उस शाम वह रुखसत
का समाँ याद रहेगा
वह शहर, वह कूचा,
वह मकाँ याद रहेगा
वह टीस कि उभरी थी
इधर याद रहेगी
वह दर्द कि उठा था
यहां याद रहेगा
हम शौक़ के शोले की
लपक भूल भी जायेंगे
वह शमा-ए-फसुर्दा का धुआं याद रहेगा
आंखों में सुलगती हुई
वहशत के जिलौ में
वह हैरत-ओ-हसरत का जहाँ याद रहेगा
जाँ-बख्श सी उस बर्ग-ए-गुल-ए-तर की तरावट
वह लम्स अजीज़-ए-दो-जहाँ याद रहेगा
हम भूल सके हैं न तुझे भूल सकेंगे
तू याद रहेगा हमें, हाँ याद रहेगा
.................ibne insha
आपके ब्लॉग का अवलोकन किया... आकर्षण पूर्ण है...समाहित ब्लागरों का योगदान प्रशंसनीय है..मेरी शुभकामनाएं..
ReplyDeleteहमे ब्लॉग का भी अवलोकन करें-
मानस खत्री
www.manaskhatri.wordpress.com