23.3.10
मंडल और कमंडल का क्षीण होता प्रभाव, नए संकेत नई संभावनाएं-ब्रज की दुनिया
कुछ लोग १९६७ को भारतीय राजनैतिक इतिहास का प्रस्थान बिंदु मानते हैं.लेकिन मैं ऐसा नहीं मानता.मैं मानता हूँ कि यह दर्जा ८० के दशक को दिया जाना चाहिए.जिन प्रवृत्तियों की ६७ में शुरुआत हुई थी ८० के दशक में वे परिणति को प्राप्त हुई.६७ तो शुरुआत भर हुई थी.८० के दशक में इंदिरा गांधी की हत्या हो गई और उनके बड़े पुत्र राजीव प्रधानमंत्री बने.लेकिन राजनीतिक समझदारी के अभाव के चलते सफल नहीं रहे.उन्होंने अयोध्या के राम मंदिर का ताला खुलवाकर कर जैसे अपनी ही जड़ें खोद ली.भारतीय जनता पार्टी ने राम मंदिर निर्माण को मुद्दा बना दिया.यह सब चल ही रहा था कि उन्हीं के वित्त मंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने उनके खिलाफ भष्टाचार और दलाली का आरोप लगाया.बाद में सभी समाजवादियों को एकजुट करके उन्होंने जनता दल का गठन किया.८९ के चुनाव में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा और देश में गठबंधन सरकारों का दौर शुरू हुआ.वी.पी.सिंह की सरकार लंगड़ी थी और दोनों ओर से बैशाखी का काम किया भाजपा और वामदलों ने.भाजपा ने पॉँच सालों में ही राममंदिर की लहर के चलते अपनी सीटों को २ से बढाकर ८८ कर लिया था और भारतीय राजनीति की एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बन गई थी.१९९० में वी.पी.सिंह ने मंडल आयोग की रिपोर्टों को लागू करने की घोषणा करके जैसे राजनीतिक तूफ़ान खड़ा कर दिया.हालांकि भाजपा द्वारा समर्थन वापसी के कारण उनकी सरकार गिर गई लेकिन इस मुद्दे ने एकबारगी पूरे देश को आरक्षण समर्थकों और विरोधियों के दो खेमों में बाँट दिया.पूरे उत्तर भारत में गृह युद्ध जैसे हालत पैदा हो गए.बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने आरक्षण का पुरजोर समर्थन किया.सामाजिक न्याय अब लोगों के बीच चर्चा का विषय बन गया.हालांकि मंडल की सिफारिशों को लागू किया नरसिंह राव की सरकार ने लेकिन इस प्रकरण लाभ उठा ले गए लालू और मुलायम.लालू ने बिहार के विकास के लिए कोई प्रयास नहीं किया फ़िर भी लम्बे समय तक मंडल की लहर काटते रहे.भ्रष्टाचार के आरोपों की लड़ी लग जाने के बाद १९९७ में अपनी अनपढ़ पत्नी राबड़ी को मुख्यमंत्री बनाकर उन्होंने भारतीय राजनीतिक जगत में बिहार को हास्य का पत्र बना दिया.१५ सालों में बिहार का विकास ऋणात्मक हो गया.आखिर कब तक मंडल का जादू चलता?इस बीच उनके ही पुराने साथी नीतीश कुमार ने उनके पिछड़े वोट बैंक में सेंध लगानी शुरू कर दी थी.वर्ष २००५ में वो दिन भी आया जब लालू को बिहार में अपनी जमीन खिसकती दिखी.मंडल के एक और योद्धा रामविलास पासवान ने बिहार में तीसरा ध्रुव बनाने में सफलता पाई और उनके द्वारा किसी भी गठबंधन को समर्थन नहीं देने के कारण २००५ में दुबारा विधानसभा चुनाव करवाना पड़ा जिसके बाद नीतीश कुमार बिहार के भाग्यविधाता बन गए.लालू जी १५ वर्षों तक सिर्फ बातें बनाते रहे.जनता आखिर कब तक एक मशखरे (बाद के दिनों में लालू यही रह गए थे) को बर्दाश्त करती?वैसे भी कोई एक ही मुद्दा के बल पर बार-बार चुनाव नहीं जीत सकता.उत्तर प्रदेश में भी मायावती ने मुलायम के वोट बैंक में सेंध लगा दी.हालांकि मुलायम का यूपी में उस तरह से कभी एकछत्र राज नहीं रहा जिस तरह बिहार में लालू का था.यूपी और बिहार दोनों ही जगहों की जनता अब विकास भी चाह रही थी सिर्फ सामाजिक विकास से काम चलनेवाला नहीं था.उधर भाजपा ने राममंदिर आन्दोलन के रथ पर सवार होकर १९९८ में केंद्र में अपनी सरकार बनाने में सफलता पा ली.१९८४ के लोकसभा चुनाव में सिर्फ दो सीटें जीतने वाली पार्टी के पास अब १५० से भी ज्यादा सीटें थी.भाजपा ६ सालों तक केंद्र में सत्ता में रही लेकिन इस बीच उसने राममंदिर बनाने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया.२००४ के चुनाव में पराजय के बाद से उसके मत प्रतिशत में क्षरण अनवरत जारी है.उसके पास अब वाजपेयी जैसा कोई सर्वस्वीकृत चेहरा भी नहीं है.इसलिए बार-बार उसका अंतर्कलह सतह पर आता रहता है.इन परिस्थितियों में भारतीय राजनीति की जो तस्वीर भविष्य में हो सकती है उसके बारे में निश्चित होकर कुछ भी नहीं कहा जा सकता.हो सकता है कि कांग्रेस और भी मजबूत हो या यह भी हो सकता है जिसकी सम्भावना कम ही है कि भाजपा फ़िर से मजबूत हो जाए.गठबंधन का दौर निश्चित रूप से जारी रहेगा और क्षेत्रीय पार्टियाँ निकट भविष्य में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रहेंगी.वैसे तो भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में अब मंडल और कमंडल का प्रभाव अब समाप्ति पर है.लेकिन राजनीति कोई ऐसा तालाब नहीं है जिसमें पत्थर गिरे और तरंगें कुछ पल हलचल पैदा कर शांत हो जाएँ इस क्षेत्र में प्रत्येक मुद्दें का स्थाई प्रभाव होता है.मंडल ने जहाँ पिछड़ों में सत्ता की भूख जगा दी है और समाज को उनको अगड़ों के बराबर लाकर खड़ा कर दिया है वहीँ राममंदिर आन्दोलन यानी कमंडल ने जनता के सामने कांग्रेस का एक मजबूत विकल्प उपलब्ध करा दिया है.आज भले ही मंडलवादी बहुत कम जगह सत्ता में हों भाजपा की तो कई राज्यों में अब भी सरकार चल रही है.
भैया जी काठ की हांड़ी कितनी बार आग पर चढ़ेगी?अब तो राजनेता इसे भी कई-कई बार आग पर चढ़ा लेते हैं.
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