पहला तीर ही प्रभात का क्या अंधेरे में हो जायेगा गुम
भोपाल। प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष पद पर पत्रकार प्रभात झा की ताजपोशी के बाद कुछ बदलाव की अपेक्षा की जा रही थी। हुआ भी ऐसा ही। सीधी साधी राजनीति करने के आदी रहे प्रभात झा को अध्यक्ष बनने के बाद जैसे ही पहला मौका मिला उन्होंने कांग्रेस पर राजनैतिक वार कर डाला। प्रदेश की भाजपा सरकार ने स्विर्णम मध्यप्रदेश बनाने के मुख्यमन्त्री के संकल्प पर सुझाव लेने के लिये सदन का विशेष सत्र आमन्त्रित किया था। काग्रेस ने इस सत्र के बहिष्कार का निर्णय ले लिया था। कांग्रेस के इस निर्णय के पालन करने में सिवनी जिले के केवलारी विधानसभा क्ष़्ोत्र से लगातार चौथी बार चुनाव जीतने वाले कांग्रेस विधायक हरवंश सिंह भी शामिल थे जो कि विधानसभा के उपाध्यक्ष पद पर बैठे हुये हैं जो कि एक संवैधानिक पद हैं।
वैसे इसके पहले भी कांग्रेस ने कई बार सदन से बहिष्कार किया था लेकिन प्रदेश इंका के उपाध्यक्ष और विस उपाध्यक्ष हरवंश सिंह इस बहिष्कार में शामिल नहीं हुये थे। इस बार उनका यह निर्णय लेना सियासी हल्कों में चर्चित हैं। बस इसे आधार बना कर भाजपा अध्यक्ष ने प्रदेश के पूर्व मुख्यमन्त्री एवं वरिष्ठतम नेता कैलाश जोशी तथा पूर्व प्रदेश संगठन मन्त्री कप्तान सिंह सौलंकी के साथ प्रदेश संवैधानिक प्रमुख महामहिम राज्यपाल से मिलकर एक ज्ञापन सौंपा तथा विस उपाध्यक्ष के विरुद्ध आवश्यक कार्यवाही करने की गुहार कर डाली।
लेकिन संविधान और संसदीय कार्यवाहियों के विशेषज्ञों का यह मानना हैं कि विधानसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का निर्वाचन सदन के सदस्य करते हैं इसलिये राज्यपाल को इनके विरुद्ध कार्यवाही करने का कोई अधिकार नहीं होता हैं। यदि कोई कार्यवाही करनी होती हैं तो संसदीय कार्य मन्त्री सदन में अविश्वास प्रस्ताव लाकर विधि अनुसार उस पर बहस करवा कर एवं मतदान के जरिये उन्हें पद से अलग कर सकते हैं। वैसे भी प्रजातान्त्रिक परंपरा का पालन करते हुये विस उपाध्यक्ष का पद प्रदेश में प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस को दिया गया हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक श्री हरवंश सिंह उपाध्यक्ष हैं। हालांकि जब श्री हरवंश सिंह के नाम पर भाजपा ने सहमति दी एवं उनका इस पद पर निर्वाचन हुआ तब उन पर उनके ही गृह जिले में भाजपा की तत्कालीन सांसद एवं वर्तमान विधायक नीता पटेरिया एवं उनके ड्रायवर की शिकायत पर बंड़ोल थाने में धारा 307 का आपराधिक प्रकरण लंबित था। लेकिन फिर भी हरवंश सिंह निर्विरोध विधान सभा के उपाध्यक्ष चुने गये।
इस व्यवस्था को देखते हुये प्रदेश भाजपा के कुछ वरिष्ठ नेताओं की सलाह पर प्रदेश अहध्यक्ष प्रभात झा ने भाजपा विधायक दल से अविश्वास प्रस्ताव लाने के निर्देश दिये हैं। अब इस मामले में कहा जाता हैं कि गेन्द मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह चौहान के पाले में चली गई हैं। हालांकि प्रदेश की राजनीति में सन 1980 के दशक से आज तक कांग्रेस और भाजपा में नूरा कुश्ती के किस्से जब चाहे तब चर्चित रहें हैं। अपनी ही पार्टी के अन्दर प्रदेश के कई कद्दावर नेताओं को इन आरोपों का सामना करना पड़ा हैं। इनमें कांग्रेस के अर्जुन सिंह,कमलनाथ,दिग्विजय सिंह,हरवंश सिंह तो भाजपा के सुन्दरलाल पटवा,बाबूलाल गौर,शिवराजसिंह चौहान आदि के नाम शामिल बताये जाते हैं। अब यह तो समय ही बतायेगा कि भाजपा विधायक दल अपने नव निर्वाचित प्रदेशाध्यक्ष प्रभात झा के पहले ही राजनैतिक तीर को निशाने पर लगने देगा और विस उपाध्यक्ष के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लायेगा या फिर यह भी नूरा कुश्ती की भेंट चढ़कर अंधेरे में कहीं गुम हो जावेगा।
भोपाल। प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष पद पर पत्रकार प्रभात झा की ताजपोशी के बाद कुछ बदलाव की अपेक्षा की जा रही थी। हुआ भी ऐसा ही। सीधी साधी राजनीति करने के आदी रहे प्रभात झा को अध्यक्ष बनने के बाद जैसे ही पहला मौका मिला उन्होंने कांग्रेस पर राजनैतिक वार कर डाला। प्रदेश की भाजपा सरकार ने स्विर्णम मध्यप्रदेश बनाने के मुख्यमन्त्री के संकल्प पर सुझाव लेने के लिये सदन का विशेष सत्र आमन्त्रित किया था। काग्रेस ने इस सत्र के बहिष्कार का निर्णय ले लिया था। कांग्रेस के इस निर्णय के पालन करने में सिवनी जिले के केवलारी विधानसभा क्ष़्ोत्र से लगातार चौथी बार चुनाव जीतने वाले कांग्रेस विधायक हरवंश सिंह भी शामिल थे जो कि विधानसभा के उपाध्यक्ष पद पर बैठे हुये हैं जो कि एक संवैधानिक पद हैं।
वैसे इसके पहले भी कांग्रेस ने कई बार सदन से बहिष्कार किया था लेकिन प्रदेश इंका के उपाध्यक्ष और विस उपाध्यक्ष हरवंश सिंह इस बहिष्कार में शामिल नहीं हुये थे। इस बार उनका यह निर्णय लेना सियासी हल्कों में चर्चित हैं। बस इसे आधार बना कर भाजपा अध्यक्ष ने प्रदेश के पूर्व मुख्यमन्त्री एवं वरिष्ठतम नेता कैलाश जोशी तथा पूर्व प्रदेश संगठन मन्त्री कप्तान सिंह सौलंकी के साथ प्रदेश संवैधानिक प्रमुख महामहिम राज्यपाल से मिलकर एक ज्ञापन सौंपा तथा विस उपाध्यक्ष के विरुद्ध आवश्यक कार्यवाही करने की गुहार कर डाली।
लेकिन संविधान और संसदीय कार्यवाहियों के विशेषज्ञों का यह मानना हैं कि विधानसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का निर्वाचन सदन के सदस्य करते हैं इसलिये राज्यपाल को इनके विरुद्ध कार्यवाही करने का कोई अधिकार नहीं होता हैं। यदि कोई कार्यवाही करनी होती हैं तो संसदीय कार्य मन्त्री सदन में अविश्वास प्रस्ताव लाकर विधि अनुसार उस पर बहस करवा कर एवं मतदान के जरिये उन्हें पद से अलग कर सकते हैं। वैसे भी प्रजातान्त्रिक परंपरा का पालन करते हुये विस उपाध्यक्ष का पद प्रदेश में प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस को दिया गया हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक श्री हरवंश सिंह उपाध्यक्ष हैं। हालांकि जब श्री हरवंश सिंह के नाम पर भाजपा ने सहमति दी एवं उनका इस पद पर निर्वाचन हुआ तब उन पर उनके ही गृह जिले में भाजपा की तत्कालीन सांसद एवं वर्तमान विधायक नीता पटेरिया एवं उनके ड्रायवर की शिकायत पर बंड़ोल थाने में धारा 307 का आपराधिक प्रकरण लंबित था। लेकिन फिर भी हरवंश सिंह निर्विरोध विधान सभा के उपाध्यक्ष चुने गये।
इस व्यवस्था को देखते हुये प्रदेश भाजपा के कुछ वरिष्ठ नेताओं की सलाह पर प्रदेश अहध्यक्ष प्रभात झा ने भाजपा विधायक दल से अविश्वास प्रस्ताव लाने के निर्देश दिये हैं। अब इस मामले में कहा जाता हैं कि गेन्द मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह चौहान के पाले में चली गई हैं। हालांकि प्रदेश की राजनीति में सन 1980 के दशक से आज तक कांग्रेस और भाजपा में नूरा कुश्ती के किस्से जब चाहे तब चर्चित रहें हैं। अपनी ही पार्टी के अन्दर प्रदेश के कई कद्दावर नेताओं को इन आरोपों का सामना करना पड़ा हैं। इनमें कांग्रेस के अर्जुन सिंह,कमलनाथ,दिग्विजय सिंह,हरवंश सिंह तो भाजपा के सुन्दरलाल पटवा,बाबूलाल गौर,शिवराजसिंह चौहान आदि के नाम शामिल बताये जाते हैं। अब यह तो समय ही बतायेगा कि भाजपा विधायक दल अपने नव निर्वाचित प्रदेशाध्यक्ष प्रभात झा के पहले ही राजनैतिक तीर को निशाने पर लगने देगा और विस उपाध्यक्ष के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लायेगा या फिर यह भी नूरा कुश्ती की भेंट चढ़कर अंधेरे में कहीं गुम हो जावेगा।
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