15.3.10

दिल एक धरमशाला

ब्लॉग लिखने की सोचते सोचते काफी अरसा हुवा कई विचार आये ! अपने आप पर , परिवार के बारे में या फिर समाज पर लिखें ! लिखें चाहे किसी के बारे में बुरा ही ज्यादा है और उसे देखना भी जरुरी है तो दिखाना भी दिखाने से बुराई कम नहीं हो जाती फिर सोचा आस पास कुछ तो अच्छा है ही शुरुवात अच्छे से करलें ! वैसे ऐसा नहीं है की कुछ भी अच्छा नहीं है हमारा मन , हमारी समझ , हमारी आँखें , हमारा दिल , हमारा दिमाग , हमारे आचार -विचार- व्यव्हार सब पाईरेटेड संक्रमित से है जिससे जो अच्छा है वो भी दिखाई नहीं देता सोचा इस संक्रमण से निज़ात तो अच्छे एंटी - वाइरस से ही मिल सकती है और वैचारिक संक्रमण नए विचारों से ही मिटता है ! यही सब सोचकर एक परिवार के बारे में बताना ठीक समझा जिसमें समर्थ पर संस्कारवान पिता , कृपालु अन्नपूर्णा माँ , लीक से हटकर लीक पे चलने वाला आज्ञाकारी बेटा और घर के दायरे में सिकुड़ी रहकर भी दीन दुनिया में दीन नहीं सामर्थ्य की पहचान बेटियाँ शायद आज के समाज का अजूबा पर यही सच हैअच्छा प्रारब्ध या बुजुर्गों की पुण्याई जो भी हो है एक आदर्श परिवार इस परिवार का बसेरा एक मंदिर है जहाँ अखंड भंडारा चलता है तो निरंतर गऊ सेवा भी , पक्षियों के चुग्गे-पानी की व्यवस्था भी है तो जरुरतमंदो की फ़िक्र भी इतनी बड़ी कोठी है पर किसी का अपना एक कमरा भी नहीं फिर भी किसी के चेहरे पर कोई शिकन नहीं घर धर्मशाला तो नहीं पर परिवार के हर सदस्य का दिल एक धरमशाला जरुर है जिसमें सभी के लिए स्थान है , मान है , सम्मान है क्योंकि जीवन का ज्ञान है-अपनत्व का भान है

3 comments:

  1. bahut kuchh achha hai is duniya me..
    or agar bura hai b to wo kis ka banaya hua hai hm jaise logo ka hi na...
    agar hum koste hain to kisse??

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  2. sochein toh vichar bahut hi saral hai. Dil ek dharamshala. par itne saral vichar ko apne jeevan ka hissa bana lena kathin hojata hai.
    accha nazariya hai.

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