7.5.10

तुम फिर भी गूगल करोगी

तुम कितना भी गूगल कर लेना
तुम्हें मेरा प्रोफाइल नहीं मिलेगा
ई-मेल आईडी नहीं मिलेगा

जिस दिन तुम खुश होगे
दुखों की लंबी थकान के बाद
तुम्हें दुख का यह भी चिह्न नहीं मिलेगा

मुझे पत्र में लिखकर बताना चाहोगे
यह जानते हुए भी कि मेरा पता तुम्हारे पास नहीं है
तुम पत्र लिखना खत्म नहीं करोगे सारी रात
यह जानते हुए भी कि कभी नहीं पढ़ा सकोगे मुझे
बे-सिर पैर की बातें कहोगे उसमें,पहले की तरह

और वे बातें जिनसे दुखों ने हार मान ली और
सुखों के लिए छोड़ दिया चौड़ा रास्ता
यह जानते हुए भी पत्र लिखते-लिखते
बार-बार तुम्हें याद नहीं आएगा कि
मैंने ही कहा था-अच्छे समय में आपके
मैं बुरे समय की तरह उड़ जाऊंगा फुर्र

पत्र की लाखों जेरोक्स हाथों में होंगी हाकरों के
आफिस-आफिस टंगा होगा पत्र
तिराहे-चौराहे, बस स्टेंड, रेलवे स्टेशन
यमुना के घाटों पर,सार्वजनिक शौचालयों में
तुम प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर बताओगी अपनी आप बीती
सबसे तेज चैनल सबसे पहले फ्लैश आउट करेगा इसे
और इंडिया टीवी ढूंढ लाएगा इसमें
पांच हजार साल पहले का कोई रहस्य

रविवार की फर्स्ट लीड होगी यह
प्रधानमंत्री के पाकिस्तान जाने की खबर से पहले की
तुम्हें यकीन हो जाएगा कि कहीं न कहीं तो
पढ़ ही लूंगा मैं चोरी-छिपे
चोरी-छिपे नजर रखोगी मुझ पर पर
कहीं नहीं मिलूंगा मैं तुम्हें सुनने के लिए
तुम्हें क्या पता-मेरे कारण ही तो था तुम्हारा बुरा समय।।

तुम फिर भी गूगल करोगी
तुम कितना भी गूगल कर लेना
यकीन रखना मैं इस बात पर कोई कविता नहीं बनाऊंगा
और इसे अपने ब्लाग पर पोस्ट नहीं करूंगा कभी
तुम फिर भी गूगल करोगी
पर तुम कितना भी गूगल कर लेना
पवन निशान्त
http://yameradarrlautega.blogspot.com

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