(उपदेश सक्सेना)
सदी के महानायक अमिताभ बच्चन को ना तो कभी राजनीति रास आयी न ही अभिनेत्री रेखा, बावजूद इसके उन्हें इन दोनों के नाम से ज्यादा जाना जाने लगा है. कभी अपनी माँ तेजी बच्चन के इंदिरा गाँधी से सहेली के रिश्ते और राजीव गाँधी से बचपन की दोस्ती के दम पर इलाहाबाद लोकसभा सीट से संसद पहुंचे बच्चन उस समय बिग-बी नहीं बने थे. अब जब उन्हें यह तमगा हांसिल हो गया है, एक बार फिर उनका राजनीति के प्रति प्रेम जागृत हो गया है. कई साल पहले कलकत्ता(अब कोलकाता) से आया अमरसिंह नाम का प्राणी अब उनका छोटा भाई बनकर इठलाता घूमता है. वह राजनीति में सक्रिय (?) है, सो बड़े भैया में भी उसने यह कीड़ा फिर जगा दिया. पहले कांग्रेस, फिर समाजवादी पार्टी और अब भाजपा की सरकारों वाले राज्यों में बच्चन की रुचि उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को इंगित करती है. गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी हों या कर्नाटक के येदियुरप्पा, केरल की गठबंधन सरकार हो या मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, बिग-बी हर दर पर सर धर रहे हैं. अमरसिंह को अब समाजवादी पार्टी ने बाहर कर दिया है, सो बच्चन को भी नया राजनीतिक मंच चाहिए. कांग्रेस उनकी भाजपा से नजदीकियों के कारण खफा है. शिवराज तो परेशान लोगों के खेवनहार बनने की प्रक्रिया शुरू कर ही चुके हैं, महिला हॉकी टीम को उन्होंने ऐसे समय आर्थिक मदद की जब हॉकी फेडेरशन उसकी नहीं सुन रहा था, बाद में पुरुष हॉकी को भी शिवराज ने निराश नहीं किया, वे जानते हैं कि, गोलकीपर को चकमा देकर गोल कैसे किया जाता है. शिवराज ने अब बच्चन को मध्यप्रदेश के एक प्रोजेक्ट से जोड़ने की प्रक्रिया शुरू भी कर दी है. अशोक चव्हाण को महाराष्ट्र की सत्ता विलासराव देशमुख की एक गलती से मिली थी, वे अच्छे खिलाड़ी भी नहीं माने जाते, वक़्त की बयार को भी समझने की खूबी उनमें नहीं है, सो उन्होंने अमिताभ से वर्ली सी लिंक के उदघाटन समारोह में हाथ मिला कर अपने ही गोल पोस्ट में गोल मार दिया. विरोधियों को हमेशा मौके का इंतज़ार होता है, इस 'हाथ मिलाई' को दिल्ली के कांग्रेस दरबार में 'दिल-मिलाई' बताया गया. वो तो भला हो राकांपा के उस मंत्री का जिसने चव्हाण को यह कहकर बचा लिया कि बच्चन को उन्होंने आमंत्रित किया था. सत्ता की खातिर अब चव्हाण ने बच्चन के साथ सार्वजनिक कार्यक्रमों में शामिल होने से कान पकड़ लिए हैं.
अब बात ख़ूबसूरत रेखा की, आज भी जब किसी फिल्म समारोह में रेखा, बच्चन के सामने पड़ जाती हैं तो 'सिलसिला' वहीँ थमता नज़र आने लगता है. किसी ज़माने की हॉट मानी जाने वाली यह जोड़ी अब कितनी बेबस हो गई है कि सार्वजनिक रूप से उनके बीच नमस्कार का रिश्ता भी नहीं बचा. बाबा रामदेव के चर्चित होने के काफी पहले से रेखा योग साधना कर रही हैं, मगर उनकी सारी मुद्राएँ भी बच्चन के नाम पर आकर भावहीन हो जाती हैं. जबसे बच्चन ने ब्लोगिंग शुरू की है, उन्हें लेकर विवाद ज्यादा होने लगे हैं. ना तो इस देश में सच सुनने वाले बचे हैं ना ही दिल की बात ही किसी को समझ आती है. मुंशी प्रेमचंद की बहुचर्चित कहानी 'बूढी काकी' में कहा गया है, 'बुढापा बहुधा बचपन का पुनरागमन होता है....'अमिताभ बुढा गए हैं, 'पा' भी वे हाल ही में बने हैं. वे दूसरों के लिए ही सही, यह समझ क्यों नहीं जाते कि अब ना तो राजनीति उनके बस की रही न ही रेखा...!
मेरे बारे में- पिछले २३ साल से खबर मेरी जिन्दगी है, खबर बिछाता हूँ, खबर ओढ़ता हूँ, खबर जीता हूँ.
updesh.saxena@gmail.com
बेहद संकीर्ण मानसिकता से लिखा गया शीर्षक ।
ReplyDeleteरेखा पर दो लाइन आर्टिकल में भी तो लिखते महाशय ! या इसे कविता माने ?
अमिताभ की राजनीति पर तो आपने प्रकाश डालने का प्रयास किया है लेकिन रेखा पर नहीं डाला है। कृपया उस पर भी डाल दें तो आपका शीर्षक सार्थक हो जाए।
ReplyDelete