29.7.10

जालियांवाला बाग और डायर की हत्या

--सुरेंद्र किशोर

पंजाब के पूर्व लेफ्टनेंट गवर्नर ओ डायर की 13 मार्च 1940 को हत्या करने के बाद उधम सिंह ने कहा था कि मैंने अंग्रेजी राज में अपने देशवासियों को भूख से मरते देखा है. उनकी खातिर यह हिंसात्मक कार्रवाई करते हुए मुङो कोई दुख नहीं हुआ.ङ्ग. उधम सिंह उर्फ़ राम मोहम्मद सिंह आजाद को इस अपराध में फ़ांसी की सजा हुई. 12 जून 1940 को उधम सिंह इंगलैंड के पेंटनविला जेल में फ़ांसी के फ़ंदे पर झूल गया. फ़ांसी के समय भी वह देशभक्त हंस रहा था. उधम सिंह की फ़ांसी ने आजादी की अहिंसक लड़ाई को भी काफ़ी मनोवैज्ञानिक ताकत पहुंचाई थी. पर ऐसे ऐसे अनेक बलिदानों से मिली आजादी के बाद इस देश को आज अपने ही देश के कुछ लुटेरे नेता, अफ़सर, व्यापारी तथा दूसरे तत्व किस तरह बेशर्मी से लूट रहे हैं, यह सब देख सुन कर उधम सिंह अधिक याद आते हैं. जाहिर है कि उधम सिंह जैसे शहीदों ने कल के ऐसे भारत के लिए अपना आज कुर्बान नहीं किया था.

13 अप्रैल 1919 को जालियांवाला बाग नरसंहार को जनरल डायर ने अंजाम दिया था. पर असल योजना लेफ्टिनेंट गवर्नर ओ डायर की थी. यहां से इंगलैंड लौटने के बाद भी ओ डायर वहां के अखबारों में लेख लिख कर यह तर्क देता रहता था कि हिंदुस्तान जैसे बड़े देश को अपने वश में रखने के लिए जालियांवाला बाग जैसे हत्याकांड जरूरी हो जाते हैं. ओ डायर को इस बात का दुख था कि जालियांवाला बाग नरसंहार के दोषी अफ़सरों को अंग्रेजी सरकार ने दंड क्यों दिया. इस संबध्ां में ओ डायर ने पुस्तक भी लिखी थी. उधम सिंह बहुत दिनों से माइकल ओ डायर को मारने की योजना बना रहा था. पर उसे मौका मिला 13 मार्च 1940 को जब लंदन के टयूडर हॉल में एक सभा थी.

ओ डायर उस सभा की अध्यक्षता करनेवाला था. सभा भवन में उस दिन सुरक्षा व्यवस्था नहीं थी क्योंकि वहां किसी गड़बड़ी की कोई आशंका ही नहीं थी. उधम सिंह उस दिन जब सभा भवन में पहुंचा तो उसकी जेब में एक अमेरिकी रिवाल्वर और एक चाकू था. वह पहले तो सभा भवन में पीछे बैठा था, पर सभा समाप्त होने से ठीक पहले वह ओ डायर के सामने जाकर खड़ा हो गया. जब सभा बर्खास्त होने की घोषणा होने लगी तो उधम सिंह ने ओ डायर के और नजदीक जाकर चार-पांच गोलियां उसके सीने में दाग दी. ओ डायर जमीन पर गिर पड़ा और फ़ौरन उसका अंत हो गया. घर से निकलते समय उसने अपनी नौकरानी से कहा था कि पांच बजे जब वह वापस आयेगा तभी चाय पियेगा. पर वह चाय पीने के लिए घर नहीं लौट सका. हत्या के बाद तेजी दिखाते हुए दो अंग्रेजों ने उधम सिंह को पकड़ लिया. उसे जमीन पर पटक दिया गया और कई अंग्रेज उसके शरीर पर चढ़ बैठे. बाद में पुलिस उसे पकड़ कर ले गयी. मुकदमा चला और उसे फ़ांसी की सजा दे दी गयी. इससे पहले गिरफ्तारी के बाद से ही उधम सिंह लगातार मुस्कराता रहता था. उसे खुशी थी कि उसे ओ डायर को मार कर बदल लेने का मौका मिला.

उधम सिंह ने ओ डायर हत्याकांड मुकदमे के सिलसिले में अदालत में दिये गये अपने बयान में कहा था कि मैंने ओ डायर की हत्या इसलिए की कि मुङो उससे द्रोह था. मुङो अपने किये का कोई पछतावा नहीं है और न मैं मरने से डरता हूं. मौत का इंतजार करते हुए बूढ़ा हो जाना मुङो अच्छा नहीं लगता. जवानी ही में मर जाना ठीक है. मैं भी जवानी में मर रहा हूं. और इससे भी अच्छी बात यह है कि मैं देश के लिए मर रहा हूं.

याद रहे कि अमृतसर के जालियावाला बाग में सैकड़ों निहत्थों को अंग्रेजों ने गोलियों से भून दिया था. सरकारी सूत्रों के अनुसार 379 हत्याएं हुई थीं, पर गैर सरकारी सूत्र यह संख्या काफ़ी अधिक बताते हैं. सौ से अधिक लाशें तो बाग के उस कुएं से बरामद हुई थीं जिसमे अंधाधुंध गोलियों की बौछार के बीच अपनी जान बचाने के लिए लोग कूद पड़े थे. करीब 15 सौ से भी अधिक राउंड फ़ायरिंग की गयी थी. पंजाब का गौरव उधम सिंह कैसे इंगलैंड पहुंचा, यह ब्रिटिश पुलिस को भी पता नहीं चल सका. पर उसे यह मालूम जरूर हो गया कि वह अपने देशवासियों को अंग्रेजों के खिलाफ़ भड़काने के आरोप में भारत में पहले भी जेल की सजा काट चुका था. उधम सिंह समाजवादी विचारधारा को मानता था. खुश रहो अहले वतन हम तो सफ़र करते हैं. इसी तमन्ना के साथ उधम सिंह चला गया. क्या हमारे देश के अधिकतर मौजूदा हुक्मरान हमारे वतन को खुश रखने के उपाय कर रहे हैं या सिर्फ़ अपने आप को और अपने लगुओं -भगुओं को धनधान्य बना रहे हैं? यह सोचने का समय आ गया है.



साभार प्रभात ख़बर

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