13.5.10

कलम के सिपाही किधर चल पड़े

आप जानते हैं समाचार क्या होता है? जब मैंने समाचार की दुनिया में दाखिला लिया था, तब मुझे पता नहीं था कि समाचार क्या होता है। समाचार लिखता था, मेरे लिखे समाचार प्रकाशित भी होते थे, प्रशंसाएं भी मिलती थीं पर न मेरे साथियों ने कभी मुझे बताया कि समाचार क्या होता है, न ही मेरे मन में कभी यह सवाल उठा। बात बहुत पुरानी है। प्रयाग में जब माघमेला लगता था, मैं उसके चक्कर लगाता रहता था। जो भी अच्छा साधु नजर आता, उसके पास बैठ लेता, उसकी परीक्षा लेने से नहीं चूकता। प्रयाग में रहकर पढ़ाई-लिखाई तो दुरुस्त हो ही जाती है, सो मेरी भी ठीक-ठाक थी। ऐसे में किसी भी महामंडलेश्वर या अखाड़ाधिराज से टकराने में तनिक देर नहीं लगती।
एक दिन ऐसे ही जा टकराया एक महाबली से। उनका नाम था स्वामी नरसिंहानंद। कुछ देर तो वे यूं ही बतियाते रहे फिर पूछ बैठे, बेटा क्या करते हो। मैंने जवाब दिया, समाचारपत्र में काम करता हूं। उन्होंने दूसरा सवाल दागा, बता सकते हो, समाचार का क्या मतलब होता है। मुझे किसी साधु से ऐसे सवाल की उम्मीद नहीं थी, इसलिए आंय-बांय-सांय जो दिमाग में आया, बक डाला। एक भाषण दे दिया। वे चुपचाप सुनते रहे। फिर बोले, तुम्हारे पिताजी कभी तुम्हें पत्र लिखते होंगे तो पूछते तो होंगे, अपना समाचार बताना। जब वे ऐसा लिखते होंगे तो मन में यही भाव रखते होंगे कि तुम क ोई नूतन शुभ सूचना दोगे। वे यह थोड़े ही सोचते होंगे कि तुम उन्हें बताओगे कि तुम्हारा पैर टूट गया है या तुम घायल हो गये हो।

मैं एकटक उनकी ओर देखे जा रहा था। इतनी विद्वत्तापूर्ण और सम्यक चर्चा चल रही थी कि मेरे मन से उनसे लड़ पड़ने का भाव तिरोहित हो गया। वे बोले, सम्यक प्रकारेण आचार: इति समाचार:। सम्यक आचरण ही समाचार है। उनकी व्याख्या अद्भुत थी। मुझे बिल्कुल एतराज नहीं हुआ। मैंने कहा, बाबा, तब तो हम लोग समाचार न लिखते हैं, न छापते हैं। इस परिभाषा के अनुसार आजकल समाचार लेखन होता ही नहीं। हमारे समाज में समाचारों की कमी नहीं है लेकिन लगभग सभी समाचारपत्र विसमाचार पर भरोसा करते हैं और उसे ही समाचार मानते हैं।

समाचार एक कलात्मक लेखन है। कोई भी घटना होती है, वहां पत्रकार सबसे पहले पहुंचने की कोशिश करते हैं। उस घटना की हर पहलू से पड़ताल करते हैं। छोटे से छोटा ब्योरा जानने की कोशिश करते हैं। घटना क्यों हुई? उसका कारण क्या था? उसका परिणाम क्या हुआ? उसे रोका क्यों नहीं जा सका? जिम्मेदार कौन था? भविष्य में क्या किया जाय कि वह अपने आप को न दुहराये? या और भी जो सवाल किसी के मन में उठ सकते हैं, उन सबके जवाब पाने की कोशिश करता है। पत्रकार अपने-आप को एक अदने आदमी की तरह प्रस्तुत करके अपने भीतर उठने वाले सवालों की जांच-पड़ताल करता है। फिर वह अपनी स्टोरी तैयार करता है। अपने सीनियर्स को दिखाता है। अगर उनके मन में कोई सवाल आता है या कोई संदेह होता है तो उन्हें दूर करके उसे अंतिम रूप देता है। फिर वह समाचार के रूप में प्रकाशन के लिए तैयार हो जाती है।

इस महत्वपूर्ण जिम्मेदारी को एक पत्रकार पूरी तटस्थता से निभाये, यह उससे उम्मीद की जाती है। अगर वह तटस्थ नहीं है, अगर वह घटना से पीड़ित या उसके लिए जिम्मेदार पक्ष के प्रभाव में है तो उसकी स्टोरी वस्तुनिष्ठ नहीं रह पाती। तब उसकी पठनीयता भी कम हो जाती है। उसके सामने लगातार प्रामाणिक और विश्वसनीय बने रहने की कठिन चुनौती होती है। जो इस चुनौती पर जितना खरा उतरता है, उसकी प्रतिष्ठा पाठकों या श्रोताओं में उतनी ही बढ़ती चली जाती है। अगर समाचार लिखते समय कोई आग्रह एक पत्रकार में होना चाहिए तो वह जनपक्षधरता का होना चाहिए। व्यापक जनहित का भाव किसी भी पत्रकार को दृष्टिसंपन्न बनाता है। यह विजन ही बड़ा पत्रकार पैदा करता है। जिनके पास यह कीमती चीज नहीं होती, वे समाचार बेचने वाले होते हैं। वे खुद भी बिके हुए होते हैं। वे जानबूझकर किसी एक पक्ष को लाभ पहुंचाने की नीयत से समाचार बनाते हैं और उस फायदे में अपनी हिस्सेदारी भी वसूलते हैं। इसे ही पीत पत्रकारिता कहा जाता है। आजकल ऐसे लोगों की तादाद समाचार उद्योग में कुछ ज्यादा ही हो गयी है।

समाचार जगत जैसे-जैसे बड़े उद्योग का रूप ले रहा है, वैसे-वैसे समाचार के रूप-स्वरूप में भी परिवर्तन हो रहा है। जो बुरा है, घृणास्पद है, जघन्य है, नग्न है, विरूप है, नकारात्मक है, सनसनीखेज है, वह ज्यादा लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है। इसलिए वह ज्यादा बिक सकता है। उद्योग के नजरिये से जो ज्यादा बिक सकता है, वह अधिक उपयोगी है। इसी कारण अब समाचारों को इन्हीं कसौटियों पर आंकने की प्रथा चल पड़ी है। नकारात्मकता के उच्छेद की जगह उसकी यथातथ्य प्रस्तुति को समाचारों में ज्यादा जगह मिल रही है।

यह ठीक है कि जो सड़ रहा है, जो बजबजा रहा है, जो समाज को गंदा कर रहा है, उसका विरोध होना चाहिए, उसे बदला जाना चाहिए, नहीं बदले तो उसे ध्वस्त कर दिया जाना चाहिए पर यह बड़ा काम है, यह केवल सड़ांध के प्रदर्शन मात्र से संभव नहीं है। कोई रिश्वतखोर है, भ्रष्ट है, उपद्रवी है, दंगाई है और पत्रकार जानता है, उसके पास उसकी पूरी कहानी है तो उसके सामने दो विकल्प हैं। एक तो वह उसकी कहानी को मिर्च-मसाले के साथ परोस दे और अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो ले और दूसरा जो ज्यादा महत्वपूर्ण है, वह यह कि वह इस कहानी को अपने अंजाम तक ले जाने के लिए पहले इतने सुबूत इकट्ठे कर ले कि वे उसे कानून की गिरफ्त में पहुंचा देने के लिए पर्याप्त हों, फिर कानून की भी मदद ले और अपनी स्टोरी इस तरह फाइनल करे कि उसके बचने की संभावना शेष न रहे। इसमें समय लग सकता है लेकिन यह उसके समाचार की विश्वसनीयता को असंदिग्ध बनाने में मददगार होगा।

हमारे सामने ऐसे विदेशों के कई उदाहरण मौजूद हैं, जिनमें पत्रकारों की सधी हुई खबरों और विश्लेषणों ने सरकारें ढहा दीं, बेईमान राष्ट्रपतियों और प्रधानमंत्रियों को राजतख्त से नीचे उतार दिया। अपने देश में भी कुछ निहायत जिम्मेदार पत्रकारों ने सरकार को, जनप्रतिनिधियों को और जनता के प्रति जवाबदेह प्रतिष्ठानों को नाक रगड़ने के लिए मजबूर किया। न्यूज चैनलों पर कभी-कभी अब भी ऐसी कोशिशें दिखायी पड़ती हैं। यह बात समझनी पड़ेगी कि जनविरोधी, भ्रष्ट और बेइमान सत्ता के खिलाफ प्रामाणिक अभियान भी लोगों को पसंद आते हैं और इस तरह की मुहिम से जुड़ी खबरें बिकाऊ माल न होकर भी ज्यादा कीमत अदा करने में सक्षम होती हैं। यही सच्ची पत्रकारिता की दिशा है। अगर सभी कलमकार इस पर चल पड़ें तो समाज, सत्ता और देश का बड़ा कल्याण हो सकता है।

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