16.3.10
खेत खाए गदहा मार खाए जोलहा-ब्रज की दुनिया
हमारी आम आदमी की सरकार ने सर्वशक्तिमान अमेरिका के साथ एक बहुत ही खास समझौता किया है परमाणु समझौता.इस समझौते के अनुसार अमेरिका भारत में परमाणु ऊर्जा के विकास में सहायता करेगा.पिछले दिनों केंद्र की मनमोहिनी-जनमोहिनी सरकार ने इस समझौते से होनेवाले फायदों को खूब बढ़ाचढ़ा कर दिखाया.जबकि परमाणु ऊर्जा से बिजली उत्पादन की अपनी सीमाएं हैं और वह कभी भी हमारी ऊर्जा जरूरतों का २० प्रतिशत से ज्यादा को पूरा नहीं कर कर सकती.अब हमारी केंद्र सरकार संसद में एक विधेयक लाने जा रही है जिसका उद्देश्य अमेरिकी ऊर्जा कंपनियों की मांगों को पूरा करना है.भारत में नाभिकीय रिएक्टर लगाने के लिए इच्छुक ये कम्पनियाँ चाहती हैं कि परमाणु दुर्घटना की स्थिति में उन पर आपराधिक मुकदमा नहीं चलाया जाए और उन्हें सिर्फ कुछ आर्थिक दंड लगाकर छोड़ दिया जाए.सरकार ने इसे लोकसभा में पेश करने का मन भी बना लिया था लेकिन सदन में स्थितियां अनुकूल नहीं होने के कारण उसने कदम पीछे खींच लिए.जब समझौते के बाद प्राप्त होनेवाली ऊर्जा हमारी जरूरतों को पूरा कर ही नहीं सकती तब फ़िर क्या जरूरत है ऐसे समझौते की और देश की हजारों जनता के जीवन को खतरे में डालने की.भगवान न करे कल विदेशी कम्पनियों द्वारा बने रिएक्टरों में कोई दुर्घटना हो जाती है तो वह दुर्घटना कोई साधारण दुर्घटना नहीं होगी और उसके कुपरिणाम आनेवाली कई पीढ़ियों को झेलने पड़ेंगे.भोपाल गैस दुर्घटना के बाद देश में जो कुछ भी नौटंकी हुई वह किसी से भी छुपी नहीं है.फ़िर किस तरह सरकार अपनी करोड़ों जनता की जिंदगी विदेशी कंपनियों के हाथों में सौंप सकती है.साथ ही विदेशी हाथों में होने से हमारी ऊर्जा-सुरक्षा हमेशा खतरे में रहेगी.अच्छा होता अगर सरकार सौर-ऊर्जा के क्षेत्र में अनुसन्धान को बढ़ावा देती क्योंकि उष्ण कटिबंधीय देश होने के कारण सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भारत में अपार संभावनाएं हैं और सिर्फ यही एक विकल्प हमारे सामने है जो सुरक्षित भी है.जरूरत है सिर्फ इसे सस्ता बनाने की.
ye to bhaiya vahi baat huee ki chitt bhi meri pat bhi meri ulta mere baap ka.labh ho to americi companiyon ka aur hadsa ho to bhugte bharat.
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