोग हर देश के लिए जरूरी है लेकिन इस संदर्भ में यह ध्यान रखना भी जरूरी है कि ताली एक हाथ से नहीं बजती। अगर हम सौहार्द चाहते हैं और पड़ोसी कहता है कि हमारी सेनाएं तैयार हैं तो भला बात कैसे बनेगी? यह तो एक हुंकार के सामने सिर झुकाना ही हुआ। जबकि ऐसे में हमें कम से कम सीना तान कर खड़े तो होना ही चाहिए था। हम किसी कौम, मुल्क या वर्ग के खिलाफ नहीं लेकिन अपनी अस्मिता को तो हम दांव पर नहीं लगा सकते।पाकिस्तान से वार्ता (किसी भी स्तर की) तब तक नहीं की जानी चाहिए जब तक वह खुद अच्छे पड़ोसी होने का धर्म नहीं निभाता। हमारे शास्त्रों में भी शठ से उसी की भाषा में निपटने की सलाह (शठे शाठ्यम समाचरेत) दी गयी है। महात्मा गांधी का वह कथन आज के युग में बेतुका और अप्रासांगिक है कि कोई तुम्हारे एक गाल में थप्पड़ मारे तो दूसरा बढ़ा दो। आज तो युग यह है कि आप पर कोई हमला करे तो आप जैसे भी अपना बचाव करें और जुल्म के खिलाफ डट कर खड़े हों।
पाकिस्तान को भी समझना चाहिए कि भारत से अच्छे रिश्ते उसके अपने हित में हैं क्योंकि वह ऐसे में उस देश का दोस्त होगा जो विश्व में एक महाशक्ति के रूप में उभर रहा है। जिस पाक की अर्थव्यवस्था आज अमरीकी मदद पर टिकी हो, उसके हित में पड़ोसी से अच्छे रिश्ते ही फायदेमंद होंगे। पाक के हुक्मरान भले ही भारत के खिलाफ जहर उगल रहे हों लेकिन जहां तक वहां की जनता का सवाल है उसमें से अधिकांश भारत से अच्छे रिश्तों के पक्ष में हैं। बीच-बीच में पाकिस्तान से भारत आने वाले पाक-प्रतिनिधिमंडलों (कलाकारों, लेखकों, छात्रों, सामाजिक कार्यकर्ताओं) की भावनाओं से तो यही उजागर होता है कि वे भारत से अच्छे रिश्तों के पक्ष में हैं। हमारी सरकार को इस तरह के प्रयासों को बढ़ावा देकर वहां के जनमानस से जुड़ने, बंधुत्व के भाव जगाने की कोशिश करे। ऐसी कोशिश करे जिससे मतलबी, स्वार्थी सियासतदां उनके दिलों में जहर घोल कर उनका राजनीतिक मकसद से इस्तेमाल न कर सकें।
यहां यह भी स्पष्ट कर देना उचित है कि अगर कश्मीर में कश्मीरियों (चाहे वह किसी भी वर्ग के हों) पर जुल्म हो रहा है तो उसे हर हाल में तुरत बंद होना चाहिए। इसके लिए केंद्र सरकार को कारगर कदम उठाने चाहिए। कश्मीर की आवाम में यह विश्वास जगाना चाहिए कि उनके साथ न भेदभाव होगा और न ज्यादती। कश्मीर में लोगों का मन जीतने की आज सबसे ज्याजा जरूरत है इसके लिए सभी स्थानीय और केंद्र के नेताओं को राजनीतिक स्वार्थों से ऊपर उठ कर सोचना चाहिए ताकि दुश्मन कश्मीर का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए न कर सकें जो वे अक्सर करते रहे हैं।
पाकिस्तानी अवाम को भी यह समझना चाहिए कि उनके देश के लिए भारत से दुश्मनी मंहगी पड़ेगी। अमरीका का आज स्वार्थ है जिससे वह डॉलरों के रूप में पाक पर कृपा बरसा रहा है। उसकी सेना अफगानिस्तान में फंसी है। ऐसे में पाक का साथ देना उसकी मजबूरी है। जब उसका मतलब निकल जायेगा, तब शायद वह पाक की ओर मुड़ कर भी नहीं देखेगा। तब पाक किसकी ओर दोस्ती का हाथ बढ़ायेगा? क्या चीन की तरफ जो इस वक्त उस पर बड़ा मेहरबान है और उसे मदद भी कर रहा है ताकि भारत को दबाया जा सके? लेकिन चीन पर तो आंख बंज कर भरोसा नहीं किया जा सकता। उस पर यकीन करना मुश्किल है। भारत उसके ‘भाई-भाई’ नारे का ढोंग भोग ही चुका है।
भारत सरकार को चाहिए कि वह सक्षम सरकार की तरह दृढ़ता दिखाये घिघियाये नहीं। कूटनीति, राजनीति और जैसी भी नीतियां जरूरी हैं पाक जैसे चालाक देश से निपटने के लिए , वह अख्तियार करे। झुके नहीं पाक को अपने यहां फल-फूल रहे आतंकियों के खिलाफ कारगर कदम उठाने को मजबूर करे। हम नहीं चाहते कि दोनों देशों के बीच युद्ध हो या युद्ध जैसी स्थिति भी हो क्योंकि युद्ध दोनों में किसी के हित में नहीं है। इससे दोनो देशों के विकास की गति न सिर्फ थम जायेगी बल्कि वर्षों पीछे चली जायेगी। लेकिन जब सामनेवाला हुंकार रहा हो तो उसे डराने या सचेत करने के लिए ही सही हम भी करारा जवाब तो दे सकते हैं। क्या भारत इतनी भी हिम्मत नहीं रखता। अगर नहीं तो क्यों? इसका जवाब शायद देश का हर वह नागरिक जानना चाहेगे जिसके दिल में देश के लिए प्यार है।
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