(उपदेश सक्सेना)
50 हज़ार रूपये में आज एक अच्छी मोटर सायकिल नहीं आती, इस राशि में कोई अच्छा क़ारोबार नहीं किया जा सकता, महंगाई के इस दौर में 50 हज़ार रूपये में भले ही कुछ ज़्यादा नहीं आ सकता हो, मगर इतने धन में जीते-जागते मनुष्य ज़रूर खरीदे जा सकते हैं, वह भी एक-दो नहीं पूरे 9, साथ में दो बच्चे फ्री. यह हकीकत है देश के उस राज्य मध्यप्रदेश की, जिसे कृषिप्रधान कहा जाता है. इंसानी खरीद-फ़रोख्त का यह मामला है दतिया जिले का. इस घटना ने एक बार पुनः यह साबित कर दिया है कि दबंगों-सामंती मानसिकता के लोगों के लिए इंसान और इंसानियत की कोई क़ीमत नहीं है.
राज्य के इस जिले से प्रदेश के विधि मंत्री नरोत्तम मिश्रा प्रतिनिधित्व करते हैं, मगर वे भी इन आदिवासियों की “विधि का विधान” नहीं बदल सके. हालांकि राज्य की शिवराजसिंह सरकार हमेशा से इस बात के दावे करती आई है कि प्रदेश में भुखमरी की कहीं-कोई स्थिति नहीं है, लेकिन भूख से बिलबिला रहे इन 9 आदिवासियों को भरपेट रोटी और बेहतर काम का आमंत्रण बुरा नहीं लगा, क्योंकि सरकार की ज़मीनी हकीकत तो वे ही जानते हैं. कहने को हम सायबर युग के प्रवेश द्वार पर खड़े हैं, 21 दीं सदी को छूने ही वाले हैं, मगर यह इंसानी खरीद-फ़रोख्त हमें धुर आदम युग की याद दिलाने को काफी है. यह घटना किसी को पता भी नहीं चलती यदि एक “बिका हुआ” आदिवासी क़ैद से छूटकर भाग नहीं आता. अब सरकार और प्रशासन इस बात की लीपा-पोती में जुटे हैं (यही इनका काम भी है), परम्परागत रूप से जांच के आदेश हो चुके हैं, यदि यह आदिवासी सच्चा हुआ तो ही बाकी “गुलामों” को छुडवाने टीम भेजी जायेगी. भूखा-नंगा आदिवासी झूठा भी तो हो सकता है. आखिर मेरा भारत महान है. सच है–भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहां विदेशों से अनाज़ आयात किया जाता है, उसी तरह जैसे– भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है जहां आये दिन साम्प्रदायिक दंगे होते रहते हैं.
ye desh ki haalat hai aur hum comonwalth game ke nam pisa pani ki thra luta rahe hai.......... sharm ki baat hai
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