27.5.10

dard

सूनी आंखों में ख्वाबों को सजाया जाए।
चलो दूर कहीं इक शहर बसाया जाए।।

कब

तक सोएगा मुसाफिर उस फुटपाथ पर।
सर तक धूप चढ आई है उसे जगाया जाए।।

जब

अपनों ने ही नहीं छोडा किसी काबिल तो।
किस हक से अब गैरों को बुलाया
जाए।।

क्यूं
कहूं दोस्त तुमको,क्यूं तुम्हें याद करूं।
किस काम
कि
दोस्ती,जिसमें हर गम सुनाया जाए।।

देखते देखते कितने दूर चले गए
तुम
तो।
तुम्ही बताओ ना तुम्हें कैसे बुलाया जाए।।

बहुत रात हो
चुकी
है सोचते सोचते।
चलो चादर से अब इन सितारों को हटाया जाए।।

3 comments:

  1. bhaai khush nsib ho jo zindgi aapke aage aage or aap us ke piche piche ho vrnaa logon ke saamne to sirf mat hi rehti he . akhtar khan akela kota rajdthan achchi prstuti ke liyen bdhaai.

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