अशोक रावत गजलगोई में एक जाना-पहचाना नाम है। बकौल सोम ठाकुर, अशोक रावत उन गजलकारों में से एक हैं, जिनकी गजलों में युगीन दुर्व्यवस्था, दिग्भ्रमित राजनीति और संस्कारहीन मानसिकता को नितांत नवीन, चिंतना-सम्मत सहजात भाषा सौष्ठव के साथ कभी व्यंग्य, कभी विक्षोभ और कभी शुभाशंसा के रूप में पूर्ण परिपक्वता के साथ शब्दायित किया गया है। रावतजी मथुरा के गांव मलिकपुर में नवंबर 1953 में जन्मे। पेशे से इंजीनियर होते हुए भी उन्होंने गजल को अपनी अभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में चुना। उनकी रचनाओं का साहित्य जगत में खूब स्वागत हुआ, उन्हें बहुत सराहा गया। देश की सैकड़ों पत्रिकाओं में उनकी गजलें प्रकाशित हुईं। हिंदी गजल यात्रा-2, लोकप्रिय हिंदी गजलें, गजलें हिंदुस्तानी, नयी सदी के प्रतिनिधि गजलकार, धूप आयी सीढ़ियों तक, कोई दावा न फैसला कोई, आरम्भ जैसे कई संकलनों में उनकी गजलें शामिल की गयी हैं। थोड़ा सा ईमान नाम से उनका एक गजल संग्रह भी प्रकाशित हो चुका है। यहां उनकी कुछ बेहतरीन गजलें पेश हैं।
1.
दुश्मनों से भी निभाना चाहते हैं
दोस्त मेरे क्या पता क्या चाहते हैं
हम अगर बुझ भी गये तो फिर जलेंगे
आँधियों को ये बताना चाहते हैं
साँस लेना सीख लें पहले धुएं में
जो हमें जीना सिखाना चाहते हैं
ये जुबां क्यों तल्ख हो जाती है जब हम
गीत कोई गुनगुनाना चाहते हैं
2.
रोज कोई कहीं हादसा देखना
अब तो आदत में है ये फजां देखना
उन दरख्तों की मुरझा गयी कोपलें
जिनको आँखों ने चाहा हरा देखना
रंग आकाश के, गंध बारूद की
और क्या सोचना, और क्या देखना
जाने लोगों को क्या हो गया हर समय
बस बुरा सोचना, बस बुरा देखना
उसको आना नहीं है कभी लौटकर
फिर भी उसका मुझे रास्ता देखना
एक जोखिम भरा काम है दोस्तों
इस समय ख्वाब कोई नया देखना
3.
थोड़ी मस्ती थोड़ा सा ईमान बचा पाया हूं
ये क्या कम है मैं अपनी पहचान बचा पाया हूं
मैंने सिर्फ उसूलों के बारे में सोचा भर था
कितनी मुश्किल से मैं अपनी जान बचा पाया हूं
कुछ उम्मीदें, कुछ सपने, कुछ महकी-महकी यादें
जीने का मैं इतना ही सामान बचा पाया हूं
मुझमें शायद थोड़ा सा आकाश कहीं पर होगा
मैं जो घर के खिड़की रोशनदान बचा पाया हूं
इसकी कीमत क्या समझेंगे ये सब दुनिया वाले
अपने भीतर मैं जो इक इंसान बचा पाया हूं
खुशबू के अहसास सभी रंगों ने छीन लिए हैं
जैसे-तैसे फूलों की मुस्कान बचा पाया हूं
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