11.5.10

अम्मा

जब मेघ बरसते रह-रह कर
छाता बन जाती थी अम्मा,
बिजली कड़की काँप गया मैं,
गले लगाती थी अम्मा।


रात पूस की थर-थर जाड़ा
बनी रजाई थी अम्मा।
खुद बैठे चूल्हे के आगे
हमें सुलाती थी अम्मा।


जेठ मास में हाय-हाय गर्मी
पंख डुलाती थी अम्मा,
सत्तू, खीरा ठंडे होते
हमें खिलाती थी अम्मा।


पढ़ लिखकर मैं बनूं कलक्टर,
बनी मास्टरनी अम्मा,
बुद्धिमान मैं ही बन जाऊं
घी पिलाती थी अम्मा।


गाँव दुखी मेरी हरकत से,
बनी संरक्षक थी अम्मा,
कोई आए करे शिकायत,
उसे सुनाती थी अम्मा।


मैं हूं काला और कलूटा
राजा कहती थी अम्मा
मैं गोरा-गोरा हो जाऊँ
हमाम लगाती थी अम्मा।

डॉ. भानु प्रताप सिंह
आगरा

bhanuagra@gmail.com

2 comments:

  1. kya baat hai janab isme ye add aur kar dete

    jab kabhi hum hote udass hume gale lagati thi amma
    din kud bukhi rehati humhe kilati thi amma...
    sanj dale jab main na aata... dur dekne jati thi amma
    jab kabhi hoti boh kuch kub hanasati thi amma
    chali gayi hai tu dur humse par pal pal yaad aati hai amma

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  2. वाह ,बहुत अच्छी अभिव्यक्ति एक सुखद एहसास

    सत्य प्रकाश

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