(वीरेंद्र सेंगर की कलम से)
वे अंदर से बेचैन तो बहुत हैं लेकिन, राजनीतिक मजबूरी ऐसी है कि सीधे-सीधे नाम के मुद्दे पर ताल नहीं ठोंक सकते। यूँ तो कह दिया जाता है कि अरे नाम में क्या रखा है...? यदि कोई नाम ‘ब्रांड’ बन जाए, तो फिर नाम ही सबसे बड़ी धरोहर बन जाता है। नेहरू-गांधी परिवार का नाम तो कांग्रेस के लिए सुपर राजनीतिक ब्रांड न जाने कब का बन गया है। अब कोई इस ‘ब्रांड’ को चुनौती देने लगे, तो भला कांग्रेसी ‘भद्रलोक’ कैसे चुप बैठ सकता है? फिर भी चुप्पी साधनी पड़ रही है क्योंकि बसपा सुप्रीमो मायावती ने इस बार अपने चतुर दांव से कांग्रेसी उस्तादों को पानी पिला दिया है। वे इस मुद्दे पर बस, रणनीतिक नाराजगी जता रहे हैं। यही कह रहे हैं कि मायावती सरकार ने अमेठी संसदीय क्षेत्र की जनता की जनभावनाओं का आदर नहीं किया है। वे लोग तो अमेठी जिले का नाम ‘राजीव नगर’ चाहते थे लेकिन, सरकार ने इसका नामकरण ‘शाहू जी महाराज नगर’ कर दिया। ऐसा नाम रखा जो इस क्षेत्र के लिए ‘अजूबा’ है। कांग्रेस का ‘बड़ा दरबार’ यानी ‘दस जनपथ’ इस प्रकरण पर रणनीतिक चुप्पी साधे है। हां, कुछ दरबारी किस्म के नेता जरूर उत्तर प्रदेश सरकार के फैसले पर ‘फनफनाते’ दिख रहे हैं।
कांग्रेस प्रवक्ता, मनीष तिवारी कह रहे हैं कि दशकों से अमेठी नेहरू-गांधी परिवार की कर्मभूमि है। प्रदेश सरकार ने अकस्मात नाम बदल डाला, फिर भी इससे कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि, कांग्रेस का फोकस इस पिछड़े क्षेत्र के विकास का है। वह बना ही रहेगा। केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद को लगा है कि नाम के साथ यह ताजा छेड़छाड़ ठीक नहीं है क्योंकि, नेहरू-गांधी परिवार यहां की पहचान का प्रतीक बन चुका है। मौका भी है, पार्टी का दस्तूर भी है कि ‘बड़े दरबार’ के प्रति खास मौकों पर वफादारी के नगाड़े बजाए जाएं, जो बजने भी लगे हैं। उत्तर प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता सुबोध श्रीवास्तव ने कहा कि अमेठी जिले का नाम ‘राजीव नगर’ होना चाहिए क्योंकि इस संसदीय क्षेत्र की जनता यही चाहती है। अब यह तो ये प्रवक्ता महोदय ही बता सकते हैं कि उन्होंने कैसे कुछ घंटों में आनन-फानन यह ‘रायशुमारी’ करा ली? पार्टी के वरिष्ठ नेता इस मुद्दे पर सीधा मोर्चा नहीं खोलना चाहते। दरअसल, वे ‘बड़े दरबार’ का संकेत भी समझना चाहते हैं, जो अभी स्पष्ट रूप से उन्हें नहीं मिला है।
सुल्तानपुर जिले में आने वाले अमेठी संसदीय क्षेत्र से नेहरू-गांधी परिवार का काफी पुराना नाता है। इससे सटे हुए रायबरेली क्षेत्र से इंदिरा गांधी चुनाव लड़ती रहीं, जीतती भी रहीं। एक बार (वर्ष 1977) वे जनता पार्टी की लहर में जरूर हार गई थीं। इंदिरा गांधी के जीते जी उनके छोटे पुत्र संजय गांधी ने अमेठी से लोकसभा का चुनाव लड़कर ‘विरासत’ की नींव रखी थी। वे भारी बहुमत से जीते भी थे। उनके आकस्मिक निधन के बाद इस सीट से राजीव गांधी को मैदान में उतारा गया था। वे 1981-1991 तक लोकसभा में अमेठी का प्रतिनिधित्व करते रहे। राजीव के निधन के बाद ‘दस जनपथ’ के खास वफादार सतीश शर्मा को अमेठी का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला। इसके बाद राहुल गांधी जब राजनीति में कूदे तो उन्होंने अपने पिता की कर्मभूमि अमेठी को ही गले लगाया। वर्ष 2004 का चुनाव जीतने के बाद वे 2009 का चुनाव भी रिकार्ड मतों से जीते थे। राहुल गांधी को कांग्रेसी, भावी प्रधानमंत्री मानते हैं। युवा राहुल कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव हैं। दलित और वंचित वर्गों के लिए उनकी राजनीतिक ‘संवेदनशीलता’ अक्सर चर्चा में रहती है। हाल के महीनों में वे दलितों के पर्ण कुटीर में ‘नाइट हाल्ट’ करके यह संदेश देने की कोशिश करते रहे हैं कि पार्टी को इस वर्ग की हित चिंता की बहुत बेचैनी है। दलित घरों में ‘युवराज’ रुके, तो मीडिया ने दुनियाभर में जमकर ढोल पीटे। कुछ इस भाव में कि देखो... देखो ‘महलों’ में पला-बढ़ा सुकुमार शख्स कैसे दलितों की पीड़ा का अनुभव करने के लिए ‘दरिद्र नारायण’ बनकर उनके घरों में धमक जाता है। उनके यहां की रूखी-सूखी खाकर रात बिताता है। उनका दुख-सुख सुनता है। वह भी अपनी सुरक्षा का जोखिम लेकर।
यह भी चर्चा चली कि राहुल उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में पार्टी के खोए जनाधार को पाने के लिए ये तमाम कवायद कर रहे हैं ताकि, दलित वर्ग एक बार फिर पार्टी के साथ जुड़ जाए। ऐसी कोई कारगर राजनीतिक कवायद बसपा के लिए वाकई बड़ी चुनौती बन सकती है क्योंकि मायावती के नेतृत्व वाली बसपा ने अपने मजबूत दलित वोट बैंक के बल पर ही अपना ‘साम्राज्य’ इतना बढ़ा लिया है कि कांग्रेस यहां हाशिए पर चली गई है। पिछले लोकसभा के चुनाव में जरूर ‘राहुल इफेक्ट’ के चलते यहां बसपा का ‘हाथी’ बिदका था। कांग्रेस को अप्रत्याशित सफलता मिली थी। इस दौर से मायावती की आंखों में राहुल की रणनीति किरकिराती रही है। उन्होंने कई तरीकों से कोशिश की कि अमेठी और रायबरेली में नेहरू-गांधी परिवार का राजनीतिक करिश्मा कुछ उतार पर आए। गौरतलब है कि अमेठी के पड़ोस में रायबरेली संसदीय क्षेत्र है। यहां से सोनिया गांधी प्रतिनिधित्व करती हैं। पिछले वर्षों में केंद्र सरकार ने तमाम कोशिशें की कि दोनों क्षेत्रों में विकास के बड़े प्रोजेक्ट चालू कर दिए जाएं। कुछ चालू हुए भी। लेकिन, कुछ अटके भी। आरोप आया राज्य सरकार पर।
राहुल के दलित ‘अनुराग’ पर मायावती कई बार तीखे कटाक्ष कर चुकी हैं। वे इसे कांग्रेस का राजनीतिक पाखंड तक बता चुकी हैं। दरअसल, मायावती अच्छी तरह से समझती हैं कि दलित वर्ग कहीं मासूम चेहरे वाले ‘युवराज’ के मोहपाश में जकड़ गया, तो उनके लिए खतरे की घंटी बज सकती है। शायद इसलिए उन्होंने अपने खास वोट बैंक को पुख्ता करने के लिए कदमताल तेज कर दी है। वे दलितों को सुख-सुविधाएं देने का ही वादा नहीं करतीं, इससे बढ़कर उनके स्वाभिमान को जगाती हैं। इस कड़ी में वे अब तक प्रदेश के नौ जिलों का नामकरण दलित महापुरुषों के नाम पर कर चुकी हैं। ताजा मामला अमेठी संसदीय क्षेत्र का है। इसे अब शाहू जी महाराज नगर से अलग जिले के रूप में पहचाना जाएगा। जिले का मुख्यालय अमेठी की जगह अपेक्षाकृत छोटा कस्बा गौरीगंज होगा। 3070 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रवाले इस नए जिले में तीन तहसीलें सुल्तानपुर और दो तहसीलें रायबरेली की शामिल की गई हैं। ये सब अमेठी संसदीय क्षेत्र का हिस्सा हैं। कांग्रेस के नेता सवाल उठा रहे हैं कि शाहू जी महाराज का कोई सीधा योगदान यूपी या अमेठी के लिए क्या था? इस पर बसपा के नेता सवाल कर रहे हैं कि पूरे देश में अधिसंख्य परियोजनाएं नेहरू-गांधी परिवार के नामकरण वाली हैं। तब यह सवाल क्यों नहीं उठाया गया? क्या पूरा देश सिर्फ एक खानदान की जागीर है?
उल्लेखनीय है कि मायावती ने 2003 में अपनी राजसत्ता के दौरान अमेठी को अलग जिला बना दिया था। इसका नाम शाहू जी महाराज नगर ही रखा गया था। लेकिन, छह महीने के अदंर ही मुलायम सिंह ने सत्ता में आने के बाद सरकार के इस फैसले को पलट दिया था। पर्दे के पीछे कांग्रेसियों ने मुलायम को इसके लिए धन्यवाद ज्ञापित किया था। लेकिन, इस बार मुलायम सिंह ने ये ऐलान नहीं किया कि वे सत्ता में आए, तो इस फैसले का क्या करेंगे? सपा के वरिष्ठ नेता राम गोपाल यादव ने यही कहा कि सत्ता में आए, तो इस मामले में पुनर्विचार करेंगे। सपा ने तो पुनर्विचार की बात की भी है लेकिन, कांग्रेस नेतृत्व ने इतनी भी जुर्रत नहीं दिखाई। जबकि, 2012 के विधानसभा चुनाव में अकेले अपने बूते पर सत्ता में लौटने का उसका मिशन है। इस संदर्भ में वरिष्ठ नेता अनौपचारिक बातचीत में कहते हैं कि यह नाजुक मामला है। हमने यदि फैसला पलटने की बात की, तो दलितों के स्वाभिमान को चोट पहुंच सकती है। ऐसा कुछ हुआ, तो राहुल का ‘मिशन यूपी’ हिचकोले खा सकता है। बता दें कि शाहू जी महाराज कोल्हापुर (महाराष्ट्र) स्टेट के पहले दलित शासक थे। उन्होंने समाज सुधार के क्रांतिकारी कदम उठाए थे। अपने राज में उन्होंने दलितों और वंचित वर्गों के लिए रोजगार में 50 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान कर दिया था। इस ऐतिहासिक फैसले की वजह से शाहू जी महापुरुषों की श्रेणी में माने गए। उत्तर प्रदेश सरकार ने उनके प्रति सम्मान जताने के लिए अमेठी जिले का नामकरण उनके नाम पर किया है। इसी के साथ सरकार ने कानपुर देहात जिले का नाम रमाबाई नगर कर दिया है। रमाबाई दलित ‘आइकॉन’ डा. भीमराव अंबेडकर की पत्नी थीं।
कानपुर देहात जिले के नए नामकरण को लेकर कुछ लोगों को बेचैनी है। खासतौर पर सवर्ण मानसिकता के लोगों के गले नया नाम नहीं उतर रहा है। ऐसे लोगों से बसपा नेतृत्व सवाल कर रहा है कि कानपुर के लोग सदियों से हैलट हॉस्पिटल, उर्सला हॉस्पिटल व मेस्टन रोड आदि नाम खुशी-खुशी लेते रहे हैं। जबकि, ये नाम अंग्रेजों के थे। वही अंग्रेज जिन्होंने सैकड़ों सालों तक भारत को गुलाम बनाए रखा था। अब यहां के लोग देश के ही एक समाज सुधारक का नाम गले क्यों नहीं उतार पर रहे?
बसपा के एक वरिष्ठ सांसद कहते हैं कि ‘शाहू जी महाराज’ का नाम कांग्रेसियों को खटक रहा है। लेकिन, दिल्ली में हाल के वर्षों में ही कनॉट प्लेस का नाम राजीव चौक, कनॉट सर्कस का नाम इंदिरा चौक व बांद्रा-वर्ली (मुंबई) में अरबों रुपये की लागत से बनाए गए सी-लिंक का नाम राजीव सेतु आराम से रख दिया गया। फिर भी कहीं किसी कोने-कतरे में दलित महापुरुषों को सम्मान देने की बात आती है, तो ‘राजीतिक दांव’ ढूंढ़ा जाता है। बसपा के ऐसे ‘तीरों’ का निशाना इतना मारक लगा है कि कांग्रेस ढंग से ‘उफ’! भी नहीं कर पा रही है।
bhai sahab aapne bahut achha tathy samne laya hai.....mayawti to jo kar rahi hain.....unse wahi ummid ki ja sakti hai...agar wo aisa nhi larengi to we stta me tik hi nahi payengi....jat-pat ke naam pr wo...hame ek dusre se nafrat karne pr majbur kar diya hai....gandhi khandan ne bhi sirf rajeev-nehru-indira ke naam pr namkarn kiya hai ye bhi galat hai....kekin mayawti ne to jat-pat ke naam pr ghatiya kaam kiya hai,,,,,ummid karta hu ki mayawati ab dubara kabhi stta me n aaye aur jitne bhi eaisle unke dwara kiye gye ho----CHAHE NAAMKARAN KE YA MURTI LAGANE-----SUB BADAL DIYE JAYEN....MURTIYAN TOD DI JAYEN---CHAHE UP KA CM KOI BHI BANE.....BJP-INC-SP---PLZ GO AHEAD AND FINISH MAYAWATI SAMRAJYA...
ReplyDelete