बांटने से दौलत कम हो सकती है लेकिन ज्ञान कम नहीं होता। जो आपने सीखा है बाकी लोगों में बांटिए। आपकी यही उदारता हमें अपनों में आदर योग्य बनाती है। तब हम भी कुछ सीखते हैं। ज्ञान बांटा नहीं जाए तो वह अहंकार में बदलता जाता है। हम सब को रावण का अंत पता तो है। ज्ञान की दृष्टि से मर्यादा पुरुषोत्तम राम भी उसका आदर करते थे लेकिन यही ज्ञान जब अहंकार में बदल गया तो उन्हीं राम के हाथों उसे मुक्ति मिली। गड्ढे में एकत्र पानी भी कुछ दिनों बाद सडऩे लगता है फिर हम अपना हुनर साथियों में बांटकर क्यों नहीं उन्हें अपने जैसा देखना चाहते?
महाभारत के पात्र अभिमन्यु के अलावा तो और किसी के संदर्भ में पढऩे को नहीं मिला है कि जो मां के पेट से ही सब कुछ सीख के आया हो। मां के गर्भ में रहते ही अभिमन्यु ने युद्ध के मैदान में शत्रु सेना के चक्रव्यूह को कैसे भेदा जाए यह समझ लिया था। बाकी तो बोलचाल में यही कहा जाता है कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती और न ही मां के पेट से हर कोई सब कुछ सीख कर आता है। जन्म लेने के बाद घर, स्कूल, दोस्तों और आसपास के वातावरण से सीखते हैं और बड़े होने पर ठोकरें खाकर ही हम ठाकुर बनते हैं।अपनों में रहकर अपने लोगों से ही हम सारे दावपेंच सीखते हैं। किसी को गॉडगिफ्ट होती है, तो वह कुछ जल्दी, कुछ ज्यादा और कुछ बेहतर सीख लेता है। तो कोई अपनी दिमागी क्षमता के अनुसार ही ग्रहण कर पाता है। यानी चाहे परिवार हो, प्रकृति हो, पास-पड़ोस हो या प्रियमित्र जिनसे भी हम कुछ सीखते हैं तो सिखाने वाले हमें देने में कमी नहीं करते। उन्हें पता होता है कि बांटने से ज्ञान कम नहीं होता जब कोई हमें कुछ सिखाता है तो वह भी हमसे कुछ सीखता है। किसी नई दवाई की खोज और उसका प्रभाव जानने के लिए पशु-पक्षियों पर परीक्षण किया जाता है। वैज्ञानिक पशु-पक्षी की पल-पल की हरकतों से सीखते हैं कि दवाई का कितना डोज किसके लिए कितना उपयोगी होगा तथा निर्धारित मात्रा से अधिक दिए जाने पर व्यक्ति पर दवाई का विपरीत प्रभाव कैसा होगा। पशु-पक्षी बांट नहीं पाते लेकिन वह भी प्रयोग को एक सीमा तक ही स्वीकारते हैं और जहां तक उनके बस में होता है विरोध भी करते हैं। यानी दोनों पक्ष ही एक-दूसरे से कुछ न कुछ सीखते ही हैं।
पता नहीं क्यों हमारे आसपास ऐसे लोगों की संख्या पिछले कुछ वर्षों में बढ़ती ही जा रही है जिन्हें अपने ज्ञान पर गुरूर अधिक है जबकि ज्ञान तो विनम्र बनाता है। बागीचे में हम देखते ही हैं जिन पेड़ों पर आम, अमरूद, सेब अधिक संख्या में लगे होते हैं, उन पेड़ों की डालियां जमीन की तरफ झुकी-झुकी सी नजर आती हैं। जैसे सिर झुकाकर पुथ्वी-प्रकृति का आभार मान रही हों कि आप की बदौलत ही मुझे यह सौभाग्य मिला। उसके विपरीत खजूर और ताड़ के वृक्ष भी हैं। खजूर किसी को छांव का एक कतरा भी नहीं दे पाता फिर भी अकड़ के खड़ा रहता है। ताड़ वृक्ष फल कम पेय पदार्थ अधिक देता है। ज्ञान के अहंकार ने समाज में कई लोगों को खजूर वृक्ष की प्रकृति दे दी है। जिनके पास ज्ञान है और परमात्मा की इस कृपा को अज्ञानी लोगों में वितरित नहीं करते। वे यह तो भूल ही रहे हैं कि जिस परमशक्ति की कृपा से उन्हें यह सब प्राप्त हुआ है उस शक्ति का तो अपमान कर ही रहे हैं। साथ ही यह भी भूल रहे हैं कि यदि पानी प्रवाहमान न हो, एक ही गड्ढे में एकत्र पड़ा रहे तो कुछ समय बाद वह भी सडऩे लगता है। प्यास से भले ही दम क्यों न निकले को हो, उस गड्ढे को सड़ा पानी पीकर प्यासा भी समय से पहले मरने की अपेक्षा कल-कल बहती नदी की तलाश में सारी शक्ति झोंक देता है।
स्कूल से लेकर कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद हम सब किसी न किसी पेशे में सक्रिय हैं। क्या कारण है कि उन 15-18 वर्षों की पढ़ाई के दौरान हमें स्कूल-कॉलेज के गिने-चुने टीचर ही याद हैं। सभी टीचर्स ने हमें सिखाने-समझाने में कोई कमी नहीं रखी फिर भी दो-चार शिक्षक ही क्यों हमारे दिल पर छाप छोड़ पाए। वृद्धावस्था से गुजर रहे ये शिक्षक जब कभी अचानक हमें रास्ते में टकरा जाते हैं तो क्यों हम श्रद्धा से उनके पैरों में झुक जाते हैं। शायद इसीलिए कि उनके सिखाने-समझाने का अंदाज ही कुछ और था। हम जैसे समझ पाते थे वो उसी अंदाज में सिखाते थे। न तो उन्होंने अपने ज्ञान का गुरूर किया और न ही हमारी कम अकल का मखौल उड़ाया। ऐसे शिक्षक हमें पहचान नहीं पाते हम उन्हें अपनी तब की कमजोरी से उन्हें याद दिलाते हैं, सर मैथ्स में कमजोर था आपने आसान फार्मूले बताए थे। अंग्रेजी समझ नहीं आती थी, फिजिक्स के फार्मूले बताए थे। आपने घर पर पढऩे बुलाया था....।
ज्ञान बांटने वाले इन शिक्षकों की तरह विभिन्न संस्थानों में हमारे बॉस रहे व्यक्ति को भी याद नहीं रहता कि कब आपने उनके मातहत काम किया और उनसे क्या सीखा। भीषण गर्मी में हवा का एक झोंका कितने लोगों को राहत पहुंचाता है, यह उस झोंके को याद नहीं रहता। पानी की टंकी में नल न लगा हो तो वह किसी की तो प्यास बुझा नहीं सकती।संसार में उन लोगों को ही आदर से देखा और पूजा जाता है जो लुटाने में विश्वास रखते हैं। बिल गेट्स अरबपति होने से ज्यादा इस रूप में जाने जाते हैं कि कमाई का बड़ा हिस्सा सद्कार्यों के लिए समर्पित करते रहे हैं। दूर क्यों जाएं बीते वर्षों में हमने कई राष्ट्रपति देखे लेकिन क्या वजह है कि भूतपूर्व होने के बाद भी एपीजे कलाम का नाम आते ही हमारा उनके प्रति राष्ट्रपति वाले आदर भाव से भर जाता है। हम भी तो सोचें हमने अपने से जुड़े लोगों को ऐसा कुछ दिया है क्या कि जब वो हमारा जिक्र करें तो उनमें उत्साह नजर आए और वे सब बताएं कि हमसे क्या अच्छा सीखा। हम अपना मूल्यांकन इस तरह भी कर सकते हैं कि मित्रों के बीच जब हम पहुंचते हैं तो वे हमारा उत्साह से स्वागत करते हैं या हमारे पहुंचते ही चुप्पी साध लेते हैं।
जी हा राणा जी आपसे सहमत हू बिल्कुल
ReplyDeleteसंजीव राणा