नमस्ते जी
अशोक जी
कुछ प्रश्न हैं जिनके उत्तर जानकार मैं और पाठक वर्ग आपके लेखन को और भी अच्छे से समझ सकेंगे.............आशा करतें हैं की जल्दी ही प्रत्युत्तर मिलेगा.
- लोग कहते हैं कविता का दौर ख़त्म हो गया है,कथा की तूती बोलती है,उपन्यास गढ़ने और पढ़ने का वक्त कम ही मिलता है.आप क्या कहेंगे?
- साहित्य संस्कृति के इलाके में राजनीति और धड़ेबाजी को लेकर आपके विचार
- समाज में आज भी साहित्य बदलाव लाने का बड़ा साधन बन सकता है,मध्य प्रदेश के परिदृश्य में ये कितना सही लगता है?
- साहित्य को लेकर पाठकीयता के ग्राफ पर आप क्या सोचते हैं?,वैसे अभी तक आपके भी तीन उपन्यास 'व्यास गादी' ,'बूढ़ी डायरी' और 'को अहम्' बाज़ार में आये,क्या अनुभव रहा ?
- साहित्य-संस्कृति के झमेले में अपनी शुरुआत से आज तक के सफ़र पर कुछ कहना चाहेंगे ?
- देशभर में छपने छपाने का दौर है,पढ़ने की आदत बूढा रही है,मगर लोगों का लेखन जवान हो रहा है,बहुत सा ज्य़ादा और अपरिपक्व ........क्या लगता है ?
- मीडिया के बढ़ते हुए मनमानीकरण और ठीक ठाक स्तर पर आ जाने से लघु पत्रिकाओं और ब्लॉग्गिंग जगत से क्या आस लगाई जा सकती हैं ?
- सत्य,भाव,आदर्श,ईमान,सादगी अहिंशा और स्वाभिमान जैसे गुणों की बात अब बेमानी लगती है....गहराते उपभोक्तावादी दृष्टिकोण पर क्या अनुभव करते हैं ?
- आपकी कौनसी रचनाएँ पाठकों के लिए आने वाली हैं ?
- कोई ऐसी बात जो हमारे से पूछने में छूट गई हो आप बताना चाहें.
सादर,
माणिक
माणिक
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