मैं दैनिक १८५७ के संपादक की जान के दुश्मन बने लोगों से पूछना चाहता हूँ कि क्या गाँधी या फिर नेहरु हाड़-मांस के बने इन्सान नहीं थे?क्या उन्होंने जीवन में असंख्य गलतियाँ नहीं की थी?गाँधी ने तो अपनी आत्मकथा में कई गंभीर गलतियों को स्वीकार भी किया है फिर कांग्रेसवाले क्यों उन्हें भगवान सिद्ध करने पर तुले हुए हैं?
मैं दैनिक १८५७ के संपादक की जान के दुश्मन बने लोगों से पूछना चाहता हूँ कि क्या गाँधी या फिर नेहरु हाड़-मांस के बने इन्सान नहीं थे?क्या उन्होंने जीवन में असंख्य गलतियाँ नहीं की थी?गाँधी ने तो अपनी आत्मकथा में कई गंभीर गलतियों को स्वीकार भी किया है फिर कांग्रेसवाले क्यों उन्हें भगवान सिद्ध करने पर तुले हुए हैं?
ReplyDeleteबस लोग तो आवेश में आकार कुछ भी कर बैठते हैं. और ये भूल जाते हैं की सही क्या हैं और गलत क्या हैं.
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