13.7.10

कसक



ये कसक दिल की दिल में चुभी रह गयी

ज़िन्दगी में तुम्हारी कमी रह गयी।


एक मैं एक तुम एक दीवार थी

ज़िन्दगी आधी-आधी बँटी रह गयी।


रात की भीगी-भीगी छतों की तरह

मेरी पलकों पे थोड़ी नमी रह गयी।



मैंने रोका नहीं वो चला भी गया

बेबसी दूर तक देखती रह गयी।


मेरे घर की तरफ धुप की पीठ थी

आते-आते इधर चांदनी रह गयी।

3 comments:

  1. रात की भीगी-भीगी छतों की तरह
    मेरी पलकों पे थोड़ी नमी रह गयी। खुबसूरत शेर दिल की गहराई से लिखा गया बधाई

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  2. एक मैं एक तुम एक दीवार थी

    ज़िन्दगी आधी-आधी बँटी रह गयी।

    बहुत बढिया ..

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  3. बेहद शानदार लिखा है आपने महोदय ..हम भी अभी लिखना शुरु कर रहे है और कुछ लिखा भी है अगर आप इसे पढकर कर कमेंट करे तो हमे खुशी होगी URL hai http://manojkumarsah.jagranjunction.com/2010/06/29/298/

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