28.5.10
ममता से ‘हत्या का लायसेंस’ छुड़ा लो मनमोहन
(उपदेश सक्सेना)
महिलाओं को भले ही आधी आबादी कहा जाता हो, समाज में उनकी बराबरी की बातें कही जाती हों, उनके उत्थान के लिए कई स्तर पर सरकारी प्रयास किये जा रहे हों फिर भी कुशलता से घर चलाने वाली महिलाओं को अक्सर अच्छा वाहन चालक नहीं माना गया है, इस तथ्यात्मक सत्य को जानते हुए भी मनमोहन सिंह सरकार में रेल का स्टेयरिंग ममता बैनर्जी को सौंपा गया है. शायद रेल चलाने के लिए किसी ड्राईविंग लायसेंस की ज़रूरत न रहने के चलते ऐसा किया गया हो सकता है, या मनमोहन सरकार की राजनीतिक मजबूरी भी, मगर इन दोनों कारणों से बेकसूर यात्रियों की “हत्या” का लायसेंस भी तो किसी को नहीं दिया जा सकता.
ममता बैनर्जी के पास लोकसभा में 19 सदस्य हैं, वहीँ राज्यसभा में उनके मात्र 2 सदस्य, यही सबसे बड़ा लायसेंस उनके पास है जिसके बल पर उन्हें निर्दोषों की जान लेने का अघोषित हक़ सा मिला हुआ है. ममता को इस सरकार में रेल मंत्रालय संभाले एक साल हो चुका है, और यदि आंकड़ों को देखें तो इस दौरान हुईं रेल दुर्घटनाएं इसके पहले किसी भी रेल मंत्री के इतने कार्यकाल में नहीं हुईं थी. देश के दूसरे रेल मंत्री रहे लालबहादुर शास्त्री ने एक के बाद एक हुईं तीन रेल दुर्घटनाओं की नैतिक ज़िम्मेदारी लेते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया था, राजीव गांधी के मंत्रिमंडल में रेल मंत्री रहे माधवराव सिंधिया ने भी ऐसी ही एक दुर्घटना के बाद पद छोड़ने में देर नहीं लगाईं थी, अब ऐसी तो क्या किसी भी तरह की नैतिकता की बात राजनेताओं में सोचना बेमानी सा लगता है.
ममता बैनर्जी के क्रियाकलापों पर मैं पहले भी लिख चुका हूँ, ज़्यादा लिखने से मुझे उनके प्रति पूर्वाग्रहग्रस्त समझा जा सकता है, लेकिन में भी आम जनता हूँ और मेरे पास अपनी अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता (?) के अलावा दुःख जताने का कोई हथियार भी तो नहीं है. दुर्घटना चाहे आतंकी हरकतों के कारण हो रही हों या मानवीय चूक के, इस देश का क़ानून किसी को किसी की जान लेने का हक़ नहीं देता. भारतीय रेल में हर दिन लाखों की संख्या में यात्री अपनी जान इसलिए जोखिम में नहीं डालते कि सरकार किसी दुर्घटना की स्थिति में उनके परिवार को चंद लाख रूपये का “ममता का सदका” न्योछावर कर दे. सरकार क्यों नहीं ऐसा क़ानून बनाती कि किसी दुर्घटना की स्थिति में किसी ज़िम्मेदार के खिलाफ़ सामूहिक ह्त्या का मुकदमा चलाया जा सके, या विभागीय मंत्री को इसके बाद राजनीति के अयोग्य घोषित कर दिया जा सके, शायद सरकार में इतना साहस नहीं है, क्योंकि जनता से ज़्यादा उसकी सहयोगी दलों के प्रति भी तो ज़िम्मेदारी है, बात चाहे पटरियों (रेल) की हो या हवा (विमानन) की.
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