27.6.10

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आमानाला जमीन घोटाला
हरवंश और रजनीश के विरुद्ध अपराध पंजीबद्ध ना करने पर पुलिस को कोर्ट की फटकार
आरोपियों के विरुद्ध अपराध पंजीबद्ध कर 28 जून को अन्तिम प्रतिवेदन देने के थाने को निर्देश

सिवनी। बहुचर्चित आमानाला जमीन घोटाले में कोर्ट ने दिये गये निर्देशों का पालन ना करने पर पुलिस को फटकार लगायी है। अदालत में प्रतिवादी मो. शाह ने एक प्रतिवाद पत्र पेश कर आरोपी नियाज अली,रजनीश सिंह एवं हरवंश सिंह के विरुद्ध भा.दं.वि. की 420,506,294 तथा 120 बी. के तहत मामला पंजीबद्ध करने का अनुरोध किया था जिस पर न्यायालय ने दं.प्र.सं की धारा 156(3) के तहत धनोरा पुलिस को कार्यवाही कर प्रतिवेदन प्रस्तुत करने के लिये निर्देशित किया था। लेकिन पुलिस ने आरोपी नियाज अली के विरुद्ध अपराध पंजीबद्ध कर प्रतिवेदन प्रस्तुत कर दिया जिस पर लखनादौन के प्रथम श्रेणी न्यायायिक मजिस्ट्रेट श्री ए.एस.सिसोदिया ने कोर्ट के निर्देशों के अनुसार सभी आरोपियों के विरुद्ध अपराध पंजीबद्ध कर जांच करके प्रतिवेदन 28 जून को कोर्ट में पेश करने के निर्देश पुन: पुलिस को दिये हैं। पुलिस चौकी प्रभारी की इस अवैधानिक कार्यवाही पर आला पुलिस अधिकारियों की चुप्पी कई सन्देहों को जन्म दे रही हैं।
मामला संक्षेप में
उल्लेखनीय हैं कि थाना धनौरा के अंर्तगत आने वाले ग्राम आमानाला निवासी मो. शाह ने अदालत में 18 मई 2010 को एक प्रतिवाद पत्र पेश किया था। इसमें प्रतिवादी ने आरोप लगाया था कि उसके भाई नियाज अली ने उसकी शामिल शरीक खानदानी जमीन षडयन्त्र पूर्वक आरोपियों को बेच दी हैं। उसने यह भी आरोपित किया था कि उसके भाई एवं रजनीश सिंह तथा हरवंश सिंह ने उसे गाली गलौच कर जान से मारने की धमकी भी दी हैं। उसने यह भी लिखा था कि उसने थाने में सूचना दी थी फिर भी कोई कार्यवाही नहीं की गई। इसलिये कोर्ट आरोपियों के विरुद्ध भा.द.वि. की धारा 420,506,294 और 120(बी) के तहत अपराध दर्ज कर कार्यवाही करने के निर्देश दे।
अपराध दर्ज करने कोर्ट ने दिये निर्देश
इस प्रतिवाद पर संज्ञान लेते हुये माननीय न्यायाधीश ने दं.प्र.सं की धारा 156(3) के तहत कार्यवाही कर धनौरा पुलिस को एक महीने बाद 18 जून को कोर्ट में अन्तिम प्रतिवेदन पेश करने के निर्देश जारी किये थे। यह मामला धनौरा थाने की पुलिस चौकी सुनवारा के अंर्तगत आता था अत: चौकी प्रभारी एस.एस.ठाकुर ने प्रतिवेदन पेश कर उसमें यह उल्लेख किया कि आरोपी नियाज अली के विरुद्ध धारा 294,323,506 के अंर्तगत अ.क्र. 79/2010 दर्ज कर लिया गया हैं एवं जांच जारी हैं तथा आरोपी क्र. 2 रजनीश सिंह एवं आरोपी क्र.3 हरवंश सिंह के विरुद्ध कोई कथन परिवादी या किसी साक्ष्य ने नहीं किये हैं। रजनीश सिंह एवं हरवंश सिंह के विरुद्ध प्रथम दृष्टया जांच में कोई अपराध नहीं पाये जाने के कारण अपराध पंजीबद्ध नहीं किया गया हैं। यहां यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि यदि कोर्ट दं.प्र.सं. की धारा 156(3) के तहत कोई आदेश जारी करती हैं तो वह मेन्डेटरी होता हैं। जिसका पालन चौकी प्रभारी ठाकुर ने नहीं किया।
कोर्ट के आदेश का पालन नही किया पुलिस ने
कोर्ट में प्रतिवेदन प्रस्तुत होने के बाद फरियादी के कथन भी रिकार्ड कराये गये। माननीय न्यायाधीश ने अपने आदेश दिनांक 18 जून 2010 को आदेश पत्रिका में लिखा हैं कि पश्चातक्रम में अन्तिम प्रतिवेदन का अवलोकन करने पर यह समझ में आया कि थाना धनौरा द्वारा न्यायालीन आदेश के अनुसार सभी आरोपी गणों के विरुद्ध अपराध पंजीबद्ध कर अन्वेषण उपरान्त विधिवत अन्तिम प्रतिवेदन प्रस्तुत नहीं किया गया हैं। अपने आदेश में कोर्ट ने यह भी लिखा हैं कि थाना धनौरा द्वारा मात्र एक आरोपी नियाज अली के विरुद्ध अपराध पंजीबद्ध किया गया हैं। अत: यह समझ में आता हैं कि आरक्षी केन्द्र धनौरा द्वारा विधिवत न्यायालीन आदेश का अनुपालन नहीं किया गया हैं। इसलिये ये अन्तिम प्रतिवेदन प्रतीत नही होता हैं। कोर्ट ने परिवादी के पूर्व में लिये गये कथन निरस्त करते हुये थाना प्रभारी को पुन: निर्देशित किया है कि परिवाद के आधार पर सभी अभियुक्त गणों के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज कर अन्वेषण उपरान्त अन्तिम प्रतिवेदन 28 जून को कोर्ट में पेश करें।
इंका विधायक के आरोपी होने से चर्चित हुआ कांड़
प्रकरण में आरोपी के रूप में जिले के केवलारी के इंका विधायक हरवंश सिंह एवं उनके पुत्र रजनीश सिंह आरोपों के घेरे में थे इसलिये मीडिया ने इसे गम्भीरता से लेते हुये प्रमुखता से प्रकाशित किया था। समाचार प्रकाशित होने के बाद इंका विधायक हरवंश सिंह ने बाकायदा खंड़न जारी किया था जिसे सभी प्रमुख समाचार पत्रों ने छापा था। समाचार और खंड़न के प्रकाशन के बाद लोगों की निगाहें इसी पर लगीं थीं कि कैसे इस मामले का निपटारा होता हैं।
पुलिस प्रशासन की निष्पक्षता हुयी सन्दिग्ध
न्यायालय के आदेश में जिस तरह पुलिस को लताड़ा गया हैं उससे पुलिसिया कार्यवाही सन्देह के घेरे में आ गई हैं। जिले के मशहूर फौजदारी अधिवक्ताओं का यह कथन भी कम महत्वपूर्ण नहीं हैं कि कोर्ट यदि दं.प्र.सं.की धारा 156(3) के अंर्तगत आदेश देती हें तो वह मेन्डेटरी होता हैं और इसकी सुप्रीम कोर्ट की नजीरें भी हैं। इस पुलिसिया कार्यवाही को लेकर भी तरह तरह की चर्चायें हैं। कहीं यह कहा जा रहा हैं कि नेताओं को बचाने के लिये यह कार्यवाही चौकी प्रभारी ने अपने स्तर पर ही कर दी होगी क्योंकि यदि यह जानकारी सख्त मिजाज जिला पुलिस अधीक्षक डॉ. रमनसिंह सिकरवार को लगी होती तो ऐसा हो ही नहीं सकता था। लेकिन ऐसा कहने वालों की भी कमी नहीं हैं कि एक छोटा कर्मचारी इतना बड़ा निर्णय खुद नहीं ले सकता।उसने जरूर जिले के आला अफसरों को विश्वास में लेकर ही यह किया होगा। तभी तो पिछले लगभग दस दिनों से जिले का आला पुलिस अधिकारी चुप हैं अन्यथा ऐसा विधि विपरीत प्रतिवेदन प्रस्तुत करनें वाले चौकी प्रभारी के खिलाफ अभी तक कोई अनुशासनात्मक कार्यवाही हो चुकी होती। अब इस मामले में सच्चायी क्या हैं यह तो 28 जून को ही स्पष्ट हो पायेगा लेकिन इस प्रकरण ने पुलिस प्रशासन के निष्पक्षता के दावों को जरूर सन्दिग्ध बना दिया हैं।
दैनिक यशोन्नति सिवनी27 जून 2010 में प्रकाशित

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