बचपन पहाड की पथरीली राहों पर बीता, मां को अभावों से लोहा लेते देखा, असुविधाओं के साथ-साथ किताबें भी पढीं, शायद यही था अनुकूल तापमान, जिसमें डा. रमेश पोखरियाल निशंक में रचनाशीलता पैदा हुई।
राजनीति की ऊसर और पथरीली भूमि और साहित्य के सौम्य सागर में एक साथ विचरण करना समुद्र से गंगा-यमुना के पानी को अलग-अलग करना असंभव कार्य है, लेकिन उत्तराखंड के मुख्यमंत्री डा. निशंक इस भूमि को भी उर्वरा बना रहे हैं और सागर से मोती भी चुन रहे हैं। उनकी कृतियां स्त्री के पुरुषार्थ की हिमायती हैं। राजनीति में रहकर भी सतत् साहित्य साधनारत डा. निशंक से बातचीत के प्रमुख अंश-
डा. निशंक से बातचीत के प्रमुख अंश--http://rajendrajoshi.blog.co.in/
हो सकता है रमेशजी सही हों लेकिन यह सत्य है कि जिस गरीबी कि मुख्यमंत्रीजी बात कर रहे हैं उनसे और भी गरीब लोग भरता में हैं. काश सभी कि किस्मत रमेशजी जैसी होती.
ReplyDeleteसही कहा आपने जाको तन लागे ताको तन जाने
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