(उपदेश सक्सेना)
26/11 के एकमात्र ज़िंदा आरोपी मोहम्मद अजमल आमिर क़साब को अंततः आज अपने गुनाह की सज़ा फांसी के रूप में सुना दी गई. क़साब और कसाई कितने मिलते-जुलते शब्द लगते हैं. उसका काम भी किसी कसाई से कमतर नहीं था. क़साब, बताते हैं फांसी की सज़ा सुनते ही अदालत में रोने लगा था, शायद पिछले डेढ़ साल से जेल में बंद रहने के दौरान यह भूल गया था कि वह भारतीय व्यवस्था के दायरे में है, जहाँ अतिक्रामकों-आततायियों को भी मेहमान के रूप में रखा जाता है. मेरी इस टिप्पणी से कई लोगों को घोर आपत्ति हो सकती है, हो मेरी बला से, क्योंकि अतिथि देवो भवः हमारी परंपरा है. मुंबई के इस हमले के मामले के शहीदों के प्रति मेरी तो पूरी श्रद्धा है, मगर शायद भारतीय व्यवस्था में संवेदनाओं का कोई स्थान नहीं है. कई साल पहले कंधार शायद याद होगा, आतंकवादियों को छोड़ने पर ही भारत के उस विमान को छोड़ा गया था. क़साब अब उस अफज़ल गुरु के ठीक बाद में फांसी का शायद कभी न खत्म होने वाला इंतज़ार करेगा,जिसपर भारतीय संसद पर हमले के षड्यंत्र का आरोप है.
यह विचारणीय है कि क़साब को फांसी कब होगी. इस बारे में सोचने वालों को इस बात को सोचना होगा कि यह एक कूटनीतिक मामला है. अफज़ल गुरु को भारतीय संसद पर हमले के मुख्य साज़िशकर्ता के रूप में फांसी की सज़ा सुनाई गई है, उसने राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका दायर की है, इस पर अभी कोई फैसला नहीं हुआ है. दरअसल सरकार ऐसे मामलों को भविष्य की रणनीति के तहत लंबे समय तक लटकाए रखती है.भारतीय नागरिक सरबजीत का मामला पकिस्तान ने कई साल से लटका रखा है. भारत में इन पाकिस्तानी “दामादों” की सेहत दुरुस्त रखने हर साल करोड़ों रुपये आप-हम की जेब से जाता है. क़साब को फांसी की सज़ा के ऐलान के तुरंत बाद विदेश मंत्री एसएम कृष्णा का यह बयान कि, अब भारत पकिस्तान से हाफ़िज़ सईद लखवी को सौंपने की मांग करेगा, यह समझने के लिए पर्याप्त है कि क़साब अब दोनों देशों के बीच सौदेबाजी का माध्यम बन सकता है. यह भारतीय व्यवस्था की एक बड़ी खामी है कि हम छोटे मामलों में लड़ बैठते हैं, जबकि बड़े मुद्दों पर समझौते की राह तलाशने लगते हैं. ढीली प्रक्रिया के कारण क़साब को ज्यादा चिंतित होने की ज़रूरत नहीं है, यदि वह उच्च अदालत में अपील करेगा तो वहाँ उसे लगभग 2 साल इन्तजार करना होगा, इसके बाद उच्चतम न्यायालय और फिर राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका, घबराओ मत क़साब यह भारतीय व्यवस्था है.......
बिलकुल ठीक कहा हैं आपने
ReplyDeleteये इंडिया है
मतलब के भारत
यहाँ बाहर से आये हुए कुछ भी कर जाये
हमारे लिए मेहमान ही हैं .