एक शाम जब उसके चेहरे पर
होती हैं मेरी उंगलियां
समंदर से उगने वाली रात
चाहती है किसी तरह मुझसे छू जाए
और शाम बनी रहे घर्षण होने तक
एक शाम जब उसके सीने पर
सिर रखकर सुनना चाहता हूं मैं
बदलते समय के मासूम सवालों का संगीत
रात मेरी जेब में रखी डायरी में
दर्ज होने की प्रार्थना करती है
किसी रात जब मैं
उसके वक्ष पर तन कर
लहराने का यत्न करता हूं
पांच साल पुरानी विधवा सी
वह रात सो नहीं पाती
मुझे यकीन है
उससे दूर रहकर मैं उसे
उससे ज्यादा समझ सकता हूं
पर वह न छू लेने वाले अंगों में भी
ऐसे दौड़ती है, जैसे छू लेगी तो
कभी नहीं रुकेगी दौड़ने में
जिस शाम उसके चेहरे पर होती है मेरी उंगलियां
पवन निशान्त
http://yameradarrlautega.blogspot.com
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