25.7.10

बाहुबली पत्रकार बने आदित्याज के संपादक


बाहुबली पत्रकार बने आदित्याज के संपादक
ग्वालियरअखबारों का प्रकासन कभी रास्त्र्भाक्ति और स्वधीनता का प्रतीक माना जाता था ! लेकिन अब ऐसा नहीं रहा ! अब अखबारों का प्रकाशन ज्यादातर बे लोग या संस्थान करना चाहते है जो अपने काले धन्धों के कारण कानून और पुलिस से खोफजदा है !अखबारों के प्रकासन से ऐसे लोगो को दो फायदे नज़र आते है एक पुलिस और कानून से सुरक्षा और दूसरा अधिकारियों और राजनीतिज्ञों पर दबाब ग्वालियर में भी ऐसा ही हो रहा है चालू दशक में कई व्यापारिक संस्थानों और लोगो ने अखबारों का प्रकासन और टीवी न्यूज़ चेनल शुरू किये हे जिनका पत्रिकारिता से कोई सम्बन्ध नहीं रहा हे !ऐसी स्तिथि में समस्या आती हे अख़बार या चैनल के नियमित खर्चो की आपूर्ति की ! इसके लिए संचालक तरह तरह के हथकंडे अपनाते हे !गत वर्स सुरु हुए एक अख़बार ने संपादन और प्रबंधन आरम्भ में ऐसे लोगो को सोपा था जिनकी सहर में पत्रकार के रूप में नहीं बल्कि प्रबंधको के रूप में पहचान बनी हुई हे !संचालक खर्चो की पूर्ति करते रहेगे और उनका अखबार चलता रहेगा !किन्तु हुआ उल्टा प्रबंधको ने अपनी जेबे भरी और रास्ता बदल दिया इनमे से एक रीयल स्टेट कारोबारी की सरन में हे और दुसरे ने संस्था बदल दी हे ! संपादक प्रबधन का भार सोपने इस अखबार के संचालको ने नवभारत के संपादक सुरेश सम्राट से संपर्क स्थापित किया किन्तु वह सायद पत्रिकार्ता छोड़ कर प्रबंधन के लिए तैयार नहीं हुए तब प्रबंधन ने सीधे एक बाहुबली पत्रकार पर डोरे डाले !
ज्ञात हुआ हे की अरविन्द सिंह चौहान नामक यह पत्रकार मात्र कुछ साल पहले प्रदेश की पत्रिकारिता में आए हे और कुछ समय में एक मुकाम हासिल कर लिया हे !सुनने में आया हे की श्री चौहान यू पी के अखबार में भी काम कर चुके हे ! ऐसे पत्रकार को संपादक और प्रबंधक का भार सोपने के पीछे सायद अखबार संचालको की सोच हे की अब उनका अखबार गति पकड़ेगा ! निश्चित ही उनकी सोच सही प्रतीत होती हे अरविन्द चौहान जेसे युबा खून के सहारे इस अखबार की डूबती नैया पर हो जाबेगी ! नयी पारी के लिए अरविन्द को शुभकामनाये !

6 comments:

  1. वाह मज़ा आ गया पढ़ कर. पत्रकारिता, राजनीति के कोई कम है! अगर वहां बाहुबली हो सकते हैं तो यहां क्यों नहीं. लोकतंत्र में आज चार चांद लग गए. मुझे बहुत गर्व है...मेरा भारत महान.

    ReplyDelete
  2. aadityaaj ke sampaadak banane par lakh lakh badhaaiyaan.

    ReplyDelete
  3. लोकतंत्र के विनाश की नीव रखी जा रही है। ये जानते हैं कि हर अच्छी चीज़ का इस्तेमाल गलत चीज़ों के लिए कैसे किया जाता है।

    ReplyDelete
  4. DHANYA HO PRADHU........
    BAHUT-BAHUT BADHAI

    ReplyDelete
  5. ye to sahi baat hai ki arvind chauhan yuba khun hai aur uskai sath- sath sakuni ki trha satranj ki baji khalane bale khiladi hai. agar baat kare suresh samrath ji li to bo to anubh ki khan hai jisnai arvind jaisha heera trasha hai. chuhan sahab ko editor banane ki subkamnaye.

    ReplyDelete
  6. अरविन्द जी ! आपको संपादक बनने की ढेरों शुभ कामनाएं. आप में काम करने की अपार क्षमता है लेकिन ध्यान रखना कहीं जोश में होश मत खोना, क्योंकि यह पद बहुत गरिमामय है.

    ReplyDelete