(उपदेश सक्सेना)
मैं पिछले कुछ दिनों के लिए अवकाश पर क्या गया, देश में आईपीएल को लेकर बखेडा खड़ा कर दिया गया. ललित मोदी इस संस्थान के कमिश्नर हैं, जिसका संधि विच्छेद ही मेरे मुताबिक “वह नर जो कमीशन खाता हो”(कमीशन+नर) है, तो किस बात की हाय-तौबा मचाई जा रही है, यदि उन्होंने यहाँ अपने पद की “लाज” रखी हो. यहाँ एक नया युग्मक भी बन रहा है, आईपीएल....बीपीएल....एपीएल. आईपीएल यानि ललित मोदी, बीपीएल (गरीबी की रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले) शब्द से जुड़े हैं शरद पवार और दोनों मिलकर खुद को बना रहे हैं एपीएल (गरीबी की रेखा से ऊपर जीवन जीने वाले). शरद पवार को कभी भी वास्तविक बीपीएल को एपीएल में बदलने की कोई योजना नहीं सूझी, मगर वे अपनी अतृप्त कामनाएं पूरी करने के दांव पेंच खेलने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ते.शशि थरूर की अच्छी-भली विदेश राज्य मंत्री की कुर्सी खाकर भी कई लोगों को चैन नहीं मिल रहा है. बेचारे थरूर को सुनंदा के पुष्कर में जलसमाधि लेने को मजबूर होना पड़ा. यदि निकट भविष्य में उनका विवाह (तीसरा) सुनंदा से हो गया तो जिंदगी भर उन्हें घर में ही ताने सुनना पड़ेंगे. इस कड़ी में नया नाम आया है, नागरिक उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल की बेटी पूर्णा पटेल का. ज़माना आधुनिक है ,सो पूर्णा ने ‘चंद्र खिलौना लैहों’ की गुहार न लगाते हुए अपने पापा के दफ्तर का एक हवाईजहाज़ अपने निजी उपयोग के लिए ले जाने की गलती कर डाली. शायद पूर्णा की इसके पीछे यह सोच रही होगी कि, वे लगातार करोड़ों के घाटे में डूबे एयर इंडिया को घाटे से उबारने में ‘डूबे’अपने पापा का काम कुछ आसान करना चाहती हों. पटेल की पार्टी और खुद कांग्रेस अध्यक्ष के नजदीकी लोगों का मानना है कि ‘पूर्णा तो बच्ची है, उसे इस विवाद में बेवजह घसीटा जा रहा है. ‘इंडियन पोलिटिकल ली़ग’ में होता वही है जो सरकार चाहती है.राजनीति के खेल अब खेलों में भी खेले जाने लगे हैं, टीमों में खिलाड़ियों को शामिल करने में राजनीति, खेलों में राजनीतिज्ञों की बढती रूचि जैसे मामले खेलों के प्रति निष्ठा और प्रेम के उदाहरण नहीं हो सकते. यदि राजनीतिक लोगों को खेलों से इतना ही प्रेम है तो हमारे राष्ट्रीय खेल हॉकी की अपने घर में ही दुर्दशा नहीं होती.खेलों की इस सबसे गहरी सोने की खदान (क्रिकेट) के राजनीतिक दोहन ने इस खेल की पीली चमक को ‘मेटेलिक ब्लैक ’ बना दिया है.
ललित मोदी एक उद्दंड व्यक्ति है जो फिलहाल अपने आप को कानून से ऊपर समझ रहे हैं. ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा की वो कानून के ऊपर रहेंगे या कानून उन्हें अपनी गिरफ्त में लेगा. ये हमारे देश का दुर्भाग्य ही है कि तमाम खेल संघटन राजनेताओं द्वारा संचालित हो रहे हैं और खेलों के विकास का पैसा इन राजनेताओं के व्यक्तिगत विकास के काम आ रहा है. वैसे मोदी का चरित्र भी कम चर्चा का विषय नहीं है. पुरे आई पी एल के दौरान वे हसीनाओं के आगे पीछे घुमते नजर आये. कुल मिलकर इस से क्रिकेट का नुकसान हुआ है और ये खेल बदनाम हुआ है.
ReplyDeleteसर, गज़ब लिखा है। एक एक शब्द हथौड़ा है। पढ़ कर मेरी आत्मा ...........
ReplyDeleteहम तो आपके मुरीद हुए।
सुनंदा लौंडिया अच्छी है, पर 80 करोड़ की निकलेगी यह पता नहीं था।
लगता है आप अलसी खाते हो।