31.5.10

किन्नरों ने की अलग गणना की मांग


नई दिल्ली, एजेंसी : देश में आजकल जाति आधारित जनगणना का मुद्दा सरगर्म है। इस सबके बीच अपने उत्थान के लिए एक ऐसे वर्ग की अलग से गिनती किए जाने की आवाज भी उठ रही है, जो सदियों से वंचित, उपेक्षित और तिरस्कृत है। पिछले साल नवंबर में चुनाव आयोग से अन्य के रूप में अलग मतदाता श्रेणी हासिल होने के बाद देश के किन्नर चाहते हैं कि मुल्क में जारी जनगणना में भी उनकी अलग श्रेणी में गिनती की जाए। अब तक किन्नरों की गणना पुरुष वर्ग में की जाती रही है और इस बार भी निर्देशों में कोई बदलाव नहीं किया गया है। किन्नरों की अलग श्रेणी में गणना के लिए मुहिम चला रहे सिस्फा-इस्फी संगठन के सचिव डॉक्टर एस. ई. हुदा ने कहा कि एक अनुमान के मुताबिक देश में तकरीबन एक करोड़ किन्नर हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि यह वर्ग देश का सबसे उपेक्षित और तिरस्कृत तबका है। हुदा ने कहा कि इनसान होने के बावजूद समाज में हिकारत भरी नजरों से देखे जाने वाले इस वर्ग के उत्थान के लिए इसके सदस्यों की सही संख्या का पता लगाना बेहद जरूरी है ताकि उनके लिए योजनाएं बनाई जा सकें और उनका समुचित क्रियान्वयन हो सके। इस लिहाज से मौजूदा जनगणना सबसे सही मौका है और अगर यह हाथ से निकल गया तो किन्नरों के लिए आशा की किरण अगली जनगणना तक कम से कम 10 और वर्षों के लिए बुझ जाएगी। मैग्सेसे पुरस्कार प्राप्त सामाजिक कार्यकर्ता संदीप पाण्डेय ने कहा कि देश के किन्नर अपने मौलिक अधिकारों से भी वंचित हैं और उनके प्रति समाज की नकारात्मक मानसिकता ही इस वर्ग के कल्याण की राह में सबसे बड़ा रोड़ा है। किन्नरों की अलग से गणना को लेकर देश के महापंजीयक कार्यालय ने सूचना का अधिकार कानून के तहत दी गई जानकारी में कहा है कि देश में इस समुदाय की अलग से गिनती करने का मामला तकनीकी सलाहकार समिति (टीएसी के समक्ष रखा जाएगा। इस समिति की सिफारिशों को अंतिम फैसले के लिए सरकार के सामने पेश किया जाएगा। ऑल इंडिया किन्नर एसोसिएशन की अध्यक्ष सोनिया हाजी ने पुरुषों और महिलाओं की ही तरह किन्नरों को भी अलग श्रेणी देने की मांग करते हुए कहा कि उन्हें अलग दर्जा और पहचान मिलनी चाहिए। ऐसा नहीं होना न सिर्फ नाइंसाफी है, बल्कि मानवाधिकारों का उल्लंघन भी है। उन्होंने कहा कि किन्नर ऐसे शारीरिक दोष की बहुत बड़ी सजा भुगत रहे हैं जिसके लिए वे खुद कतई कुसूरवार नहीं हैं। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर यू. पी. अरोरा ने इस मामले पर कहा कि इस वक्त समाज में समानता की बात की जा रही है, लेकिन खासा बड़ा मुद्दा होने के बावजूद किन्नरों को बराबरी का दर्जा देने के बारे में भारतीय समाज में अभी तक कोई बात नहीं हुई है। हमारे समाज में किन्नर के रूप पैदा हुए बच्चों को त्याग दिया जाता है। यह एक बड़ा गुनाह है। बहरहाल, किन्नरों की अलग जनगणना के लिए प्रयास कर रहे लोगों को उम्मीद है कि समाज तथा सरकार का नजरिए बदलेगा और इस वंचित वर्ग को उसका हक मिलेगा।

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