18.3.10

फोन

युक्तियुक्त सात्विक झुठ
बोझिल बातें
औपचारिक वायदे
अनमने मन
मे अभिनय के पुट के
साथ अपनेपन का आत्मीय
प्रदर्शन
उधार के शब्द और संवेदना
का प्रमाणिक
यांत्रिक दस्तावेज़
मेरा फोन मुझे
साक्षी भाव से स्वीकार करना वाला
अब तक का सबसे विश्वसनीय साथी लगा
पल भर के लिए सोचता हूं
अगर इसमे कोई सजीवता होती
तो कब का छोड गया होता
सार्वजनिक करके मेरे दोहरे व्यक्तित्व को
एक अजीब सा सम्बन्ध
है अपना
जब भी अकेलेपन ने घेरा
मेरे एक सच्चे दोस्त की तरह
इसने संवाद बचाया
उन लोगो के साथ
जो मेरी तमाम बदतमीजियों के बाद भी
मेरी फिक्र करतें है
ऐसा कई बार हुआ कि
आत्महत्या करने का मन हुआ
तब इसके सहारे ही दिलासा मिली
और मै बच गया
अगर यह निमित्त न होता तो
आज मै कृतज्ञता प्रकट करने के लिए
न बचता
अपनी आखिरी सांस तक यह मुझे जोडे
रखता है इस औपचारिक दूनिया से
एक आग्रह के साथ
ऐसा दिन मे कईं बार होता है
जब मै उकता कर इसको क्या तो बंद
कर देता हूं
या छोड देता हूं इसका गला घोंट कर
वाईब्रेशन मोड पर
लेकिन यह मुझे कभी नही छोडता
और सच कहूं तो
इसके बंद होने पर
अब मुझे गहरी चिंता होने लगी है
ऐसा लगता है कि
वो सेतु टूट गया है
जिसके एक पार मै अकेला खडा हूं
और दूसरी तरफ सारी दूनिया है
अपने शिकवे-शिकायतों के साथ
कोई इतना अपना कैसे हो सकता है
जब आपको पता है कि
इसका अपना कुछ भी नही
कुछ भी हो
इसे खरीदते वक्त मैने नही
सोचा था कि इतना अपनापन होगा इसमें
बिना स्वार्थ के
कम से कम उन औपचारिक संबन्धो से
बेहतर है इसका होना
जिनके लिए मै कभी काम का नही रहा हूं
और
शायद हम दोनो
एक दूसरे के बडे काम के हैं...।
डॉ.अजीत
www.shesh-fir.blogspot.com

No comments:

Post a Comment