20.4.10

थाने में फांसी का फंदा

पुलिस चाहे जहां की भी हो उसके ऊपर आम आदमी की सुरक्षा से लेकर तमाम तरह की जिम्मेदारियां हैं। पुलिस को कई काम ऐसे देखने पड़ते हैं जिनके लिये वह सीध्े तोर पर जिम्मेदार नहीं है चाहे वह घर-परिवार के झगड़े हों या अतिक्रमण जैसे मामले। कानून की आड़ में पुलिस का क्रूर चेहरा अक्सर सामने आता है, लेकिन यह भी उतना ही बड़ा सच है कि पुलिस दबाव व तनाव में काम करती है। उनके काम के लिये कोई समय सीमा भी निर्धरित नहीं है। पुलिसकर्मियों में चिड़चिड़ापन व मानसिक तनाव बढ़ता जा रहा है ओर यही तनाव कई बार या तो उन्हें बंदूक उठाकर अपने साथियों को मारने पर मजबूर कर देता है या वह खुद आत्महत्या जैसा घातक कदम उठा बैठते हैं। अब जरा उत्तर प्रदेश के मेरठ के जनपद की ही एक घटना लें। घटना 19 अप्रैल की है यहां एक हेड कांस्टेबल ने थाना परिसर में ही बने एक क्वार्टर में फंासी का फंदा लगाकर अपनी जान दे दी। उसके रिटायरमेंट में दो साल का वक्त बचा था। हेड कांस्टेबल कई दिनों से अवकाश की मांग करता आ रहा था, लेकिन स्टाफ की कमी के चलते उसे अवकाश नहीं मिल सका जिसके चलते वह भारी तनाव के दौर से गुजर रहा था। हादसे के बाद हर बार की तरह सवाल तो कई उठ रहे हैं, उसके परिजन खुलेआम आरोप लगा रहे हैं, लेकिन हर बार की तरह इस बार भी विभाग को बदनामी से बचाये रखने के लिये अधिकारी असल कारणों को छिपाये रखने का ही प्रयास कर रहे हैं। दरअसल पुलिस विभाग भारी फोर्स की कमी से जूझ रहा है। सीमित संसाधनों के बीच पुलिसकर्मी 24 घंटे नौकरी करते हैं। परिवार से दूरी के चलते भी उनकी मानसिक परेशानी बढ़ जाती है। यदि वह अवकाश मांगते हैं, तो वह भी नहीं मिलता। अवकाश को लेकर तनावग्रस्त पुलिसकर्मी हथियार उठाकर अपने साथियों को भी गोलियों से भून चुके हैं। ऐसे हादसे सवाले छोड़ जाते हैं, परन्तु उनके जवाब मिलता तो दूर वक्त के सफर में वह खुद ही गुम हो जाते हैं।

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